विश्व पर्यावरण दिवस पर डॉ. मुनिराम सकलानी मुनींद्र की कविता-वृक्ष जन-जीवन का आधार
वृक्ष जन-जीवन का आधार
पर्यावरण होता जिससे साकार
शुद्ध वायु की होती जिसमें भरमार
अरण्य का जिससे होता विस्तार
वृक्ष फल -फूल व स्वच्छ जल देते
पथिक छाया और शुद्ध वायु लेते
शुद्ध पर्यावरण और परिवेश देते
सबके मन -मस्तिष्क को हर लेते।
अरण्य से होगी स्वच्छ वयार
पारिस्थितिकी में होगा सुधार
वन्य जीवों से होगा नित प्यार
यही तो है जीवन का आधार।
सोचो अगर अरण्य में वृक्ष न होते
पशु-पक्षी व मानव किस पर जीते ?
होता न कृषि-उद्योग का सही विकास
जन-जीवन व पशुओं का होता नाश।
न उपवन और न हरियाली फैली होती
देश मरूभूमि में काफी परिवतिर्त होता
उद्योग-धन्धे व खेती किस पर आश्रित होते।
वृक्ष कटेंगें होगा हमारा पर्यावरण दूषित
भूकम्प,बाढ,भू-स्खलन से मानव पीडित
जर्जर व कमजोर होगी आर्थिक स्थिति।
आओ हम सब अधिक सुन्दर वृक्ष लगाएं
वृक्ष लगाकर महापावन महापुण्य कमायेंगे
प्रदूषण व गन्दगी को नित अपने से दूर भगायें
पर्यावरण -जल संरक्षण का अपने में भाव जगायें।
कवि का परिचय
डॉ. मुनिराम सकलानी, मुनींद्र। पूर्व निदेशक राजभाषा विभाग (आयकर)। पूर्व सचिव डा. पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल हिंदी अकादमी,उत्तराखंड। अध्यक्ष उत्तराखंड शोध संस्थान। लेखक, पत्रकार, कवि एवं भाषाविद।
निवास : किशननगर, देहरादून, उत्तराखंड।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।