युवा कवि नवीन जोशी की गढ़वाली कविता- पहाड़ की वसुन्धरा, मां
पहाड़ की वसुन्धरा, मां
धूल सेवा सूंण, मां
तु अबारि हिकमत ना ख्वे, मां
हमारु हौंसला बढ़ौंदि रे, मां
अपणां फलफूलुन हमारि भूख मिटौंदी रे, मां
गाड़ गदेरौंका पांणिन हमारी तीस बुझौंदि रे, मां
तेरा सारा लग्या छां बाटा हम, मां
हम सबुतै भला बाटा बतौंदि रे, मां
प्राण बचौणू ह्वेगी पहाड़ मा कठिन, मां
अबारि भूख-तीस बुझौंणी ह्वे कठिन, मां
मेरा दाना-दगड्या डौरन घर बोड़ी ऐन, मां
बिना रोजगारा अपणा घर मा बैठ्या, मां
ऊंका बारा मा कुछ त भलु सोच, मां
ऊंकीं भुख-तीस मिटौण कि सोच,मां
ऊं भला पुरांणा दिन बोड़ी दीजा,मां
अपणि माटी कु जस दैंदी रे, मां
कवि का परिचय
नाम-नवीन जोशी
कवि टिहरी गढ़वाल के पिलखी के पोस्टऑफिस में उपडाकपाल के पद पर कार्यरत हैं। वह टिहरी गढ़वाल के थौलधार विकासखंड के कोट गांव के निवासी हैं। कविता लिखना उनका शौक है।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।
भौत सुन्दर रचना???