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September 16, 2024

नहीं रहीं प्रख्यात नारीवादी लेखिका कमला भसीन, जानिए उनके बारे में

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महिलाओं के उत्थान के लिए काम करने वाली जानी मानी सामाजिक कार्यकर्ता और कवियत्री कमला भसीन का आज सुबह निधन हो गया। वह कुछ महीने पहले कैंसर की शुकार हुई थी।

महिलाओं के उत्थान के लिए काम करने वाली जानी मानी सामाजिक कार्यकर्ता और कवियत्री कमला भसीन का आज सुबह 75 साल की उम्र में निधन हो गया। वह कुछ महीने पहले कैंसर की शुकार हुई थी। उनके निधन की जानकारी सामाजिक कार्यकर्ता कविता श्रीवास्तव ने दी। बताया जा रहा है कि भसीन ने तड़के करीब तीन बजे अंतिम सांस ली। कमला भसीन के निधन से सामाजिक कार्यकर्ताओं में शोक की लहर दौड़ गई।
आपको बता दें कि भारत और अन्य दक्षिण एशियाई देशों में महिला आंदोलन में भसीन एक प्रमुख आवाज रही हैं। सामाजिक सगंठनों ने कहा है कि कमला भसीन के निधन से महिलावादी आंदोलन समेत सभी जन आंदोलनों की अपूरणीय क्षति हुई है।
सामाजिक कार्यकर्ता कविता श्रीवास्तव ने ट्विटर पर जानकारी शेयर करते हुए लिखा कि भसीन ने तड़के करीब तीन बजे अंतिम सांस ली। यह भारत और दक्षिण एशियाई क्षेत्र में महिला आंदोलन के लिए एक बड़ा झटका है। उन्होंने जीवन को विपरीत परिस्थितियों में मनाया। कमला आप हमेशा हमारे दिलों में जीवित रहेंगी।
नारीवादी लेखन और आंदोलन की मजबूत आवाज
कमला भसीन नारीवादी लेखन और आंदोलन की बहुत मजबूत आवाज थीं। उनका जाना एक युग का अंत है, उनके जाने से स्त्रीवादी आंदोलन सहित सभी जन आंदोलनों की अपूरणीय क्षति हुई है। कमला भसीन का जाना निश्चित तौर पर महिला आंदोलन के लिए एक बड़ा झटका है। आंदोलन के अग्रदूतों में से एक मानी जाने वाली कमला भसीन ने दक्षिण एशियाई नारीवादी आंदोलन को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी। जागो री मूवमेंट को चलाने वालीं कमला भसीन का मानना था कि महिलाओं की पहली लड़ाई पितृसत्तात्मक समाज से बाहर निकलने के लिए है।
एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि आप ये सवाल क्यों नहीं पूछते कि पुरुषों को ये अधिकार क्यों नहीं है कि वे अपनी बड़ी होती बेटी या बेटे के साथ जी भर के समय गुजार सकें। उन्हें पढ़ा लिखा सकें, उनके साथ खेल सकें। पुरुष जो करते हैं वह जीविकोपार्जन का जुगाड़ है। ये जीवन नहीं है। आपकी पत्नी जो जी रही हैं, वह जीवन है। आप कुछ समय नौकरी न करें तो आपके बच्चों की जिंदगी पर कोई असर नहीं पड़ेगा। आपकी पत्नी एक दिन काम न करें तो जीवन और मृत्यु का सवाल खड़ा हो जाता है।
कमला भसीन का जन्म 24 अप्रैल 1946 को हुआ था था। नारीवादी कार्यकर्ता, कवि, लेखक और सामाजिक वैज्ञानिक के तौर पर जानी जाने वाली कमला भसीन ने महिलाओं के लिए 1970 से काम करना शुरू कर दिया था। लैंगिक भेदभाव, शिक्षा, मानव विकास और मीडिया पर उनका काम केंद्रित रहा था। कमला भसीन कहती थीं-सोचकर देखिए कि आज अगर महिलाएं कह दें कि या तो हमारे साथ सही से व्यवहार करें नहीं तो हम बच्चा पैदा नहीं करेंगे। क्या होगा? होगा ये कि सेनाएं ठप हो जाएंगी। मानव संसाधन कहां से लाएंगे आप?” जेंडर इक्विलिटी पर कमला भसीन के महत्वपूर्ण काम के लिए वह कई सम्मानों से नवाजी जा चुकी हैं।
इसी साल मार्च में समाज के लिए असाधारण काम करने वाली जिन 12 हस्तियों को सम्मानित किया था उनमें से कमला भसीन भी एक थी। नारीवादी लेखिका कमला भसीन अपने भाषणों में जगह—जगह कहती भी थीं कि-जब बच्चा पैदा होता है तो वह केवल इंसान होता है, मगर समाज उसे धर्म, भेद, पंथ, जाति आदि में बांटकर उसकी पहचान को संकीर्ण बना देता है। प्रकृति इंसानों में भेद करती है लेकिन भेदभाव नहीं करती। भेदभाव करना समाज ही सिखाता है। इस भेदभाव से ही लोगों में एक दूसरे के प्रति नफरत बढ़ रही है और हिंसा में बढ़ोतरी हो रही है।
कमला भसीन ने कहा था कि विधान ने सालों पहले कह दिया कि स्त्री और पुरुष समान है। समाज में आज भी महिलाओं और पुरुषों के लिए अलग-अलग नियम है और उसी की परिणति है कि देश में अब तक 3.5 करोड़ लड़कियों को कोख में ही खत्म कर दिया गया। पितृसत्तात्मक समाज के चलते स्त्री-पुरुषों के अधिकारों में विभेद से पुरुषों ने जहां उत्तरोत्तर प्रगति की है, वहीं महिलाएं दबती चली गईं। किसी एक महिला को बुर्का पहनाने से अच्छा है कि उस बुर्के की सौ पट्टियां बनाकर पुरुषों की आंखों पर बांध दी जाए, ताकि बुरी नजर से ही बचा जा सके।
वे नारीवादी लेखन और आंदोलन की बहुत मज़बूत आवाज थीं। उनका जाना एक युग का अंत है, उनके जाने से स्त्रीवादी आंदोलन सहित सभी जन आंदोलनों की अपूरणीय क्षति हुई है। उनके निधन की सूचना सोशल मी​डिया पर साझा करते हुए जनस्वास्वास्थ्य चिकित्सक डॉ. एके अरुण लिखते हैं कि-एक प्रखर जनवादी आवाज अब मानो थम सी गई। कमला जी नारीवादी लेखन और आंदोलन की बहुत मज़बूत आवाज़ थीं। उनका जाना एक युग का अंत है। कमला जी एक अद्भुत व्यक्तित्व थी, जोश और जज़्बे से भरी हुई, हिम्मत और उत्साह की प्रतिमूर्ति। उनके जाने से स्त्रीवादी आंदोलन सहित सभी जन आंदोलनों की अपूरणीय क्षति हुई है।
सामाजिक कार्यकर्ता गीता गैरोला कहती हैं कि- महिलाओं के समग्र विकास की अंतराष्ट्रीय पैरोकार, भारतीय महिलावाद की मजबूत स्तंभ और मेरी गुरु प्यारी कमला भसीन का हमारी जिंदगियों से जाना महिलावाद के संघर्ष की बहुत बड़ी क्षति है।1991 से दोस्ती और आपके प्रेम का साथ खत्म नहीं होगा बस आप साथ में दिखाई नही देंगी। आप हमेशा हमारे साथ रहेंगी। पल पल याद आएंगी, आपके गीतों की बुलंद आवाज दिलों में गूंजती रहेगी कमला दी। महिलावाद जिंदाबाद,कमला भसीन तुम दिलों में हो। दिलों में रहोगी।

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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