पूर्व सांसद स्वामी ने की विधानसभा से निकाले गए कार्मिकों की पैरवी, कांग्रेस नेता का विरोध, कांग्रेस नेता भी कर चुके हैं पैरवी
पूर्व कानून मंत्री एवं पूर्व सांसद डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी ने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को पत्र लिखकर विधानसभा से बर्खास्त 228 तदर्थ कार्मियों की पुनः बहाली की पैरवी की। उनके इस कदम का कांग्रेस नेता एवं सामाजिक कार्यकर्ता अभिनव थापर ने कड़ा विरोध किया। इसके लिए देहरादून में उत्तरांचल प्रेस वार्ता आयोजित की और डॉ. स्वामी से अपना अनुरोध पत्र वापस लेने की मांग की। यहां ये भी बताना जरूरी है कि इसी मांग को लेकर कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा और पूर्व सीएम हरीश रावत के नेतृत्व में 11 फरवरी को कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं का प्रतिनिधिमंडल भी विधानसभा अध्यक्ष ऋतु भूषण खंडूड़ी से मिल चुका है। उन्होंने बाकायदा विधानसभा अध्यक्ष को ज्ञापन दिया। साथ ही निकाले गए कर्मचारियों की आर्थिक स्थिति की दुहाई दी थी और निकाले गए कर्मियों की बहाली की पहल करने की मांग की थी। तब कांग्रेस नेता और सामाजिक कार्यकर्ता ने कांग्रेस नेताओं से इस अनुरोध और ज्ञापन को वापस लेने की मांग नहीं की थी। आज भी उनकी और से प्रेस वार्ता का जो प्रेस नोट जारी किया गया, उसमें भी कांग्रेस नेताओं के संबंध में एक भी बिंदु नहीं दिया गया है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
ये जारी किया प्रेस नोट
कांग्रेस नेता एवं सामाजिक कार्यकर्ता अभिनव थापर के साथ सामाजिक कार्यकर्ता विजयपाल रावत ने आज प्रेस वार्ता की। इसका बाकायदा प्रेस नोट भी जारी किया गया। इसमें कहा गया है कि उत्तराखंड में विधानसभा भर्ती घोटालों के विषय में डॉ सुब्रमण्यम स्वामी के हस्तक्षेप से प्रदेश के युवाओं में रोष है। विधानसभा बैकडोर भर्ती में भ्रष्टाचार व अनियमितता का घोटाला सन 2000 में राज्य बनने से लेकर आज तक चल रहा था। इस पर सरकारें लगातार अनदेखी कर रही थी। अब तक सत्ता पर बैठे रसूकदारों में अपने करीबीयों को भ्रष्टाचार से नौकरी लगाने में सभी विधानसभा अध्यक्ष और मुख्यमंत्रियों पर भी सरकारों ने चुप्पी साधी हुई है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
अतः विधानसभा भर्ती में राज्य निर्माण के वर्ष 2000 से वर्ष 2022 तक समस्त नियुक्तियों की जाँच हाईकोर्ट के सिटिंग जज की निगरानी में किया जाय। साथ ही भ्रष्टाचार से नौकरी देने वाले मंत्री/अफसरों से सरकारी धन की रिकवरी की माँगो पर जनहित याचिका विचाराधीन हैं। प्रेस नोट में आगे कहा गया है कि देहरादून निवासी सामाजिक कार्यकर्ता अभिनव थापर की इस जनहित याचिका पर माननीय उच्च न्यायालय नैनीताल ने गंभीर संज्ञान लेते हुए सरकार को 8 हफ्ते में जवाबतलब कर बड़ी कार्यवाही की है, पर दुर्भाग्यपूर्ण है कि 10 हफ्ते बीत जाने के बाद भी सरकार ने अभी तक न्यायालय को कोई जवाब नहीं दिया है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
इसमें आगे कहा गया है कि- किन्तु कल भाजपा के पूर्व सांसद, पूर्व कानून मंत्री व सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ सुब्रमण्यम स्वामी ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को पत्र लिखकर व अपने सोशल एकाऊंट से ट्वीट कर विधानसभा से निलंबित 228 कर्मचारियों के पुनः बहाली हेतु आग्रह किया। इससे उत्तराखंड के युवाओं के हितों एवं हक-हकूक पर कुठाराघात हुआ है। कई सामाजिक संगठनों ने इसका विरोध किया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
प्रेस नोट में कहा गया है कि- उल्लेखनीय है कि जिस मुख्यमंत्री को डॉ स्वामी ने पत्र लिखा है उनके अपने रिश्तेदार इन बर्खास्त 228 कर्मचारियों में से है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की रिश्तेदार एकांकी धामी सहित 72 लोगों को मुख्यमंत्री धामी द्वारा अपने सर्वोच्च विशेषाधिकार “विचलन” का दुरुपयोग कर 2022 में नियुक्ति प्रदान की गई थी, जिसमें तत्कालीन स्पीकर प्रेमचंद अग्रवाल , भाजपा संगठन मंत्री अजय कुमार आदि के रिश्तेदारों को भी नियुक्ति प्रदान की गयी है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
उल्लेखनीय है कि वर्तमान धामी सरकार में इस विधानसभा भर्ती घोटाले के साथ UKSSSC व UKPCS में कई पेपर-लीक के मामले आये जिससे प्रदेश के लाखों युवाओं का भविष्य अंधकार में चला गया। इसीलिए निरंतर रूप से उत्तराखंड के लाखों युवा सड़कों पर भर्ती घोटालों की CBI जाँच की मांग को लेकर संघर्ष कर रहे है, किन्तु सरकार सबकी अनदेखी कर बल पूर्वक आंदोलन की दबाने का काम कर रही है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
याचिका में हाईकोर्ट के समक्ष मुख्य बिंदु में सरकार के सन 2003 के शासनादेश जिसमें तदर्थ नियुक्ति पर रोक, संविधान के आर्टिकल 14, 16 व 187 का उल्लंघन माना गया है, जिसमें हर नागरिक को नौकरियों के समान अधिकार व नियमानुसार भर्ती का प्रावधान है, उत्तर प्रदेश विधानसभा की सन 1974 व उत्तराखंड विधानसभा की सन 2011की नियमावलीयों का उल्लंघन भी किया गया है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
याचिकाकर्ता अभिनव थापर ने बताया कि डॉ सुब्रमण्यम स्वामी से आग्रह है कि विधानसभा भर्ती घोटाले पर जनहित याचिका के निर्णय आने तक अपना माँग-पत्र वापिस लें। उत्तराखंड का युवा सिर्फ ” पारदर्शी परिक्षा व्यवस्था ” और पेपर लीक में संलिप्त सभी दोषियों को सजा दिलाने हेतु CBI जाँच की माँग कर रहे है। उत्तराखंड की धामी सरकार ने पक्षपातपूर्ण कार्य कर अपने करीबियों को समस्त नियमों को दरकिनार करते हुए विधानसभा जैसे प्रतिष्ठित विधी निर्माण के सबसे विश्वसनीय संस्थानों में नौकरियां दी है जिससे प्रदेश के लाखों बेरोजगार व शिक्षित युवाओं को सरकार और व्यवस्था पर भरोसा नहीं रहा। यह राज्य के युवाओं और जनता के साथ धोखा है, इसलिये यह सरकारों द्वारा किया गया बड़ा भ्रष्टाचार है। किन्तु धामी सरकार युवाओं पर लाठीचार्ज और दोषियों पर कोई कार्यवाही करती दिख नही रही है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
ये है डॉ. स्वामी का पत्र

डॉ. स्वामी के जिस पत्र और निकाले गए कार्मिकों की पैरवी से सामाजिक कार्यकर्ता अभिनव थापर और विजयपाल रावत को दिक्कत हुई। ऐसा ही कांग्रेस नेता 11 फरवरी को कर चुके हैं। तब कांग्रेस के प्रतिनिधिमंडल का विधानसभा अध्यक्ष से मिलना और उन्हें ज्ञापन देने का कोई विरोध नहीं हुआ। ना ही उनसे ज्ञापन वापस लेने की मांग की गई। वहीं, कल डॉ. स्वामी ने पत्र लिखा तो कांग्रेस नेता एवं सामाजिक कार्यकर्ता ने इसका कड़ा विरोध किया। 11 फरवरी को कांग्रेस के प्रतिनिधिमंडल ने विधानसभा अध्यक्ष ऋतु भूषण खंडूड़ी से उनके निवास पर मुलाकात की। इस दौरान इन कार्मिकों की समस्या की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए समाधान निकालने के लिए विधानसभा अध्यक्ष को ज्ञापन सौंपा गया। प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष करन माहरा ने किया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
इस मौके पर पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कहा था कि विधानसभा अध्यक्ष से कहा कि उत्तराखंड विधानसभा के बाहर विगत दो माह से भी अधिक समय से अपनी बहाली को लेकर धरना दे रहे विधानसभा सचिवालय के बर्खास्त कार्मिकों की वर्तमान परिस्थितियों की ओर आपका ध्यान आकृषित कराना चाहते हैं। इनकी लगभग 06 से 07 वर्ष की तदर्थ सेवाओं को सितम्बर 2022 में समाप्त कर दिया गया है। रावत ने कहा कि आज इन कार्मिकों के सामने गम्भीर आर्थिक संकट उत्पन्न हो गया है। उनके समक्ष परिवार के भरण पोषण एवं रोजी-रोटी को लेकर भी विकट परिस्थितियां खड़ी हो गई है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

प्रदेश अध्यक्ष करण माहरा ने कहा था कि सात वर्ष तक प्रदेश के इस सर्वोच्च संस्थान में पूर्ण ईमानदारी एवं निष्ठा के साथ सेवाएं देने के बाद आज कई कार्मिक ओवरऐज हो गये हैं। बर्खास्तगी के बाद कई विकलांग एवं विधवा कर्मचारियों के सम्मुख जीवन यापन को लेकर गंभीर चुनौतियां खड़ी हो गई है। बच्चों की स्कूल तथा कॉलेज की फीस व बुजुर्ग माता-पिता की दवाई आदि खर्च वहन करने में दिन-प्रतिदिन ये कार्मिक असमर्थ होते जा रहे हैं। सात साल की सेवा के बाद किसी कार्मिक ने बैंक से लोन लेकर घर बना लिया है तो किसी ने जमीन खरीद ली है। किसी ने बच्चों की उच्च शिक्षा के लिए बैंक से ऋण लिया है, लेकिन नौकरी से हटाए जाने के बाद यह लोग बैंक लोन की किश्तो का भुगतान करने में भी असमर्थ हो गये हैं। इन्हें किश्तों को जमा कराये जाने हेतु बैंक से कानूनी नोटिस भी आने लगे हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
माहरा ने कहा था कि ये सभी कार्मिक उत्तराखंड के दूरस्थ क्षेत्रों से ताल्लुक रखते हैं। अधिकांश कार्मिक गरीब एवं मध्यमवर्गीय परिवारों से हैं। देहरादून में किराए के मकानों में रहकर अपने बच्चों की शिक्षा-दीक्षा तथा बजुर्ग माता-पिता की देखरेख कर रहे हैं। इन कार्मिकों की उपरोक्त समस्याओं को ध्यान में रखते हुए विधान सभा में पुनः इनकी बहाली को लेकर एक गम्भीर पहल की जा सकती है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
प्रतिनिधिमंडल ने विधानसभा अध्यक्ष से सर्वदलीय बैठक बुलाकर सभी से रायशुमारी कर कोई न्याय संगत उचित फैसला करने के लिए निवेदन किया था। बैठक के दौरान विधानसभा अध्यक्ष से सभी ने अपेक्षा करते हुए कहा कि एक बार और वह पुनः पूरे प्रकरण पर पुर्नविचार करेंगी और निश्चित ही राज्यहित में फैसला लेंगी। प्रतिनिधिमंडल में पूर्व मंत्री मंत्री प्रसाद नैथानी, विधायक हरीश धामी,प्रदेश उपाध्यक्ष संगठन मथुरादत्त जोशी, महामंत्री संगठन विजय सारस्वत, मुख्य प्रवक्ता गरिमा दसौनी, नवनीत सती, गिरीश पपनै शामिल थे।

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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।