11 जनवरी 1948 को गोलीकांड में नागेंद्र सकलानी और मोलूराम ने दी शहादत, जानिए राजशाही से कैसे आजाद हुआ यह राज्य
सन 1857 के विद्रोह से टिहरी राज्य प्रभावित रहा। वहाँ के राजा सुदर्शन शाह ने ब्रिटिश सरकार के प्रति अपनी राजभक्ति प्रदर्शित की थी। 1859 में इनकी मृत्यु के पश्चात भवानी शाह (1859-1871) टिहरी राज्य के राजा बने। उनके समय में प्रजा खुश नहीं थी। अत: रवाई, जौनपुर, अठूर आदि क्षेत्रों में छोटे-छोटे विद्रोह हुए। परन्तु राजा भवानी शाह ने आर्थिक दंड देकर तथा मुचलका लिखवाकर उन विद्रोहों को दबा दिया।
रवाई में हुआ गोलीकांड
भवानी शाह के बाद उनके पुत्र प्रताप शाह (1871-86) का शासन काल लगभग शातिपूर्ण रहा। नरेन्द्र शाह के शासन काल (1919-46) के प्रारम्भिक वर्षों में टिहरी राज्य में कोई विशेष राजनीतिक घटना नहीं घटी। किन्तु 1930 में भीषण रवाई गोलीकाण्ड हुआ। जिससे टिहरी रियासत की जनता प्रभावित हुई। जब 1930 में सम्पूर्ण देश में नमक सत्याग्रह का धूम मचा हुई थी।
उस समय रवाई क्षेत्र के लोगों ने संगठित होकर राज्य की वन नीति के विरूद्ध एक वृहद् जन-आन्दोलन भड़का दिया। जिसके दमन के लिए टिहरी राज्य के अधिकारियों को पुलिस को शस्त्र उठाने के आदेश देने पड़े। परिणामस्वरूप कई लोग मारे गये और कई घायल हुए। टिहरी के जन आन्दोलनों में यह घटना रवाई गोलीकाण्ड के नाम से प्रसिद्ध है।
टिहरी राज्य प्रजामंडल की स्थापना
23 जनवरी 1939 को देहरादून में ‘टिहरी राज्य प्रजामंडल’ की स्थापना हुई और 29 अप्रैल 1939 को उसके प्राथमिक चुनाव सम्पन्न हुए। तत्पश्चात् दिल्ली, लाहौर, मसूरी आदि नगरों में आजीविका के लिए गये टिहरी निवासियों ने उन नगरों में भी प्रजामंडल स्थापित कर दी। इसी समय टिहरी राज्य के प्रतिनिधि सभा ने ‘रजिस्ट्रेशन आफ एसोसियेशन’ नामक एक विधेयक पारित किया। जिसका मुख्य उद्देश्य राज्य के अंतर्गत प्रजामंडल आदि की गतिविधियों पर नियंत्रण रखना था।
प्रजामंडल की ये थी मांगें
टिहरी राज्य प्रजामंडल की मुख्य माँगें पौन-टोटी कर तथा बरा बेगार जैसी अपमानजनक कुप्रथाओं को समाप्त करना और राज्य में उत्तरदायी शासन की स्थापना करना था। कहा जाता है कि प्रजामंडल टिहरी रियासत के अत्याचारों से पीड़ित जनता के लिए आशा की किरण थी। प्रजा की आशा की किरण प्रजामंडल को मान्यता देना तो दूर रहा। इसके विपरीत राज्य की ओर से उसकी गतिविधियों पर नियंत्रण रखने का प्रस्ताव पारित कर राज्य ने जन साधारण के असंतोष में वृद्धि कर दी।
विद्यार्थियों में हुआ राजनीतिक चेतना का विकास
रवाई गोलीकांड के पश्चात् 1939 तक टिहरी राज्य में कोई विशेष राजनैतिक घटना नहीं घटी। सन् 1939-40 तक टिहरी राज्य के विद्यार्थियों में राजनैतिक चेतना का विकास हो चुका था। 1940 में प्रताप हाई स्कूल, इंटर कालेज में परिवर्तित हो गया। विद्यार्थियों ने कालेज में विद्यार्थी संघ स्थापित करने की अनुमति मांगी। अनुमति न मिलने पर सितम्बर 1940 में छात्रों ने हड़ताल का आह्वान किया। राज्य की ओर से दमन नीति अपनाये जाने पर विद्यार्थियों ने गुप्त संगठन स्थापित कर अपना आन्दोलन जारी रखा।
श्रीदेव सुमन मिलते थे छात्रों से
इस अवधि में श्रीदेव सुमन निरंतर टिहरी राज्य के छात्रों से मिलते रहते थे और उन्हें उत्साहित करते थे। विद्यार्थियों के गुप्त संगठनों ने अध्यापकों को ज्यादतियों के विरुद्ध स्थान स्थान पर गुमनाम पोस्टर चिपकाने प्रारम्भ कर दिए। प्रताप इंटर कालेज के प्रधानाचार्य के अत्याचारों के विरूद्ध भी एक पोस्टर चिपकाया गया। जिसमें उन्हें मौत के घाट उतार देने की धमकी दी गयी थी। इस पोस्टर से सरकार सतर्क हो गई थी और 1941 में छात्र नेता रामचन्द्र उनियाल को गिरतार किया गया।
कई लोगों को किया गिरफ्तार
सन् 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन से प्रभावित होकर टिहरी राज्य की जनता ने ‘सार्वभौम सत्ता से नाता तोड़ो’ और ‘प्रजा से नाता जोड़ो’ नारों को एक स्वर से दोहराया। राज्य के अधिकारियों ने श्रीदेव सुमन को गिरफ्तार कर जेल में बंद कर दिया। मसूरी से नवयुवको का एक दल राष्ट्रीय ध्वज लिए टिहरी पहुँच गया। फलतः रियासती सरकार ने दमन चक्र चलाया और कई लोगों को गिरफ्तार कर लिया। 1944 मेश्रादव सुमन के बलिदान और 1946 आजाद हिन्द फौज के सैनिकों के टिहरी गढ़वाल में आगमन से वहाँ के जनांदोलन को गतिशीलता प्रदान हुई।
नए भू बंदोबस्त का विरोध
सन् 1946 में राज्य के कोष में वृद्धि करने के उद्देश्य से नया भू-बन्दोबस्त लागू किया गया। बन्दोबस्त कर्मचारी जनता को परेशान करते थे। ऐसी स्थिति में कड़ाकोटी की जनता अपने नेता दौलतराम और युवा नेता नागेन्द्र सकलानी के नेतृत्व में संगठित होकर नजराना, पौन-टोटी, बरा-बेगार और जुर्माने हर्गिज नहीं देंगे के नारे लगाती हुई एक जत्थे के रूप में गाँव-गाँव होते हुए नरेन्द्रनगर पहुँची। वहाँ पहुँचने पर राजा के सम्मुख अपनी मांगें रखी। टिहरी राज्य की ओर से मांगों की ओर कोई ध्यान नहीं दिया गया। इसके विपरीत दोनों नेताओं को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। सन् 1946 में टिहरी राज्य प्रजामंडल को टिहरी राज्य की ओर से मान्यता प्रदान की गयी। जिससे जन-आन्दोलन को एक नयी गति और दिशा मिली।
कई घरों को किया नीलाम, लोगों को भेजा जेल
टिहरी राज्य के सकलाना में, राज्य द्वारा आलू की पैदावार का एक भाग तथा सहदारी कर वसूल किया जाता था। 15 अगस्त 1947 को देश स्वतंत्र हो जाने पर सकलाना की जनता को बल मिला और वहाँ की प्रजा ने सड़कों, अस्पतालों और स्कूलों की माँग की तथा भूमि कर न देने का निश्चय किया। अत: राज्य की ओर से स्पेशल मजिस्ट्रेट के साथ फौज को कर वसूलने के लिए भेजा गया। सेना ने जनसाधारण को आतंकित करने के लिए लूट खसोट की। अनेक घरों को नीलाम कर दिया व लोगों को पकड़कर जेल में बन्द कर दिया।
सत्याग्रहियों की भर्ती की शुरू
राज्य द्वारा सकलाना में अपनायी गयी कठोर दमन नीति का प्रजामंडल ने विरोध किया और टिहरी की जनता को सामंतशाही शासन से मुक्त करवाने के लिए सत्याग्राहियों की भर्ती आरम्भ की। 16 दिसम्बर 1947 को सकलाना के मुआफीदारों ने अपने समस्त अधिकार प्रजामंडल को सौंपकर आजादी की घोषणा कर दी। इसका परिणाम यह हुआ कि सकलाना में प्रजामंडल ने ‘आजाद पंचायत’ कायम कर राज्य कर्मचारियों को वहां से बाहर कर दिया। सकलाना के अनुकरण पर टिहरी राज्य के कई स्थानों में आजाद पंचायतें’ स्थापित की जाने लगी। यहाँ तक कि परगने के केन्द्र कीर्तिनगर में भी आजाद पंचायत की स्थापना हो गई।
नागेंद्र सकलानी और मोलूराम ने दी शहादत
10 जनवरी1948 को नागेन्द्र सकलानी के नेतृत्व में जनता ने कीर्तिनगर की कचहरी में कब्जा कर वहाँ राष्ट्रीय ध्वज फहरा दिया। टिहरी राज्य के अधिकारियों ने पुन: कचहरी पर अधिकार करने का प्रयत्न किया, परन्तु जनता के आक्रोश के समक्ष वे विफल रहे। रियासती कर्मचारियों द्वारा जनता को भयभीत करने के उद्देश्य से अश्रु गैस का प्रयोग किया गया। जनता ने उत्तेजित होकर कचहरी में आग लगा दी।
10 जनवरी 1948 को नागेन्द्र सकलानी ने प्रजामंडल के युवा नेता त्रेपन सिंह नेगी, खिमानन्द गोदियाल, किसान नेता दादा दौलत राम, कांग्रेसी कार्यकर्त्ता त्रिलोकीनाथ पुरवार, कम्युनिस्ट कार्यकर्त्ता देवी दत्त तिवारी के सामूहिक नेतृत्व में सैकड़ों ग्रामीणों के साथ कीर्तिनगर के न्यायलय तथा अन्य सरकारी भवनों को घेर कर रियासत की फौज तथा प्रशासन से आत्मसमर्पण करवा दिया। कीर्तिनगर को आजाद घोषित करते हुए कीर्तिनगर आजाद पंचायत की घोषणा कर दी गयी। 11 जनवरी 1948 को जब आन्दोलनकारी राजधानी टिहरी कूच की तयारी कर रहे थे तब रियासत की नरेन्द्र नगर से भेजी गयी फौज ने कीर्तिनगर पर पुन: कब्ज़ा करने का प्रयास किया। कीर्तिनगर आजाद पंचायत की रक्षा के संघर्ष में कामरेड नागेन्द्र सकलानी और मोलूराम भरदारी, शाही फौज के एक अधिकारी कर्नल डोभाल की गोलियों का शिकार बन गए। 12 जनवरी 1948 की सुबह पेशावर कांड के नायक चन्द्र सिंह गढ़वाली कोटद्वार से कीर्तिनगर पहुँच गए. उनके सुझाव पर शहीद नागेन्द्र सकलानी और मोलू भरदारी की अर्थियों को आन्दोलनकारी उठा कर टिहरी की दिशा में चल पड़े।
विद्रोह के समक्ष झुकी सरकार
जनता के युवा नेता नागेन्द्र सकलानी को कीर्तिनगर में रियासत सैनिकों द्वारा गोली मार दिए जाने के पश्चात् टिहरी राज्य के विरूद्ध चल रहे जनांदोलन का नेतृत्व पेशावर सैनिक विद्रोह के नेता चन्द्रसिंह गढ़वाली के सबल हाथों में आ गया। स्थान-स्थान पर जन आक्रोश भड़का। रियासती कर्मचारियों को विद्रोह के समक्ष वापिस लौटना पड़ा। परिणामत: फरवरी 1948 में टिहरी में अंतरिम सरकार’ की स्थापना की गयी। अंतरिम सरकार ने टिहरी में अनेक सुधार एवं निर्माण के कार्य किये। भारत सरकार ने एक विज्ञप्ति प्रसारित कर पहली अगस्त 1249 को टिहरी राज्य को संयुक्त प्रान्त में मिलाने की घोषणा कर दी।
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लेखक का परिचय
लेखक देवकी नंदन पांडे जाने माने इतिहासकार हैं। वह देहरादून में टैगोर कालोनी में रहते हैं। उनकी इतिहास से संबंधित जानकारी की करीब 17 किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं। मूल रूप से कुमाऊं के निवासी पांडे लंबे समय से देहरादून में रह रहे हैं।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।