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March 10, 2025

लो आ रही है मिलावट वाली दीपावली, सब्जी ले कर मिठाई तक में इस तरह से मिलावट, बंद करो प्रकृति से छेड़छाड़

चाहे कितना भी हम पर्यावरण का पाठ बच्चों को पढ़ा लें, लेकिन वे कहां मानने वाले हैं। हां इतना जरूर है कि पिछली दो दीपावली में उन्होंने अन्य साल की अपेक्षा कुछ कम ही आतिशबाजी छोड़ी होगी। इसका कारण कोरोनाकाल रहा या फिर पर्यावरण। या फिर सरकारों की सख्ती। दिल्ली में दो दो साल से पटाखों में प्रतिबंध रहा। इस बार भी सरकार ने इसे जारी रखने का फैसला किया है। वहीं, वर्ष 2020 में तो देशभर में कई राज्यों में दीपावली के दिन आतिशबाजी पर प्रतिबंध रहा। ग्रीन पटाखों को ही कुछ स्थानों पर समय की कुछ शर्तों के साथ अनुमति दी गई थी। इसे देखकर मुझे भी संतोष जरूर हुआ था। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

हर बार की तरह इस बार भी दिखावे की दीपावली आई गई है। इस दिखावे में हम हर शहर में करोड़ों रुपयों पर पटाखों के रूप में यूं ही आग लगा देंगे। ये आग ऐसी लगेगी कि इसका असर कई दिन तक अब लोगों की सेहत में पड़ना भी स्वाभाविक है। मेरे शहर देहरादून में भी इसका असर देखने को मिलेगा। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

देहरादून एक घाटी है। यानी कि चारों तरफ पहाड़ से घिरा एक शहर। यहां का मौसम भी कुछ अजीबोगरीब है। हर मोहल्ले व क्षेत्र का तामपान एक सा नहीं रहता। बरसाती नदी के किनारे बसे इलाको में कुछ तापमान रहता है, तो दूसरे इलाकों में कुछ। बारिश के दौरान कहीं बारिश हो रही होती है, तो कहीं चटख धूप निकली रहती है। तेज हवा भी कभी कभार ही चलती है। ऐसे में जिस क्षेत्र में जितना वायु प्रदूषण को नुकसान पहुंचेगा, वहां आगे भी लोगों की सेहत को उतना ही खतरा बना रहेगा। क्योंकि वहां की प्रदूषित आबोहवा वहीं तक ज्यादा दिन तक लोगों को परेशान करेगी। फिर यह मिलावटी त्योहार में हवा ही क्या, खानपान से लेकर हर चीज में खतरा पैदा कर गया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

यहां मैं मिलावटी शब्द का प्योग इसलिए कर रहा हूं कि वैसे तो हर वस्तु में मिलावट अब आम बात हो गई है, लेकिन दीपावली के त्योहार में मिलावट कुछ जरूरत से ज्यादा होने लगती है। आसपड़ोस के बच्चे दीपावली की रात आतिशबाजी के दौरान जो भी राकेट छोड़ते हैं, वो सीधे आसमान में जाने की बजाय आसपास के घरों में ही घुसने लगते हैं। ऐसे में हर बच्चे के मुंह से यही निकलता है कि राकेट में मसाला मिलावटी है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

मेरे मित्र डॉ. बृजमोहन शर्मा जल, वायु के प्रदूषण के साथ ही खाद्य पदार्थों में मिलावट के प्रति लोगों को जागरूक करते रहते हैं। मैने उनसे बात की तो उन्होंने कहा कि पूरी दीपावली ही मिलावटी हो गई है। हम जो पूजा सामग्री इस्तेमाल कर रहे हैं, उसमें रोली भी मिलावटी है। कायदे से हल्दी में चूने का पानी मिलाकर रोली बन जाती है। हल्दी में चूने का पानी मिलाओ और वह लाल न हो तो समझो कि हल्दी में मिलावट है। बाजार में जो रोली मिल रही है, उसमें कैमिकल पड़ा है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

इसी तरह चंदन की खुश्बू मिवावटी, धूप व अगरबत्ती मिलावटी। धूप में जड़ी-बूटियों की बजाय घटिया पेट्रोलियम उत्पाद की मिलावट है। सरसों का तेल मिलावटी, हींग में आटे की मिलावट, काली मिर्च में पपीते का बीज, जीरा में गाजर के बीज की मिलावट हो रही है। दालों व सब्जियों में रंगों की मिलावट, मिल्क प्रोडक्ट में कैमिकल व घटिया सामग्री की मिलावट हो रही है। यहां तक मेवे इतने पुराने बिक रहे हैं कि उसमें से पोष्टिक तत्व आयल ही गायब है। यही नहीं चटक हरी सब्जियां इसलिए नजर आती हैं कि उन्हें रंग के घोल में डुबोया जाता है। फिर ऐसी चीजें खाकर सेहत को फायदा तो नहीं मिलेगा, लेकिन नुकसान जरूर होगा। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

रही बात आतिशबाजी की। सोडियम नाइट्रेट, सल्फर, जिंक, कैल्मियम, बेरेनियम आदि की घटिया व मिलावटी क्वालिटी इसमें प्रयोग की जा रही हैं। ऐसे में आतिशबाजी भी सही तरीके से नहीं जलती। जो अधफूंका कूड़ा बचता है, वह बाद में मिट्टी व पानी में मिलेगा। इससे भी जल व जमीन में प्रदूषण होगा। यह तो रही प्रदूषण की बात। अब बात हम व्यवहार में मिलावट की करते हैं। दीपावली में एक दूसरे को बधाई देने में भी लोग कोई देरी नहीं दिखाते। दिल में भले ही किसी के प्रति कुछ और हो, लेकिन दिखावे में वहां भी मिलावट रहती है। फिर कामना की जाती है कि भगवान हमें सुख, शांति, समृद्धि दे। मेरा मानना है कि यदि हम सुख, समृद्धि के लिए सही कर्म (यानी मेहन) नहीं करेंगे तो वह अपने आप नहीं आने वाली। यदि इसके लिए मिलावटी (शार्ट कट रास्ता) अपनाते हुए कर्म करेंगे तो उसके फल में भी मिलावट ही होगी। फिर इसके लिए हम किसे दोष देंगे।
भानु बंगवाल

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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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