क्या आप जानते हैं कि पहले 26 जनवरी के दिन मनाया जाता था स्वाधीनता दिवस, पढ़िए पूरी खबर
हर साल 15 अगस्त को, हम सभी आजादी का जश्न मनाते हैं। हर भारतीय देश आजाद होने की खुशी मनाता है और अपनी मातृभूमि के लिए अपने प्यार का इजहार करते हैं। 15 अगस्त को भारत में स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन ब्रिटिश साम्राज्य की हुकुमत खत्म हो गई थी और भारत एक स्वतंत्र राष्ट्र बन गया था।
वो साल 1947 का था, जब आधी रात के समय, देश का हर पुरुष, महिला और बच्चा जाग उठा, स्वतंत्रता के एक नए युग और एक नए शासन का स्वागत करने के लिए तैयार था। तब से, हर साल 15 अगस्त को हम स्वतंत्रता दिवस मनाते हैं और 2021 में यह 75 वां स्वतंत्रता दिवस है जिसे हम मनाएंगे। यह बात कम लोग जानते है कि आजादी से पहले 26 जनवरी को ही स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाता था। करीब 18 वर्ष तक 26 जनवरी को पूर्ण स्वराज दिवस (स्वतंत्रता दिवस) मनाया जाता रहा। दिसंबर 1929 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का लाहौर में अधिवेशन हुआ, जिसकी अध्यक्षता पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने की थी। पंडित नेहरू ने पूर्व स्वराज का प्रस्ताव रखा। इसमें कहा गया कि अंग्रेजी हुकूमत 26 जनवरी 1930 तक भारत को प्रभुत्व नहीं देती तो हम खुद को स्वतंत्र घोषित कर देंगे। कांग्रेस ने 26 जनवरी को पूर्व स्वराज दिवस (स्वतंत्रता दिवस) घोषित किया। अंग्रेजी हुकूमत ने कुछ नहीं किया तो कांग्रेस ने भारत की पूर्म स्वतंत्रता के लिए सक्रिय आंदोलन किया। 26 जनवरी 1930 में पहली बार स्वतंत्रता दिवस मनाया गया। इसी दिन पंडित जवाहर लाल नेहरू ने तिरंगा फहराया था।
15 अगस्त 1947 को देश आजाद होने के बाद अब यह दिन भारत का राष्ट्रीय त्यौहार है। प्रतिवर्ष इस दिन भारत के प्रधानमंत्री लाल किले की प्राचीर से देश को सम्बोधित करते हैं। 15 अगस्त 1947 के दिन भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने, दिल्ली में लाल किले के लाहौरी गेट के ऊपर, भारतीय राष्ट्रीय ध्वज फहराया था।
पूरे भारत में मनाया जाता है समारोह
इस दिन को झंडा फहराने के समारोह, परेड और सांस्कृतिक आयोजनों के साथ पूरे भारत में मनाया जाता है। भारतीय इस दिन अपनी पोशाक, सामान, घरों और वाहनों पर राष्ट्रीय ध्वज प्रदर्शित कर इस उत्सव को मनाते हैं और परिवार व दोस्तों के साथ देशभक्ति फिल्में देखते हैं, देशभक्ति के गीत सुनते हैं।
ये है इतिहास
यूरोपीय व्यापारियों ने 17वीं सदी से ही भारतीय उपमहाद्वीप में पैर जमाना आरम्भ कर दिया था। अपनी सैन्य शक्ति में बढ़ोतरी करते हुए ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने 18वीं सदी के अन्त तक स्थानीय राज्यों को अपने वशीभूत करके अपने आप को स्थापित कर लिया था। 1857 के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के बाद भारत सरकार अधिनियम 1858 के अनुसार भारत पर सीधा आधिपत्य ब्रितानी ताज (ब्रिटिश क्राउन) अर्थात ब्रिटेन की राजशाही का हो गया। दशकों बाद नागरिक समाज ने धीरे-धीरे अपना विकास किया और इसके परिणामस्वरूप 1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आईएनसी) निर्माण हुआ।
प्रथम विश्वयुद्ध के बाद का समय ब्रितानी सुधारों के काल के रूप में जाना जाता है जिसमें मोंटेगू-चेम्सफोर्ड सुधार गिना जाता है, लेकिन इसे भी रोलेट एक्ट की तरह दबाने वाले अधिनियम के रूप में देखा जाता है जिसके कारण स्वरुप भारतीय समाज सुधारकों द्वारा स्वशासन का आवाहन किया गया। इसके परिणामस्वरूप महात्मा गांधी के नेतृत्व में असहयोग और सविनय अवज्ञा आंदोलनों तथा राष्ट्रव्यापी अहिंसक आंदोलनों की शुरूआत हो गयी।
1930 के दशक के दौरान ब्रितानी कानूनों में धीरे-धीरे सुधार जारी रहे। परिणामी चुनावों में कांग्रेस ने जीत दर्ज की। अगला दशक काफी राजनीतिक उथल पुथल वाला रहा। द्वितीय विश्व युद्ध में भारत की सहभागिता, कांग्रेस द्वारा असहयोग का अन्तिम फैसला और अखिल भारतीय मुस्लिम लीग द्वारा मुस्लिम राष्ट्रवाद का उदय। 1947 में स्वतंत्रता के समय तक राजनीतिक तनाव बढ़ता गया। इस उपमहाद्वीप के आनन्दोत्सव का अंत भारत और पाकिस्तान के विभाजन के रूप में हुआ।
संक्षिप्त इतिहास
महात्मा गाँधी के नेतृत्व में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में लोगों ने काफी हद तक अहिंसक प्रतिरोध और सविनय अवज्ञा आंदोलनों में हिस्सा लिया। स्वतंत्रता के बाद ब्रिटिश भारत को धार्मिक आधार पर विभाजित किया गया, जिसमें भारत और पाकिस्तान का उदय हुआ। विभाजन के बाद दोनों देशों में हिंसक दंगे भड़क गए और सांप्रदायिक हिंसा की अनेक घटनाएं हुईं। विभाजन के कारण मनुष्य जाति के इतिहास में इतनी ज्यादा संख्या में लोगों का विस्थापन कभी नहीं हुआ। यह संख्या तकरीबन 1.45 करोड़ थी। भारत की जनगणना 1951 के अनुसार विभाजन के एकदम बाद 72,26,000 मुसलमान भारत छोड़कर पाकिस्तान गये और 72,49,000 हिन्दू और सिख पाकिस्तान छोड़कर भारत आए।
स्वतंत्रता से पहले स्वतंत्रता दिवस
1929 लाहौर सत्र में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने पूर्ण स्वराज घोषणा की और 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के रूप में घोषित किया। कांग्रेस ने भारत के लोगों से सविनय अवज्ञा करने के लिए स्वयं प्रतिज्ञा करने व पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्ति तक समय-समय पर जारी किए गए कांग्रेस के निर्देशों का पालन करने के लिए कहा।
इस तरह के स्वतंत्रता दिवस समारोह का आयोजन भारतीय नागरिकों के बीच राष्ट्रवादी ईधन झोंकने के लिये किया गया व स्वतंत्रता देने पर विचार करने के लिए ब्रिटिश सरकार को मजबूर करने के लिए भी किया गया। कांग्रेस ने 1930 और 1950 के बीच 26 जनवरी को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया। इसमें लोग मिलकर स्वतंत्रता की शपथ लेते थे।
जवाहरलाल नेहरू ने अपनी आत्मकथा में इनका वर्णन किया है कि ऐसी बैठकें किसी भी भाषण या उपदेश के बिना, शांतिपूर्ण व गंभीर होती थीं। गांधी जी ने कहा कि बैठकों के अलावा, इस दिन को, कुछ रचनात्मक काम करने में खर्च किया जाये जैसे कताई कातना या हिंदुओं और मुसलमानों का पुनर्मिलन या निषेध काम, या अछूतों की सेवा। 1947 में वास्तविक आजादी के बाद भारत का संविधान 26 जनवरी 1950 को प्रभाव में आया। तब के बाद से 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाता है।
राष्ट्रीय अवकाश
स्वतंत्रता दिवस भारत के तीन राष्ट्रीय अवकाशों में से एक है। अन्य दो गणतंत्र दिवस (26 जनवरी) और गांधी जयंती (2 अक्टूबर) हैं। आपको बता दें, 15 अगस्त 1947 को एक बार पूर्ण स्वतंत्रता की घोषणा हो जाने के बाद, 26 जनवरी की तारीख को सर्वसम्मति से स्वतंत्रता दिवस के रूप में तय किया गया।
उसके बाद से हर साल 26 जनवरी को भारत में स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाता था। 1930 से 1946 तक, यह दिवस हर साल कांग्रेस सदस्यों, स्वतंत्रता सेनानियों और यहां तक कि आम आदमी द्वारा मनाया जाता था।
जश्न मनाने के सामान्य तरीकों में से एक सदस्यों द्वारा “स्वतंत्रता की प्रतिज्ञा” लेना था। तय किया गया था कि इस दिन शांतिपूर्ण चर्चा होगी। कोई लंबा भाषण नहीं। आम आदमी को प्रभावित नहीं किया जाएगा। समारोह पूरी तरह शांतिपूर्ण तरीके से संपन्न किया जाता रहा।
15 अगस्त को भारतीय स्वतंत्रता दिवस को अंतिम रूप दिए जाने के बाद, कांग्रेस ने 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया। भारत का संविधान 26 नवंबर 1949 को अपनाया गया था और अंतरिम 3 वर्षों के लिए पहले स्वतंत्रता दिवस नहीं मनाया गया था। एक बार संविधान को अपनाने के बाद, संविधान अंततः 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ, पूर्ण स्वराज स्वतंत्रता आंदोलन को मनाने के लिए तारीख चुनी गई।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।