डॉ. पुष्पा खंडूरी की कविता-मन जीते जग जीत है
मन जीते जग जीत है
मन के हारे सब हार
मन से जीत नहीं आसां
मन के तर्क हजार
मन से कुछ भी छिपा नहीं
मन ही अपराधी
मन ही साक्षी
मन ही कचहरी
मन ही मुकदमा
मन ही निर्णय
मन ही निर्णायक
मन के नयन हजार
मन ही आत्मा
मन ही ईश्वर भी
मन ही पापी भी,
मन परमेश्वर भी
मन की पहुँच में
चाँद सितारे
मीठी नदियाँ
सागर खारे
मन जिसके बस
जग उस के बस
जितेन्द्रिय है जिसका भी मन
वही कृष्ण तो बुद्ध वही है
वह ईसा है शुद्ध वही है
गुरु उसी को जग ने माना
मन बस जिसके सही वही है
मन ही आत्मा का दर्पण है
आत्मा कभी भी गलत न होती ।
जो मन आत्मा की सुनता है
इन्द्रियां उसके वश में होती
इन्द्रियां जिनके वश में होती
जग में फतह उन्हीं की होती
जो मन आत्मा का अनुयायी
उस का सारा जग अनुयायी
वही मौहम्मद ,वही ईसा है
वही कृष्ण है और गौतम भी
वही कुरान, वही बाइबिल
वही रामायण और गीता भी
जिसने जग में मन जीता है
उसने ही सचमुच जग जीता॥
कवयित्री की परिचय
डॉ. पुष्पा खंडूरी
एसोसिएट प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष हिन्दी
डीएवी (पीजी ) कॉलेज
देहरादून, उत्तराखंड
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।