उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में तेजी से घटते खेत- खलिहान, मात्र 24 प्रतिशत बुआई क्षेत्रः भूपत सिंह बिष्ट
भले ही उत्तराखंड में कोरोना की मार सबसे अधिक अस्थायी राजधानी देहरादून पर लगी हो, लेकिन खेती – किसानी को लेकर यह जनपद ज्यादा ही शांत बना हुआ है। देहरादून की जनसंख्या 2011 में 16.97 लाख दर्ज की गई और इस में ग्रामीण जनसंख्या 56 प्रतिशत के आसपास है। सरकारी आंकड़ों में, लगभग आठ लाख की ग्रामीण आबादी में मात्र 60 हजार कृषि कार्यों से सीधे जुड़े हैं। यानि देहरादून में अब खेत सिकुड़ते जा रहे हैं। छोटे और सीमांत किसानों की संख्या 49 हजार के आसपास है।
ये है स्थिति
देहरादून का कुल क्षेत्रफल 3088 किमी में फैला है और इसका 55 प्रतिशत लगभग 2 लाख एक हजार हेक्टेयर वन भूमि है। शेष 161,543 हेक्टेयर भूमि में बुआई क्षेत्र मात्र 24 प्रतिशत यानि 39 231 हेक्टेयर कागजों पर बचा है। कुल फसल क्षेत्र 57,323 हेक्टेयर बताया जाता है और यह उपलब्ध भूमि का 35 प्रतिशत है।
साढ़े सात लाख आबादी ग्रामीण
देहरादून जनपद की सीमायें हिमाचल प्रदेश और उत्तर प्रदेश से लगी हैं। उत्तराखंड के तीन जनपदों टिहरी, उत्तरकाशी और पौड़ी से भी देहरादून जुड़ा है। जनपद में गांवों की संख्या 718, ग्राम पंचायतें 382 और 6 विकास खंड हैं। 382 ग्राम पंचायतों में विकासखंड चकराता में 114, कालसी में 111, सहसपुर में 46 और विकासनगर में 43, रायपुर में 35, डोइवाला में 33 ग्रामपंचायत काम कर रही हैं। लगभग 7 लाख 55 हजार आबादी ग्रामीण है।
बुआई क्षेत्र सिकुड़ना निराशाजनक
एक लाख 84 हजार हेक्टेयर में 24 प्रतिशत फसल बुआई क्षेत्र का होना निराशाजनक है। डोइवाला विकासखंड के 19 हजार हेक्टेयर में सबसे अधिक 46 प्रतिशत, विकासनगर लगभग 18 हजार हेक्टेयर में 33 प्रतिशत, सहसपुर 34 हजार हेक्टेयर में 29 प्रतिशत, कालसी के 36 हजार हेक्टेयर में 19 प्रतिशत चकराता 55 हजार हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में 18 प्रतिशत और रायपुर विकास खंड के 27768 हेक्टेयर में मात्र 15 प्रतिशत भूमि में बुआई हो रही है। इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि कृषि भूमि का उपयोग अब अन्य धंधों में हो रहा है और शासन, प्रशासन और पंचायती राज से जुड़ी तमााम संस्थायें इस से जानबूझकर आंख मूंद रही हैं।
बैंकों की भूमिका
राजधानी देहरादून में 37 बैंकों की 565 शाखायें काम कर रही हैं। इन में 20 बैंकों की मात्र 164 ग्रामीण शाखायें हैं। बाकि शेष 401 बैंक शहरी या अर्द्धशहरी क्षेत्रों में हैं। विगत 31 मार्च को देहरादून जनपद का क्रेडिट और डिपाजिट रेश्यों 40.58 प्रतिशत बताया गया है। किसी भी प्रदेश या जनपद की खुशहाली में इस रेश्यों का विशेष महत्व होता है। यानि प्रत्येक 100 रूपये की जमा में 41 रूपये से कम बैंकों ने ऋण वितरित किए हैं। बाकि जमा का उपयोग प्रदेश से बाहर हो रहा है। विशेषकर सरकारी और प्राइवेट बैंक उत्तराखंड से डिपोजिट उठाकर अन्य स्थानों पर ऋण साख उपलब्ध कराते हैं।
ये है सरकारी दावा
सरकारी आंकड़ों में दावा किया गया है कि विगत तीन वर्षों से ऋण प्रवाह के 95 प्रतिशत लक्ष्य हासिल कर लिए गये हैं। पिछले वित्तीय वर्ष में 3935 करोड़ के प्राथमिक क्षेत्र के ऋण लक्ष्य के सापेक्ष 3745 करोड़ वितरित करने में सफलता अर्जित हुई है।
कोरोनाकाल में योजनाओं के प्रवाह में आई कमी
कोरोना काल के दौरान प्राथमिक क्षेत्र में 4506 करोड़ के लक्ष्य निर्धारित किए गये हैं और स्वाभाविक है कि कोरोना बंदी के कारण इन योजनाओं के प्रवाह में भारी कमी आई है। फिर भी कृषि ऋण – फसल उत्पादन, रखरखाव, बाजार, और सहायक गतिविधियों के लिए 784 करोड़ तथा कृषि आधार भूत संरचना और अनुषंगी गतिविधियों के लिए 98 करोड़ निर्धारित किए गए हैं।
सूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्योग एमएसएमई के लिए 2856 करोड़, एक्सपोर्ट, शिक्षा एवं आवास के लिए 694 करोड़ और अन्य प्राथमिक क्षेत्र के मद में 73 करोड़ का प्रावधान है। कुल प्राथमिक क्षेत्र में 4506 करोड़ ऋण वितरण का लक्ष्य है।
ऋण की व्यवस्था
बेरोजगार युवाओं की जानकारी के लिए पशुपालन, डेयरी के लिए 132 करोड़, भेड़, बकरी सूअर पालन के लिए 15 करोड़ 51 लाख, रेशम पालन, बागान व बागवानी हेतु 107 करोड़, मछली पालन, कृषि मशीनों, भंडारण व विपणन, खाद, बीज, जैव तकनीकी हेतु पृथक ऋण की व्यवस्था बैंकों में उपलब्ध है।
खेती पर भी तलाशना होगा भविष्य
देहरादून जिले में धान, गेहूं, मंडुआ, आलू, सेब, टमाटर और अदरक की फसल के लिए बीमा उपलब्ध है। कृषि को जिले का प्रमुख व्यवसाय बताया गया है और कृषि, बागवानी, आटा चक्की, पशुचारा, आवाश्यक तेल, फल, सब्जी और मसाला प्रसंस्करण आर्थिक गतिविधियां हैं। फलों में आम, अमरूद, आड़ू, स्ट्राबेरी, नाशपाती, सेब और लीची का उत्पादन देहरादून में किया जाता है।
सरकारी नौकरी से इतर अब युवाओं को रोजगार के लिए खेती और अन्य प्राथमिक क्षेत्रों में भी अपना भविष्य तलाशना होगा और स्वरोजगार से धीरे – धीरे संपन्नता की ओर बढ़ना है।
लेखक का परिचय
भूपत सिंह बिष्ट
स्वतंत्र पत्रकार, देहरादून, उत्तराखंड।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।