पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने 1971 के विजय दिवस पर सेना की गौरवगाथा को किया सैल्यूट
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आज 16 दिसम्बर विजय दिवस के अवसर पर देहरादून के दीन दयाल पार्क में सड़क संसद नाम से गोष्ठी की गई। इसमें उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने शहीदो को नमन कर अपनी संवेदनाये प्रकट की। साथ ही उन्होंने सेना की गौरवगाथा को सैल्यूट किया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
इस मौके पर उन्होंने कहा कि 1971 का विजय दिवस देश का इतिहास भारतीय उपमहाद्वीप का भूगोल बदलने वाला इतिहास रहा है। ये दिवस तत्कालीन भारतीय प्रधान मंत्री इन्दिरा गाँधी के त्वरित व दृढ़ निर्णय व जनरल मानिक शाह, जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा सहित हमारे सेना के अदम्य साहस व शोर्य का दिवस है। इस दिन पाकिस्तान के 90 हजार सैनिकों ने आत्मसमपर्ण कर दिया था। यह गौरवशाली गाथा इतिहास मे स्वर्ण अक्षरों मे लिखी जायेगी। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
उन्होने कहा कि अमेरिका के सातवें बेड़े को भेजने की धमकी के आगे भी इन्दिरा गांधी अड़िग रहीं। आज जो कुछ बगंलादेश मे हो रहा है, जिस प्रकार से हिन्दुओं के पर अत्याचार हो रहे हैं, उस पर प्रधानमंत्री व केन्द्र सरकार को तुरंत हस्तक्षेप करना चाहिए। साथ ही अपने अर्न्तराष्ट्रीय सम्बन्धों कुटनीति का भी प्रयोग करना चाहिए। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
उन्होने यह भी कहा कि 16 दिसम्बर 1971 की गौरवगाथा हमारे सैना के अदम्य साहस शोर्य की गौवरगाथा है। इसमे तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी, रक्षा मंत्री जगजीवन राम का भी कुशल नेतृत्व व दृढ़निश्चय का योगदान भी रहा है। भारत सरकार बंगलादेश मे हिन्दुओं की सुरक्षा के लिए जो भी कदम उठायेगी, हम उसमें उनके साथ हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
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समाजवादी पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारी सदस्य डॉ. एस एन सचान ने कहा कि 1971 के समय पाकिस्तान में जनरल याह्या खान राष्ट्रपति थे। उन्होंने पूर्वी हिस्से में फैली नाराजगी को दूर करने के लिए जनरल टिक्का खान को जिम्मेदारी दी। उनके द्वारा दबाव से मामले को हल करने के प्रयास किये गये, जिससे स्थिति पूरी तरह बिगड़ गई। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
कर्मचारी नेता जगदीश कुकरेती ने कहा कि अप्रैल 1971 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने मुक्ति वाहिनी को समर्थन देकरए बांग्लादेश को आजाद करवाने का निर्णय लिया। बांग्लादेश की आज़ादी की लड़ाई के दौरान मुक्तिवाहिनी का गठन पाकिस्तान सेना के अत्याचार के विरोध में किया गया था। 1969 में पाकिस्तान के तत्कालीन सैनिक शासक जनरल अयूब के खिलाफ पूर्वी पाकिस्तान में असंतोष बढ़ गया था और बांग्लादेश के संस्थापक नेता शेख मुजीबुर रहमान के आंदोलन के दौरान 1970 में यह अपने चरम पर था। मुक्ति वाहिनी एक छापामार संगठन था, जो पाकिस्तानी सेना के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध लड़ रहा था। मुक्ति वाहिनी को भारतीय सेना ने समर्थन दिया था। ये पूर्वी पाकिस्तान के लिए बहुत बुरा समय था। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
कार्यक्रम के आयोजक उत्तराखंड प्रदेश कांग्रेस कमेटी के वरिष्ठ उपाध्यक्ष सुरेन्द्र कुमार ने कहा कि भारत सरकार द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय से बारम्बार अपील की गयी, किन्तु भारतीय विदेश मन्त्री स्वर्ण सिंह के विभिन्न देशों के विदेश मंत्रियों से भेंट करने के बावजूद भी कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं प्राप्त हुई। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
कार्यक्रम की अध्यक्षता सुरेन्द्र कुमार ने औरसंचालन मोहन सिंह नेगी ने किया। कार्यक्रम मे जनगीत गायक सतीश धौलाखंडी ने जनगीतों से कार्यक्रम मे शमा बांधा। इस अवसर पर सोहन सिंह रजवार, जगमोहन मेहन्दीरत्ता, अवधेश पंत, अपना परिवार के अध्यक्ष पुरुषोत्तम भटट्, राकेश डोभाल, नवनीत गुसाई, विरेन्द्र पोखरियाल, राजकुमार जयसवाल, पूर्व प्रधान रितेश क्षेत्री, प्रभात डंडरियाल, सत्य प्रकाश चौहान, सुशील राठी, विनित नागपाल, पूर्व सैनिक महेन्द्र थापा, राजेश रावत, रश्मि, अंकिता, प्रीति, आशा, अमरकली आदि भी मौजूद रहे।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।