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December 16, 2024

ईगास पर्व चार नवंबर को, उत्तराखंड में सार्वजनिक अवकाश, सीएम धामी बोले-इगास पर अपनों को दें स्थानीय उत्पादों की भेंट

उत्तराखंड में दीपावली के 11 दिन बाद मनाया जाने वाला ईगास पर्व चार नवंबर को है। इगास बग्वाल दीपावली के 11 दिन बाद एकादशी को मनाई जाती है। इस बार यह चार नवंबर को पड़ रही है। इस दिन शुक्रवार है। इगास बग्वाल को “इगास दिवाली” कहा जाता है। इसे “बूढ़ी दिवाली” भी कहते हैं। उत्तराखंड सरकार ने पिछले साल की तरह इस बार भी चार नवंबर को सार्वजनिक अवकाश घोषित किया है। वहीं, मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से मंगलवार को मुख्यमंत्री आवास स्थित केम्प कार्यालय में बेडू ग्रूप के सदस्यों ने स्थानीय उत्पादों की सामग्री के साथ भेंट की। उन्होंने इगास पर्व पर राजकीय अवकाश घोषित किये जाने पर मुख्यमंत्री का आभार व्यक्त किया। मुख्यमंत्री ने बेडू ग्रुप के इस प्रयास की सराहना करते हुए इसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वोकल फ़ॉर लोकल मुहिम की सार्थकता बताया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि राज्य में इगास को लेकर इस बार कई कार्यक्रम आयोजित हो रहे हैं। इसका स्वागत है, उन्होंने कहा कि इगास पर्व की सार्थकता तभी है जब हम इस पर्व को अपनी संस्कृति, प्रकृति और उत्पादकता से जोड़ें। हमें इगास पर्व को उत्पादकता से जोड़ना होगा। इससे हमारे पारम्परिक व्यंजनों को प्रचार एवं पहचान भी मिलेगी और नई पीढ़ी का इन व्यंजनों से भी परिचय हो सकेगी। इसके साथ ही पारंपरिक बाल मिठाई, सिंगोरी सहित अन्य मिठाइयों से एक-दूसरे का मुंह मीठा करें तो इससे अच्छी बात कुछ और नहीं हो सकती। इससे ना सिर्फ स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा मिलेगा बल्कि इससे जुड़े लोगों की आर्थिकी भी मजबूत होगी। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

 

बेडू ग्रुप से जुड़े दया शंकर पांडेय, अवधेश नौटियाल एवं अमित अमोली ने मुख्यमंत्री को अवगत कराया कि उनकी ओर से उत्तराखंड के लोकपर्व इगास पर समाज के विभिन्न वर्गों के प्रमुख लोगों को बेडू के शुद्ध हर्बल उत्पादों के साथ ही रोट, अरसे और सिंगोरी मिठाई की कंडी बनाकर समूण के तौर पर देने का अभियान चलाया है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

ये है मान्यता
मान्यता है कि भगवान श्रीराम जब रावण का वध करने के बाद अयोध्या पहुंचे तो इसकी सूचना उत्तराखंड को 11 दिन बाद मिली। तब यहां दीपावली मनाई गई थी। इसी दीवाली को इगास पर्व या बूढ़ी दीपावली कहते हैं। एक अन्य पौराणिक मान्यता के अनुसार करीब 400 साल पहले वीर भड़ माधो सिंह भंडारी के नेतृत्व में टिहरी, उत्तरकाशी, जौनसार, श्रीनगर समेत अन्य क्षेत्रों से योद्धा बुलाकर सेना तैयार की गई। इस सेना ने तिब्बत पर हमला बोलते हुए वहां सीमा पर मुनारें गाड़ दी थीं। तब बर्फबारी होने के कारण रास्ते बंद हो गए। कहते हैं कि उस साल गढ़वाल क्षेत्र में दीपावली नहीं मनी, लेकिन दीपावली के 11 दिन बाद माधो सिंह भंडारी युद्ध जीतकर गढ़वाल लौटे तो पूरे क्षेत्र में भव्य दीपावली मनाई गई। तब से कार्तिक माह की एकादशी पर यह पर्व मनाया जाता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

खेले जाते हैं भैलू
इगास पर्व के उपलक्ष्य में धनतेरस से ही पहाड़ों में भैलू बनाए जाते हैं। भेलू के लिए चीड़ की लकड़ी का छोटा गट्ठर बनाया जाता है। इसे पेड़ की बेल या छाल से बांधा जाता है। इसका एक सिरा लंबा छोड़ दिया है। इगास पर्व के दिन इस पर आग लगाकर इसे घुमाया जाता है। मौके पर पूरे गांव के लोग एकत्र होते हैं। ढोल दमाऊ बजते हैं और लोग उत्सव मनाते हैं। ऐसा कहा जाता है कि जो अपने ऊपर भेलू घुमाता है, उसके ऊपर से दीपावली के दिन सारे संकट दूर हो जाते हैं।

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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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