एम्स के ई सम्मेलन में विशेषज्ञों ने महामारी की चुनौतियों पर की चर्चा, शौचालय से एम्स को परेशानी
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान एम्स ऋषिकेश में संक्रामक बीमारियों के प्रति माइक्रोबायलाजिस्टों की विशेष भूमिका विषय पर ई-सम्मेलन का आयोजन किया गया।

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान एम्स ऋषिकेश में संक्रामक बीमारियों के प्रति माइक्रोबायलाजिस्टों की विशेष भूमिका विषय पर ई-सम्मेलन का आयोजन किया गया। सम्मेलन के दौरान वर्चुअल माध्यम से जुड़े देशभर के विशेषज्ञों ने कोविड19 महामारी के दौरान भविष्य की चुनौतियों पर विचार साझा किए।
एम्स ऋषिकेश के माइक्रोबायलाजी विभाग में एसोसिएशान ऑफ मेडिकल माइक्रोबायोलॉजिस्ट यूपी-यूके चैप्टर के तत्वावधान में 17वें ई-सम्मेलन का आयोजन यूपी-यूके माइक्रोकॉन- 2021 का आयोजन किया गया। इसमें कोविड-19 महामारी के दौरान मुख्यरूप से सामने आई विभिन्न चुनौतियों और भविष्य में संक्रामक रोगों के पैर पसारने की दशा में स्वयं को तैयार करने के उद्देश्य से माइक्रोबायलोजिस्टों ने वर्चुअल कांफ्रेंस के माध्यम से विस्तृत मंथन किया।
एम्स निदेशक पद्मश्री प्रोफेसर रवि कांत की देखरेख और डीन एकेडमिक प्रो. मनोज गुप्ता जी के मार्गदर्शन में आयोजित कार्यशाला में उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, चंडीगढ़ और महाराष्ट्र सहित विभिन्न राज्यों के 213 डेलीगेट्स ने प्रतिभाग किया। इस अवसर पर अपने संदेश में एम्स निदेशक पद्मश्री प्रोफेसर रवि कांत ने वर्तमान परिप्रेक्ष्य में सम्मेलन को लाभकारी और ज्ञानवर्धक बताया। उन्होंने कहा कि कोविड-19 जैसी सभी संक्रामक बीमारियों पर गंभीरता से रिसर्च की आवश्यकता है। निदेशक एम्स प्रो. रवि कांत जी ने कहा कि प्रत्येक माइक्रोबाॅयलोजिस्ट को क्लीनिकली ओरिएंटेड होना चाहिए।
डीन एकेडमिक प्रोफेसर मनोज गुप्ता ने व्याख्यानमाला के विषयों की सराहना की, उन्होंने किसी भी संक्रामक बीमारी अथवा महामारी के दौरान माइक्रोबायलॉजिस्टों की भूमिका को अति महत्वपूर्ण बताया। बताया कि ऐसे आयोजनों से नवोदित वैज्ञानिकों को अनुसंधान की सही दिशा मिलती है और नया अनुभव प्राप्त होता है।
सम्मेलन के पहले सत्र में माल्डी टाफ, आईएफए, सीबीनेट, टीएमए कोविड-19 टेस्टिंग, सिक्वेसिंग आदि 5 विषयों की कार्यशाला आयोजित की गई। दूसरे सत्र में टीबी, दिमागी बुखार, एन्टीमाइक्रोविगुल्स सर्विलांस व कोविड -19 समेत 7 विषयों पर व्याख्यान प्रस्तुत किए गए। इसके अलावा सम्मेलन के दौरान एसोसिएशन की जीबीएम बैठक और मौखिक वैज्ञानिक सत्र का आयोजन भी किया गया।
संस्थान की माइक्रोबायोलॉजी विभागाध्यक्ष व आयोजन समिति की अध्यक्ष प्रोफेसर प्रतिमा गुप्ता ने बताया कि सम्मेलन का उद्देश्य चिकित्सा मुद्दों पर सभी माइक्रोबायोलॉजिस्टों के विचार व अनुभवों को साझा करना था। उन्होंने कहा कि इस प्रकार के आयोजनों से चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में नए आयाम विकसित होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।
आयोजन समिति के सचिव एडिशनल प्रोफेसर डा. बलरामजी ओमर ने ई-सम्मेलन को अनेक दृष्टि से विशेष लाभकारी बताया। उन्होंने कहा कि सम्मेलन द्वारा एक-दूसरे से प्राप्त अनुभवों के आधार पर माइक्रोबायोलॉजिस्टों को विभिन्न बीमारियों के संक्रमण के निदान को नई दिशा मिलेगी। डा. बलरामजी ने बताया कि सम्मेलन में इस वर्ष का यूसी चतुर्वेदी ओरेशन अवार्ड डा. वी.एल. नाग को प्रदान किया गया। इसके अलावा डा. अयागिरी अवार्ड और प्रो. आशा माथुर अवार्ड से क्रमशः एसजीपीजीआईएमएस लखनऊ की डा. श्वेता सिंह और डा. अंकिता को नवाजा गया। पोस्टर और माइक्रोबायोलॉजी के विभिन्न वर्गों से संबंधित पुरस्कार एम्स ऋषिकेश की डा. शशि रेखा, डा. अर्पणा सिंह, डा. प्रतीक्षा काम्बोज और डा. वान्या सिंह को प्रदान किया गया। इसके अलावा टीएमयू, उत्तर प्रदेश के मोहम्मद जुल्फीकार और आरएमएल लखनऊ की डा. मनोरमा यादव को भी इसी श्रंखला हेतु पुरस्कृत किया गया।
सम्मेलन में आयोजन समिति के सदस्य प्रो. नीलम कायस्था, डा. योगेंद्र मथुरिया, डा. दीपज्योति कलिता, डा. मोहित भाटिया, डा. विश्वजीत और डा. अम्बर के अलावा आईएएमएम के अध्यक्ष डा. मस्तान सिंह, उपाध्यक्ष डा. जीसी उपाध्याय, सचिव डा. रूंगमयी मारक आदि मौजूद थे।
प्रशासन से एम्स ने लगाई गुहार
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान एम्स ऋषिकेश ने प्रशासन से संस्थान भवन के गेट नंबर तीन के बाहर निर्माणाधीन जनता शौचालय के निर्माण कार्य पर रोक लगाने की प्रार्थना की।
एम्स की ओर से बताया गया कि संस्थान टर्सरी लेवल का संस्थान है, जिसमें अंगदान प्रत्यारोपण केंद्र के प्रस्ताव को मंजूरी मिल चुकी है। यहां कॉर्निया ट्रांसप्लांट शुरू हो चुका है। जल्द किडनी, हार्ट व लीवर ट्रांसप्लांट सेंटर जल्द शुरू किए जाने हैं। लिहाजा हार्ट, किडनी, लीवर ट्रांसप्लांट सेंटर तक अंगों को प्रत्यारोपण के लिए लाने के लिए ग्रीन कॉरीडोर बनाया जाना नितांत आवश्यक है। इसके लिए सार्वजनिक मार्ग पर अतिक्रमण व अनावश्यकरूप भीड़भाड़ से व्यवधान उत्पन्न हो सकता है। बताया गया कि जहां पब्लिक टॉयलट का निर्माण किया जा रहा है वह एम्स ऋषिकेश का गेट नंबर 3 है जो कि ओपीडी / आईपीडी रोगियों के प्रवेश और निकासी के लिए मुख्य द्वार है। इसके अलावा यह ट्रामा और आपातकालीन रोगियों का एकमात्र प्रवेश द्वार भी है। जिससे होकर दैनिकरूप से लगभग 10,000 से अधिक लोग आवागमन करते हैं। बताया गया कि इसी द्वार से एम्स ऋषिकेश में राज्य सरकार द्वारा स्थापित कोविड हायर सेंटर का पहुंच और पब्लिक पार्किंग का माध्यम भी है। ऐसे में अनेक दृष्टि से महत्वपूर्ण इस मार्ग के किनारे एम्स की चहारदिवारी से सटाकर निर्माण कार्य से ब्रेन स्ट्रोक, हार्ट अटैक, दुर्घटना पीड़ितों को क्रिटिकल केयर सेंटर तक पहुंचाने व अन्य सार्वजनिक आवागमन में बाधा उत्पन्न होने व यातायात जाम से प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की पूरी आशंका है।
एम्स की ओर से बताया गया कि इसी निर्माण स्थल से बामुश्किल 50 मीटर पर एम्स ऋषिकेश का हेलीपैड बना है। जहां पर अमूमन गंभीर प्रकृति के मरीजों को एयरलिफ्ट कर एम्स अस्पताल पहुंचाया जाता है। हेली लैंडिंग और टेक ऑफ के वक़्त सुरक्षा के लिहाज़ से गेट न 3 का ट्रैफिक रोकना पड़ता है। जो बाहर खड़ी एम्बुलेंस में गम्भीर मरीज के लिए घातक हो सकता है। अतः एम्स द्वारा एक और पर्यायी (वैकल्पिक)गेट बनाने की योजना भी है।
इसके अलावा एम्स संस्थान के ठीक बाहर इस पब्लिक टॉयलेट का निर्माण किए जाने से राष्ट्रीय महत्व के संस्थान का सौंदर्यीकरण तो प्रभावित होगा ही इससे साथ साथ संस्थान की सुरक्षा और अन्य चीजें भी प्रभावित होंगी। शौचालय निर्माण किए जाने से स्वच्छता के प्रयासों के भी क्षीण होने की काफी हद तक संभावनाएं हैं।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।