परीक्षाओं का मौसम और टीचर की स्पेशल ड्यूटी
ज्यादातार घरों का माहौल भी आजकल शांत है। इसका कारण है कि बच्चों के साथ ही बड़े छात्रों की परिक्षाओं का समय चल रहा है।

ये बात इसलिए कह रहा हूं क्योंकि इस बार कई विद्यालयों में आफलाइन परीक्षा हुई तो फेल होने वाले छात्रों की संख्या भी काफी अधिक है। इस बात को अभिभावकों को भी समझना होगा कि बगैर स्कूल भेजकर बच्चों का बौद्धिक विकास नहीं हो सकता है। पिछले साल आनलाइन परीक्षाएं हुई तो अधिकांश से कितनी ईमानदारी से परीक्षा दी होंगी, ये या तो छात्र जानते हैं, या फिर अभिभावक।
फिलहाल घर-घर का माहौल पढ़ाई का बना हुआ है। कहीं बच्चे पढ़ रहे हैं और माता-पिता उन्हें पढ़ा रहे हैं। वहीं कहीं बच्चों के साथ ही उनके अभिभावक भी किसी न किसी परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं। कितना बदलाव आ गया शिक्षा में। पहले कभी दसवीं या बाहरवीं के बाद पढ़ाई में ब्रेक लग जाता था। आगे की पढ़ाई के लिए काफी कम ही लोग गांव से बाहर कदम रखते थे। अब है कि शिक्षा का अंत होने का नाम ही नहीं लेता।
करीब पच्चीस साल पहले जब मेरे से बड़ी बहन की शादी हुई तो उस समय मेरा जीजा नौकरी के साथ ही पढ़ाई कर रहा था। शादी हुई बच्चे हुए, आफिस में तरक्की हुई, लेकिन उन्होंने पढ़ना नहीं छोड़ा। आज भी वह किसी न किसी परीक्षा की तैयारी करते रहते हैं। उनका कहना है कि यदि किसी विषय को पढ़ोगे तो उसमें से बीस फीसदी भी दिमाग में घुसेगा तो यह ज्ञान कहीं न कहीं उपयोगी साबित होगा। इसीलिए वह पढ़ाई जारी रखे हुए हैं।
अब परीक्षा को ही लो। परीक्षा कराने मे भी स्कूलों की कार्यप्रणाली में काफी अंतर आ गया है। पहले दृष्टिहीन, विकलांग आदि छात्र को श्रुत लेखक मिलता था। ऐसे छात्रों को परीक्षा के समय अन्य विद्यार्थियों से अलग बैठाया जाता था। ताकी उनके साथ बैठा व्यक्ति प्रश्न पत्र को उन्हें सुनाए और जब वह उत्तर लिखवाए तो दूसरा विद्यार्थी न सुन सके। आइसीएसई बोर्ड की परीक्षा में ऐसे छात्रों के साथ जिस टीचर की ड्यूटी लगती है, उसे स्पेशल ड्यूटी का नाम दिया गया है। यानी छात्र के लिए भी अलग से व्यवस्था की जाती है और टीचर भी उसके साथ अलग ही होता या होती है।
एक बार की बात है ऐसी ही मेरी परिचित एक शिक्षिका की स्पेशल ड्यूटी लगी। मैने शिक्षिका से पूछा कि यह स्पेशल ड्यूटी क्या होती है। इस पर उसने बताया कि जब ड्यूटी करूंगी तभी मुझे भी पता चलेगा। कुछ दिन बाद जब वह ड्यूटी देने के बाद मुझे मिली, तब उसने मुझे इस बारे में बताया। उसने बताया कि स्पेशल ड्यूटी के तहत एक ऐसे बच्चे को अलग कमरे में परीक्षा के लिए बैठाया गया था, जिसे चीकन पॉक्स या अन्य कोई बीमारी है। पहले तो बीमारी में बच्चे परीक्षा नहीं दे पाते थे और उनका साल बर्बाद हो जाता था। अब अभिभावक भी नहीं चाहते कि बच्चे की साल भर की मेहनत बेकार जाए। ऐसे में वे बीमार बच्चे को लेकर स्कूल परीक्षा दिलवाने लाए।
इस बच्चे के साथ ही उसकी ड्यूटी लगी। ऐसी ड्यूटी से कई शिक्षक परहेज करते हैं। शिक्षिका की ड्यूटी में बच्चे को पेपर व कॉपी देना। उस पर नजर रखना, परीक्षा के बाद कॉपी को कलेक्ट करना आदि ही स्पेशल ड्यूटी में शामिल है। वह टीचर खुश थी कि स्पेशल ड्यूटी का उसे भी आर्थिक लाभ पहुंचा।
परीक्षा की साधारण ड्यूटी की अपेक्षा स्पेशल ड्यूटी के भत्ते में अन्य से ज्यादा राशि उसे मिली और वह भी नकद। साथ ही उसने बताया कि बीमारी के प्रति अब समाज में कितनी जागरूकता है। इसके बारे में उसे इस ड्यूटी को करने के बाद ही पता चला। ऐसे बच्चे की कॉपी (उत्तर पुस्तिका) भी अलग से सील की गई। साथ ही उसमें नीम के पत्ते व अन्य दवा भी छिड़की गई कि कहीं कॉपी को चेक करने वाला शिक्षक भी अपने घर इनफेक्शन न ले जाए।
तब मैने पूछा कि इसमें आपको भत्ता क्यों ज्यादा मिला। इस पर वह टीचर बोली कि आप भी कैसे बुद्धू हो। इतना नहीं समझ सकते। परीक्षा के बाद घर जाकर वह भी पूरी डिटाल की एक शीशी को पानी में उड़ेलकर नहाई। ऐसे में उसका भी खर्च तो बढ़ा। इसीलिए स्पेशल ड्यूटी में ज्यादा राशि मिलती है। फिर भी ये ड्यूटी अन्य ड्यूटी से ज्यादा लाभकारी है।
भानु बंगवाल
Bhanu Bangwal
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।