उत्तराखंड से पलायन का दर्द झेल रहे युवा कवि महाबीर सिंह नेगी ( दौला) की गढ़वाली कविता
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बटोई
चल कभी है बटोई ,
मेंरा गौ भी औदु ||
त्वे दिखोलु भुतैरा मडुलु,
त्वे घुमोलु गौ की सारी ||
ख्वौढ कि धार मा बैठिक,
कुछ छवी बत लगोला||
चकल्या कि मडगणि कु माटुं तै
कन्डि मा ल्येक तै औला||
चल कभी–
मेंरा गौ–
ग्वीड पाणि मा जैक तै,
तिसा गौले कि तीस बुझोला||
भैरौ पाखा अर झिन्दार का,
मिठा काफल खयौला||
चल कभी—
मेंरा गौ–
भनकोना की धार मा बैठिक,
अपणा रौतेला गौ तै दिख्यौला||
मल्या सारी हौ मुल्या सारी
मेंती किसाणौ तै भटियौला||
चल कभी—
मेंरा गौ–
वारि का पाताल कि शैर भी कौला
वारी भूतैर अर यख्यौट्या त पराज लगौला
कीरथु बौडा का मरूडा मु जैक
कौदै की रोटी मा घ्यौ अर नौण भी खौला
कवि का परिचय
नाम- महाबीर सिंह नेगी( दौला)
मूल निवास- ग्राम दौला, पोस्ट कंडारा, जिला रुद्रप्रयाग, उत्तराखंड। वर्तमान में कवि गुजरात के अहमदाबाद में नौकरी कर रहे हैं।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।