विवेकानंद खंडूरी को मिलेगा स्वाधीनता संग्राम सेनानी एवं राष्ट्रीय कवि श्रीराम शर्मा प्रेम स्मृति सम्मान, जानिए प्रेम के बारे में
देहरादून में जाने माने छात्र नेता रहे डीएवी कॉलेज छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष विवेकानंद खंडूरी को स्वाधीनता संग्राम सेनानी एवं राष्ट्रीय कवि श्रीराम शर्मा प्रेम स्मृति सम्मान प्रदान किया जाएगा। खंडूरी वर्तमान में बीजेपी नेता हैं। वह पूर्व राज्य दर्जाधारी भी रह चुके हैं। वह स्व. हेमवती नंदन बहुगुणाजी के राजनीतिक शिष्य रह चुके हैं। साथ ही राज्य आंदोलनकारी भी रहे हैं। धरातल संस्था की ओर से एक कवि गोष्ठी मे संस्था संयोजक डॉ. अतुल शर्मा ने विवेकानंद खंडूरी को ये सम्मान देने की घोषणा की। उन्होंने एक समारोह में उक्त सम्मान दिया जाएगा। अब तक संस्था कई विभूतियों को उक्त सम्मान से नवाज चुकी है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
कवि गोष्ठी कवयित्री रंजना शर्मा ने अपना गीत रोज़ की जिन्दगी से थका न करे, और पतंगें सृजन की उड़ाया करे। हार जाये कभी जब किसी दौर मे, देनदारी मे बैठक जमाया करें, को सुनाया। वहीं, विवेकानंद खंडूरी की पत्नी और डीएवी पीजी कालेज की हिन्दी की प्रोफेसर डा पुष्पा खंडूरी को धरातल संस्था की आकहानीकार रेखा शर्मा ने शाल ओढाकर सम्मानित किया। पुष्पा खंडूरी ने अपनी कविता भी प्रस्तुत की। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

श्रीराम शर्मा प्रेम के बारे में
राष्ट्र के सुकवि श्रीराम शर्मा का जन्म 20 फरवरी 1913 को उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर जनपद में हुआ था। राष्ट्रीय चेतन्य के भावों से भरे हुए श्रीराम शर्मा ने मिडिल स्कूल तक की शिक्षा पायी थी। आर्थिक कठिनाइयों के कारण 1929 में इन्होंने 12 रूपये प्रतिमाह पर संस्कृत पाठशाला में हिन्दी के अध्यापक की नौकरी प्रारम्भ की। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
राष्ट्रीय स्तर पर 1930 के नमक सत्याग्रह के प्रभाव के आते ही यह युवा मात्र 15 वर्ष की आयु में राजनीतिक आन्दोलन में कूद पड़ा। विदेशी वस्त्रों की दुकानो पर धरना और बहिष्कार करने की घोषणा के साथ ही राजनीति में सक्रिय हो गये थे। 1932 पिता के असामयिक निधन से गांधी आश्रम के सम्पर्क में आये किन्तु देशसेवा का व्रत लेने के कारण इन्हें अधिक समय तक नौकरी रास नहीं आयी और एक दिन वे महात्मा गांधी से मिलने साबरमती आश्रम निकल पड़े। गांधी चूंकि अभी सविनय अवज्ञा आन्दोलन के चलते जेल में थे, इसलिए वे बम्बई आकर डेढ़ वर्ष तक रहने के पश्चात वे घर लौटे और कुल आठ वर्षों तक गांधी आश्रम में सेल्स मैन के पद पर कार्य किया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
आजादी के संघर्ष के दौर में कन्हैया लाल मिश्र ‘प्रभाकर’ सहित अन्य नेताओं से इनका सम्पर्क बना रहा। इसलिए 1912 के भारत छोड़ो आन्दोलन में भी ये सक्रिय रहे। 26 जनवरी 1944 को केन्द्रीय सचिवालय दिल्ली के समक्ष 34 स्वयं सेवकों के दल का नेतृत्व करते हुए इन्होंने सत्याग्रह किया। फलस्वरूप एक वर्ष की कारावास की सजा में जेल गये। जेल में भी उन्होंने कविता लिखना नहीं छोड़ा जेल से छूटने के बाद ये देहरादून चले आये। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
श्रीराम शर्मा के साथ इनकी पत्नी रमा ने भी निभाया। महिलाओं को लेकर शराबबन्दी और विदेशी वस्त्रों के बहिष्कार को लेकर काम करती रही। इन्होने प्रेम उपनाम से कवितायें लिखी। उनकी मुख्य कवितासंग्रह में अंगारे, दिल्ली चलो, जलती निशानी, श्रधाजंली, युग चरण, जलती धरती धुलसे पांव देशसेवा व्रत से ओत-प्रोत थी। राजकवि का 18 जुलाई 1979 को देहरादून में निधन हो गया। उनके पुत्र डॉ. अतुल शर्मा इस समय उत्तराखंड में जनगीतकार के रूप में प्रशंसनीय कार्य कर रहे हैं।

Bhanu Prakash
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भानु बंगवाल
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।