उर्दू साहित्य के मशहूर शायर शम्सुर्रहमान फारूकी का निधन, कोरोना को दी थी मात
उर्दू साहित्य के मशहूर शायर व लेखक शम्सुर्रहमान फारूकी ने दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया। वह 85 वर्ष के थे। 25 दिसंबर की सुबह करीब 11 बजे फारूकी ने आखिरी सांस ली। वह अपने प्रयागराज स्थित आवास में रह रहे थे। जैसे ही फारूकी की मौत के निधन की खबर सामने आई साहित्य प्रेमियों में शोक की लहर दौड़ गई। बता दें कि पिछले महीने 23 नवंबर को कोरोना को मात देकर वापस घर लौटे थे। शम्सुर्रहमान फारुकी काफी लंबे वक्त से बीमार चल रहे थे। शम्सुर्रहमान फारुकी को पद्म श्री समेत कई बड़े अवार्ड से नवाजा जा चुका है। शम्सुर्रहमान फारुकी का जन्म 30 सितंबर 1935 को उत्तर प्रदेश में हुआ था। इन्होंने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से एमए की डिग्री हासिल की है।
अपने जीवन में उर्दू के मशहूर आलोचक और लेखक शम्सुर्रहमान फारुकी ने कई साहित्यों की रचना की है। उनको पद्म श्री से भी नवाजा जा चुका है। इसके अलावा फारुकी को सरस्वती सम्मान भी प्राप्त है। समालोचना तनकीदी अफकार के लिए इन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार (उर्दू) से भी सम्मानित किया जा चुका है। फारुकी का ‘कई चांद थे सरे आसमां’ नामक उपन्यास काफी चर्चित रहा है।
इसके अलावा उन्होंने ‘शेर, गैर शेर और नस्त्र’, ‘गंजे सोख्ता’, ‘सवार और दूसरे अफसाने’, ‘जदीदियत कल और आज’ की रचना भी की है। फारुकी भारतीय कवि और उर्दू समीक्षक और सिद्धांतकार के तौर पर अपनी पहचान रखते है। उन्होंने साहित्य को नए आयाम दिए। इसके अलावा उन्होंने साहित्यिक आलोचना के वेस्टर्न सिद्धांतों को अपनाया और फिर उन्हें उर्दू साहित्य में अमलीजामा पहनाया।
अपने करियर में फारुकी ने भारतीय डाक सेवा के लिए भी काम किया है। हालांकि उन्होंने लेखन की शुरुआत 1960 में ही कर दी थी। इसके अलावा उन्होंने पोस्टमास्टर-जनरल और पोस्टल सर्विसेज बोर्ड, नई दिल्ली के मेंबर के रूप में भी अपनी सेवाएं दी। यहां तक की फारुकी अपनी साहित्यिक पत्रिका के संपादक भी थे। फारुकी ने पेंसिल्वेनिया यूनिवर्सिटी में कुछ वक्त तक प्रोफेसर के तौर पर भी अपनी सेवाएं दी है।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।