रामलीला में ड्रामा, नेताओं का मंच पर कब्जा, कलाकारों के नाम गायब, पूर्व सीएम से सम्मान लेने से किया इनकार
नवरात्र के दिनों में देशभर के साथ ही उत्तराखंड में भी रामलीला का मंचन शुरू हो चुका है। ज्यादातर रामलाली समितियों की ओर से जारी होने वाले प्रेस नोट में नेताओं के नाम रहते हैं और कलाकारों के नाम कोई नहीं लिखकर दे रहा है। किस पात्र ने क्या खास अभिनय किया। किस सीन में लोग भावुक हुए या फिर किस सीन में लोग हंस हंस कर लोटपोट हुए। ये सब प्रेस नोट से नदारद है। हम पत्रकार तब तक थे, जब तक रिपोर्टिंग के लिए जाते थे। अब हम खबरों का विश्लेषण करते हैं, क्योंकि हम फील्ड में नहीं जा पाते हैं। ऐसे में हमें कोई पत्रकार कहे या कुछ और होने की संज्ञा दें। इससे हमें कोई फर्क नहीं पड़ता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
रामलीला मंचन के प्रेस नोट में सिर्फ नेताओं के नाम, मुख्य अतिथियों के नाम, या फिर इधर उधर की बातें होती हैं। सिर्फ ये नहीं लिखा होता है कि किस कलाकार ने प्रभावित किया। उसका नाम क्या है। खेल या नाटक की आप रिपोर्टिंग पढ़ते होंगे। इसमें सबसे पहले कथानक होता है। फिर कलाकारों का प्रदर्शन पर बात होती है। फिर उनके नाम भी बताए जाते हैं। कलाकार कौन हैं, राम कौन है। लक्ष्मण कौन है। सीता कौन है। इन सबसे क्या गलत किया कि इनका नाम समाचारों में नहीं आए। देहरादून में तो मजाक हो गया है। सारी बातें हो रही हैं। रामलीला का इतिहास बताया जा रहा है। क्या मंचन हो रहा है, उसका भी जिक्र है। फिर भी रामलीला के हर प्रेस नोट में सब कुछ लिखने के बावजूद कलाकारों को शून्य पर रखा जाता है। उनका कोई जिक्र तक नहीं हो रहा है। सबको मालूम होना चाहिए कि रामलीला मंच से से पहले कलाकार दो से तीन माह तक अभ्यास करते हैं। ऐसे में हम रामलीला की खबरों को लिखने से बचते हैं, जिनके प्रेस नोट में कलाकारों के नाम को गायब कर दिया जाता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
यहां से भी गौर करने वाली बात है कि यदि क्रिकेट मैच की आप खबर पढ़ते हो तो उसमें भी खिलाड़ी का जिक्र होता है। ये भी बताया जाता है कि किस खिलाड़ी ने क्या कमाल किया। ये नहीं होता कि मुख्य अतिथि कौन है। हो सकता है कि मुख्य अतिथि से सहयोग लिया जाता हो, इसलिए रामलीला के प्रेस नोट में उनके नाम को आगे किया जाता हो। ये करना भी चाहिए, लेकिन जिन कलाकारों का अभिनय देखने के लिए लोग जुटते हैं, उन्हें नजरअंदाज करना बहुत बड़ी भूल है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
अब तमाशा देखिये मूल निवास, भू-कानून समन्वय संघर्ष समिति के संयोजक मोहित डिमरी ने पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के हाथों सम्मान नहीं लिया। ये सम्मान समारोह भी श्रीरामकृष्ण लीला समिति टिहरी की ओर से देहरादून में आजाद मैदान बंगाली कोठी में आयोजित रामलीला के मंचन के दौरान दिया जा रहा था। इसमें राज्य आंदोलनकारी मंच, पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत, मूल निवास भू-कानून संघर्ष समिति, पहाड़ी स्वाभिमान सेना और देवभूमि युवा संगठन को आमंत्रित किया गया था। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
इस मौके पर रामलीला कमेटी की ओर से पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के हाथों कई लोगों को सम्मानित करवाया गया। वहीं, मूल निवास भू-कानून संघर्ष समिति के संयोजक मोहित डिमरी ने वरिष्ठ कांग्रेस नेता एवं पूर्व सीएम हरीश रावत के हाथों सम्मान लेने से मना कर दिया। मोहित डिमरी ने मंच पर अपने संबोधन में कहा कि वह हरीश रावत का बड़ा सम्मान करते हैं। हो सकता है कि 2027 में उनकी सरकार बने और वह मुख्यमंत्री बन जाएं। अगर हरीश रावत मुख्यमंत्री रहते मूल निवास 1950, मजबूत भू-कानून और स्थाई राजधानी गैरसैंण को लेकर विधानसभा में जनभावनाओं के अनुरूप कानून बनाते हैं तो वह उनके हाथों सम्मान को सहर्ष स्वीकार करेंगे। उन्होंने कहा कि जब तक राज्य में इन प्रमुख मुद्दों का हल नहीं निकल जाता, वह किसी भी मुख्यमंत्री, पूर्व मुख्यमंत्री, मंत्री, विधायक के हाथों कोई सम्मान नहीं लेंगे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
अब सवाल ये है कि क्या रामलीला के मंच को राजनीति का अखाड़ा बनाना सही है। क्या कलाकारों से ज्यादा नेताओं को महत्व दिया जाए। क्या रामलीला में लोग नेताओं को सुनने जाते हैं या फिर मंचन देखने के लिए जाते हैं। क्या रामलीला में मंच पर नेताओं का कब्जा कराकर दर्शकों के साथ अत्याचार नहीं किया जा रहा है। क्योंकि रामलीला के दर्शक मनोरंजन देखने के लिए जाते हैं। ऐसे में नेताओं की भाषणबाजी को सुनकर क्या वे खुश होते हैं या परेशान होते हैं। यदि ऐसे सवालों का जवाब किसी के पास हैं तो वे हमारी खबर के कमेंट बाक्स में कमेंट कर सकते है। हालांकि सब रामलीलाओं का अपना इतिहास है। इसके मंचन कर लोग पंरपरा को जीवित रखने का प्रयास कर रहे हैं। इसके लिए उन्हें साधुवाद।
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