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August 5, 2025

जंगलों में आग, सरकारी दावे जमीन पर फेल, कुछ कर लो सरकारः सूर्यकांत धस्माना

उत्तराखंड राज्य में विगत एक माह से वनाग्नि की आपदा से राज्य की वन तथा जैव सम्पदा का अत्यधिक नुकसान हो चुका है। राज्य के 1500 हैक्टेयर से अधिक जंगल आग लगने से नष्ट हो चुके हैं। वनाग्नि की इस आपदा से राज्य के पहाड़ी क्षेत्र वर्तमान में भयावह स्थितियों से गुजर रहे हैं। वनाग्नि की इस आपदा को नियंत्रित करने तथा इसका शमन करने में राज्य सरकार पूर्ण रूप से अक्षम साबित हुई है। वनाग्नि की आपदा से निपटने के सारे सरकारी दावे जमीनी स्तर पर फेल हैं। यह बात अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य व उत्तराखंड प्रदेश कांग्रेस कमेटी के वरिष्ठ उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना ने कही। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

नहीं है विभागों में समन्वय
उन्होंने कहा की वनाग्नि की आपदा में उत्तराखंड सरकार के आपदा प्रबन्धन विभाग एवं वन विभाग के मध्य कोई समन्वयन नहीं है। किसी भी आपदा का प्रबन्धन करने में पूर्व तैयारी किये जाने की आवश्यकता होती है। आपदा प्रबन्धन विभाग में कार्य कर रहे विषेषज्ञों, सचिव व उच्च स्तर के अधिकारियों को भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) तथा अन्य वैश्विक संस्थाओं की रिपोर्ट में इस वर्ष औसत से अधिक तापमान की जानकारी दी गई थी। इसके बावजूद आपदा प्रबन्धन विभाग में जंगल में लगने वाली आग को लेकर वन विभाग के साथ किसी भी प्रकार का समन्वयन पूर्व से नहीं किया गया। साथ ही कोई भी तैयारी बैठक या जमीनी स्तर पर ससमय कार्ययोजना बनाये जाने के प्रयास नहीं किये गये। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

बजट की मांग को भी किया दरकिनार
सूर्यकांत धस्माना ने कहा कि वन विभाग के ने वनों में लगने वाली आग के लिए बजट की माँग की गयी थी, परन्तु सचिव आपदा प्रबन्धन द्वारा इस बजट को ससमय वन विभाग को उपलब्ध नहीं करवाया गया। इस सम्बन्ध में अभी कुछ समय पूर्व मुख्यमंत्री उत्तराखण्ड की बैठक में मुख्य सचिव उत्तराखंड द्वारा सचिव आपदा प्रबन्धन को समय से बजट उपलब्ध नहीं कराये जाने पर नाराजगी जाहिर की गयी थी। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

नहीं हैं उपकरण
सूर्यकांत धस्माना ने कहा कि जंगल में आग को नियंत्रित करने के लिए वन विभाग के फील्ड कार्मिकों के पास बेसिक टूल्स (BasicTools) ही नहीं हैं। यहां तक कि डीएम और डीएफओ तक के अधिकारी पत्तों के झाडू से आग को बुझा रहे हैं। और ऐसे वीडियो सोशल मीडिया पर दिख रहे हैं। वन कार्मिकों के पास बेसिक जूते जूते और फायर फाइटिंग की ड्रेस तक नहीं हैं। ये कार्मिक अपनी जान जोखिम में डालकर आग को नियंत्रित कर रहे हैं। जहां एसडीआरएफ के आपदा बजट में करोड़ों रूपये अवांछनीय व छोटे-मोटे सिविल कार्यों पर खर्च कर दिये गये हैं। क्या वहाँ आपदा विभाग के पास इतना भी बजट नहीं है कि वनाग्नि आपदा के लिए बेसिक सामग्री क्रय करने को वन विभाग को सहायता दी जाए। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

ठोस कार्ययोजना का अभाव
उन्होंने कहा की वनाग्नि की इस भयावह आपदा के बाद की परिस्थितियाँ भी उत्तराखंड राज्य के लिए नई आपदाओं के होने की आपंका को प्रबल करेगी। सूर्यकांत धस्माना ने कहा कि फॉरेस्ट फायर सर्वे आफ इंडिया (FSI) ने आपदा प्रबन्धन विभाग तथा वन विभाग को लगातार फायर अलर्ट भेजे। इसके बावजूद भी इन जंगलों को जलने से सरकार बचा नहीं पाई। इसका मुख्य कारण विभागों के पास कोई ठोस कार्ययोजना का न होना तथा आपसी समन्वयन का अभाव है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

वैज्ञानिक की नजर में कारण
सूर्यकांत धस्माना ने कहा वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के एक पूर्व जाने माने वैज्ञानिक पीएस नेगी ने बताया है कि वनाग्नि के कारण हिमालय का पूरा इको सिस्टम (Eco-system) प्रभावित हुआ है। आग के कारण उठे धुएं से हिमालयी ग्लेषियरों में ब्लैक कार्बन (Black Carbon) की मात्रा बढ़ गई है। इस ब्लैक कार्बन के कारण ग्लेशियरों के पिघलने की गति तेज हो जायेगी। यदि मानसून के दौरान अत्यधिक वर्षा हिमालयी क्षेत्र में हुई तो राज्य में बड़ी आपदा घटित हो सकती है। इस सम्बन्ध में भी सरकार की तैयारी आधी अधूरी ही नजर आ रही है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

भवन बना, लेकिन परिचालन केंद्र कहां गया
उन्होंने कहा की उत्तराखण्ड राज्य आपदा प्रबन्धन प्राधिकरण का भवन तो तैयार हो गया है, परन्तु वर्तमान तक वहाँ राज्य आपातकालीन परिचालन केन्द्र नहीं बन पाया है। पूरा आपदा प्रबन्धन विभाग आधा सचिवालय से या फिर आधा नये भवन से संचालित हो रहा है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

मानसून को लेकर चिंता
सूर्यकांत धस्माना ने कहा कि जून माह से राज्य में मानसून सक्रिय हो जाएगा। चारधाम यात्रा भी चरम पर होगी। अतः यदि सरकार समय रहते आपदा प्रबन्धन तंत्र को सक्रिय नहीं करती तो सरकार मानसून में भी आपदाओं का सही प्रबन्धन नहीं कर पाएगी।
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Bhanu Prakash

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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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