पूर्व छात्र नेता जुगरान बोले-अशासकीय महाविद्यालयों के कोर्ट में विचाराधीन मामलों में आदेश कैसे पारित कर रही सरकार
डीएवी पीजी महाविद्यालय के पूर्व छात्र संघ अध्यक्ष व महामंत्री रविंद्र जुगरान ने प्रदेश सरकार पर हाईकोर्ट की अवमानना का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि अशासकीय महाविद्यालयों की संबद्धता के प्रकरण में वह याचिकाकर्ता हैं। देहरादून व हरिद्वार के अशासकीय महाविद्यालयों की संबद्धता को समाप्त किये जाने का मसला विगत 09 माह से उच्च न्यायालय उत्तराखंड में विचाराधीन है। ऐसे में राज्य सरकार कैसे दर्जनों आदेश पारित कर सकती है।
आम आदमी पार्टी नेता एवं पूर्व छात्र नेता व राज्य निर्माण आंदोलनकारी रविंद्र जुगरान ने कहा कि अगर सरकार ने न्यायालय में विचाराधीन प्रकरण पर उक्त आदेश वापिस नहीं लिए, तो वे प्रकरण से संबंधित उतरदायी दोषी नौकरशाहों व अधिकारियों को उनके व्यक्तिगत नाम से भी कोर्ट में पक्षकार बनायेंगे। विचाराधीन मामले के कानूनी पहलू की वैधानिकता को नजरंदाज करने वाले नौकरशाहों व अधिकारियों की असंवेदनशीलता के दृष्टिगत वह ऐसा करने के लिए विवश होंगे।
उन्होंने कहा कि असंबद्ध किये गये अशासकीय महाविद्यालयों के शिक्षक कर्मचारीयों का तीन माह से कोरोना महामारी में वेतन रोकने के आदेश, अशासकीय महाविद्यालयों पर हेमवती नंदन बहुगुणा केंद्रिय विश्व विद्यालय से अपने को असंबद्ध करने के लिए मैनेजमेंट व महाविद्यालयों को दवाब में लाने के उद्देश्य से आदेश निर्गत करना, पदोन्नति की प्रक्रिया का रोका जाना, रिक्त पदों को भरने की प्रक्रिया पर रोक लगाने, साथ ही श्रीदेव सुमन विश्व विद्यालय की संबद्धता लेने के लिए आदेश निर्गत कर दवाब बनाया जा रहा है।
रविंद्र जुगरान ने कहा कि जैसा कि विदित है कि हेमवती नंदन बहुगुणा केंद्रिय विश्व विद्यालय की संस्तुति पर केंद्रिय शिक्षा मंत्रालय ने उत्तराखंड के अशासकीय महाविद्यालयों को हेमवती नंदन बहुगुणा केंद्रिय विश्व विद्यालय से असंबद्ध किया। ऐसा नहीं किया जा सकता, क्योंकि केंद्रीय विश्वविद्यालय अधिनियम 2009 में संबद्धता का प्रावधान है, असंबद्ध किये जाने का नहीं। जिन अशासकीय महाविद्यालयों को असंबद्ध किया गया है, उनको केंद्रीय विश्वविद्यालय अधिनियम 2009 के तहत स्पष्ट रूप से संबद्धता का प्रावधान है। जुगरान ने कहा कि हेमवती नंदन बहुगुणा केंद्रीय विश्व, केन्द्रीय शिक्षा मंत्रालय व राज्य सरकार इस मामले में संसद से पारित कानून का अतिक्रमण कर रही है। जो कि एक्ट कानून के विरुद्ध हैं। उन्होंने कहा की एक्ट में संशोधन का अधिकार केवल संसद ही कर सकती है।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।