डॉ. पुष्पा खंडूरी की कविता-हर कोई तेरा अपना ना कोई गैर होगा
नदियाँ ये मीठी मीठी
सागर ये गहरे गहरे
मन को मेरे लुभाते
आँखों में ठहरे ठहरे
पूछते हैं मुझसे नित
प्रश्न बहुत ही गहरे
दर्शन सा इक छिपा
कुदरत की हर फ़िजा में
जीवन नहीं कहीं भी
ठहरा हुआ सा रहता
नित बहता एक रौ में
जीवन के साथ रहता
तुझमें जो भी ये मैं है
वो ही है तेरा दुश्मन
अहं भी वही तो बस
बहम भी वही है।
जब-तक ये तेरे भीतर
तुझ में खुदा नहीं है।
मैं से निकल के बाहर
गर तू ये देख पाए
धूप भी है सभी की
बारिस भी सब को भाए
चाँद भी चाँदनी को
सब पै ही लुटाए
बरखा भी सब के ऊपर
एक जैसी ही बरसती
आती है जब धरा पर
सारी धरती ही सरसती
नहीं मैं और मेरा करती
सबकी ही प्यास हरती
मैं से निकल के बाहर
जो तू भी ये देख पाए
हर एक अक्ष तेरा
गर तू समझ ये पाए
मेरा तेरा नहीं कुछ
तुझको पता चलेगा
नदियों सा ना थकेगा
सागर सा धनी होगा
चारों तरफ ही तेरे
बस प्रेम -प्रेम होगा
नफरत का अंश भी
तुझे नहीं कहीं दिखेगा
इक नूर उस खुदा का
सब में ही तुझे दिखेगा
सब में ही तू रहेगा
और तुझमें ही सब रहेंगे
बस कुनबा तेरा बढ़ेगा
रौनक तेरी ही फिर बढ़ेगी
मैं से निकल गया गर
दुनियां ही तेरी होगी
जब सबकी खुशी में
तेरी खुशी तुझे दिखेगी
तेरी खुशी ही सब में
हर ओर बिखरी होगी
अपने से सब लगेंगे
अपने ही सब दिखेंगे
तू भी सबका होगा
और सब तेरे ही होंगे
ना गैर कोई होगा
बस मैं को छोड़ गर तू
ये संसार तेरा होगा
फिर नदी सी भी लम्बी
तेरी ये कहानी होगी
सागर से गहरी खुशियाँ
तेरी जिंदगानी होंगी
हर कोई तेरा अपना
ना कोई गैर होगा
सबसे ही दोस्ती हो
नहीं किसी से बैर होगा
कवयित्री की परिचय
डॉ. पुष्पा खंडूरी
एसोसिएट प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष हिन्दी
डीएवी (पीजी ) कॉलेज
देहरादून, उत्तराखंड