गुरु तेगबहादुर के शहीदी पर्व पर सजा दीवान, कीर्तन जत्थों ने किया संगतों को निहाल
सिख पंथ के नवें गुरु श्री गुरु तेगबहादुर के शहीदी दिवस के अवसर पर आज देहरादून में गांधीग्राम स्थित गुरुद्वारा श्री गुरु तेग बहादुर में गुरु का दीवान सजाया गया। इस मौके पर देहरादून के स्थानीय रागी जत्थों ने गुरु की महिमा पर शब्द कीर्तन कर संगतों को निहाल किया। इस अवसर पर प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना ने दरबार साहिब में माथा टेका व गुरु तेगबहादुर की शहीदी को नमन किया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
उन्होंने नवें गुरु की शहीदी को दुनिया की ऐसी अनोखी शहीदी करार दिया, जिसकी किसी अन्य शहीदी या कुर्बानी से तुलना नहीं कि जा सकती। धस्माना ने कहा कि धर्म की रक्षा के लिए गुरु तेगबहादुर ने औरंगजेब के सामने झुकने से इनकार कर दिया। उन्होंने हिन्दू धर्म त्याग कर इस्लाम कुबूल करने के प्रस्ताव को ठुकरा कर अपना शीश कटवाना मंजूर किया। अन्तोगत्वा जब वे नहीं झुके तो औरंज़ेब ने उनका सर धड़ से अलग कर दिया।(खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
धस्माना ने कहा कि गुरु तेगबहादुर के बलिदान से उनके पुत्र दसवें गुरु श्री गुरुगोबिंद सिंह जी ने धर्म और देश की रक्षा के लिए खालसा पंथ का सृजन किया और जीवन पर्यंत वे देश और धर्म की रक्षा के लिए लड़ते रहे। इस धर्मयुद्ध में उन्होंने अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया। धस्माना ने कहा कि सिख धर्म के लगभग साढ़े पांच सौ साल के इतिहास में देश और धर्म की रक्षा के लिए जितने बलिदान दिए उतने बलिदान किसी अन्य धर्म में नहीं मिलते। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
कार्यक्रम की विशेषता यह रही कि इस बार गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने वोकल फ़ॉर लोकल के तहत स्थानीय कीर्तनी जत्थों को मौका दिया। इसमें प्रमुख रूप से भाई विपिन्न सिंह, भाई रफल सिंह, भाई जगजीत सिंह, भाई शमशेर सिंह के जत्थों ने शब्द कीर्तन से संगतों को निहाल किया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
इस अवसर पर गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी द्वारा गुरु तेगबहादुर जी की स्मृति में धस्माना को स्मृति चिह्न भेंट किया गया। कार्यक्रम में प्रबंधक कमेटी की प्रधान बीबी हरमिंदर कौर, सरदार बलबीर सिंह, सरदार करतार सिंह, सरदार जसविंदर सिंह मोठी, सरदार दर्शन सिंह, सरदार अमर सिंह, अशोक गोलानी, पूर्व पार्षद जगदीश धीमान, पंडित अनिल डोबरियाल उपस्थित रहे।
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।