शिवरात्रि महापर्व पर डॉ. पुष्पा खण्डूरी की कविता-सत्यं शिवं सुन्दरं
अक्सर शिव जीता है
हम सबके भीतर तब
जब हम जिन्दगी के
कष्टों को घूंट घूंट
कर पी जाते है
रोक लेते है कंठ तक ही
किसी को कुछ नहीं बता पाते
अक्सर शिव जीता है
हम सबके भीतर तब
जब जिम्मेदारियाँ
मजबूरियों की
रश्मों रिवाजों की
रस्सियाँ साँपों की
तरह हमें जकड़ लेती है ।
अक्सर शिव जीता है
हम सबके भीतर तब
जब कोई .. दक्ष
अकारण हमारी
उपेक्षा कर हमारे
किसी प्रिय को सती
की तरह हमसे
दूर कर देता है।
अक्सर शिव जीता है
हम सबके भीतर तब
जब हम किसी प्रिय
को चाँद की तरह
सिर माथे बिठा लेते हैं ।
अक्सर शिव जीता है
हम सबके भीतर
जब हम दूसरों के
दुःखों से द्रवित हो
उनकी पीड़ा को
हर ने का संकल्प
कर लेते हैं
शिव हो जाते है सब
जब कल्याण का
संकल्प बन जाते हैं
सत्यं शिवं सुन्दरं !
कवयित्री का परिचय
डॉ पुष्पा खण्डूरी
डी.लिट, एसोसिएट प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष हिन्दी विभाग
डीएवी (पीजी ) कालेज देहरादून, उत्तराखंड।