कवि एवं साहित्यकार दीनदयाल बन्दूणी ‘दीन’ की गढ़वाली कविता-बेटी
बेटी
ब्वे- बुबजी, गुमान हूंद बेटी.
द्वी – घरौं की, शान हूंद बेटी..
बोल़द-बच्यांद, खिल-खिलांद,
हीरा-मोत्यूं कि, खान हूंद बेटी..
कबि बोले जैंद, डांटि-डपटे जैंद,
ब्वे-बुबजी, ज्यू-ज्यान हूंद बेटी..
बात पीछा रूंद, दगड़ै-रुआंद,
इनि कऴखेरी, क्यान हूंद बेटी..
आंख्यूं आंसु बोगदीं, पुटगै-पुटग,
ब्वे-बुबजि, स्वाभिमान हूंद बेटी..
भलैं कु-बोलद-सोचद, बुरैं पांद,
घड़ि – घड़ि, परेसान – हूंद बेटी..
हमरा रिवाज ही, इन बण्यां छन,
बगैर बाता, बदनाम – हूंद बेटी..
‘दीन’ ! घरौं ल्याज, बचांद-बचांद,
आंख्यूं अगनै झट, ज्वान-हूंद बेटी..
कवि का परिचय
नाम-दीनदयाल बन्दूणी ‘दीन’
गाँव-माला भैंसोड़ा, पट्टी सावली, जोगीमढ़ी, पौड़ी गढ़वाल।
वर्तमान निवास-शशिगार्डन, मयूर बिहार, दिल्ली।
दिल्ली सरकार की नौकरी से वर्ष 2016 में हुए सेवानिवृत।
साहित्य-सन् 1973 से कविता लेखन। कई कविता संग्रह प्रकाशित।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।
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