Loksaakshya Social

Social menu is not set. You need to create menu and assign it to Social Menu on Menu Settings.

Social menu is not set. You need to create menu and assign it to Social Menu on Menu Settings.

December 15, 2024

गुरु पूर्णिमा की तिथि को लेकर मतभेद, 24 जुलाई ही तर्कसंगत, जानिए महत्व व पूजन, आचार्य सीपी घिल्डियाल का बड़ा बयान

गुरु पूर्णिमा का पर्व 23 जुलाई को होगा अथवा 24 जुलाई को मनाया जाएगा इसे लेकर इस वर्ष विद्वानों के बीच विवाद का विषय बना हुआ है। कुछ लोगों का मत है कि गुरु पूर्णिमा 23 जुलाई को मनाई जानी चाहिए और कुछ लोगों का मत है कि 24 जुलाई को मनाई जानी चाहिए।

गुरु पूर्णिमा का पर्व 23 जुलाई को होगा अथवा 24 जुलाई को मनाया जाएगा इसे लेकर इस वर्ष विद्वानों के बीच विवाद का विषय बना हुआ है। कुछ लोगों का मत है कि गुरु पूर्णिमा 23 जुलाई को मनाई जानी चाहिए और कुछ लोगों का मत है कि 24 जुलाई को मनाई जानी चाहिए। विद्वानों के बीच चर्चा का विषय बने इस विषय पर ज्योतिष में आचार्य डॉक्टर चंडी प्रसाद घिल्डियाल का बड़ा बयान आया। उन्होंने कहा कि यद्यपि यह सत्य है कि पूर्णिमा तिथि चंद्रोदय पर आधारित तिथि है। इस आधार पर 23 तारीख की रात को ही पूर्णिमा है औक 24 तारीख सुबह 8:06 पर पूर्णिमा तिथि समाप्त हो जाएगी। इसलिए पूर्णमासी का व्रत रखने वाले लोग 23 तारीख को व्रत रखेंगे। वहीं, गुरु पूजा, व्यास पूजन 24 तारीख को ही सही रहेगा। क्योंकि उस दिन सर्वार्थ अमृत सिद्धि योग भी है और गुरु का पूजन सूर्योदय काल में ही सही है। रात्रि में नहीं हो सकता है।
शुभ मुहूर्त
गुरु पूर्णिमा तिथि प्रारंभ- शुक्रवार, 23 जुलाई की सुबह 10:43 बजे से।
गुरु पूर्णिमा तिथि समाप्त- शनिवार, 24 जुलाई की सुबह 08:06 बजे तक।
गुरु पूर्णिमा में पूजन
गुरु पूर्णिमा के दिन देश के कई मंदिरों और मठों में गुरुपद पूजन किया जाता है। हालांकि अगर आपके गुरु अब आपके साथ नहीं हैं या वे दिवंगत हो गए हैं तो आप इस तरह से गुरु पूर्णिमा के दिन उनका पूजन कर सकते हैं।
ऐसे करें पूजन
गुरु पूर्णिमा की सुबह स्नान आदि करें। उसके बाद घर की उत्तर दिशा में एक सफेद कपड़ा बिछाकर उसपर अपने गुरु की तस्वीर रख दें। इसके बाद उन्हें माला चढ़ाएं और मिठाई का भोग लगाएं। अब उनकी आरती करें और जीवन की हर एक शिक्षा के लिए उनका आभार व्यक्त करें। उनसे आशीर्वाद प्राप्त करें। इस दिन सफेद रंग या पीले रंग के वस्त्र पहनकर पूजा करना शुभ माना गया है। इस दिन की पूजा में गुरु मंत्र अवश्य शामिल करें।
इस मंत्र का करें उच्चारण
गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुःगुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः॥
इस मंत्र का अर्थ
गुरू ब्रह्मा हैं,गुरु विष्णु हैं,गुरु ही शंकर हैं.गुरु ही साक्षात् परब्रह्म हैं. उन सद्गुरू को प्रणाम।
गुरु के समक्ष पूजन की विधि
गुरु पूर्णिमा के दिन गुरु पूजन की यह विधि वे लोग भी अपना सकते हैं जो अपने गुरु से किसी कारणवश दूर रहते हों या फिर किसी कारण से वे अपने गुरु के पूजन-वंदन को नही जा सकते हैं। अगर आपके गुरु सामने हों और आप गुरु का पूजन वंदन करने जा रहे है तो अपने गुरु के पैर पर फूल अवश्य चढ़ाएं। उनके मस्तिष्क पर अक्षत और चंदन का तिलक लगाएं और उनका पूजन कर उन्हें मिठाई या फल भेंट करें। उनके द्वारा दिए गए ज्ञान के लिए उनका आभार व्यक्त करें और उनका आशीर्वाद लें।
गुरु नहीं तो भगवान विष्णु को मानें गुरु
गुरु नहीं हैं तो भगवान विष्णु को अपना गुरु मानें और उनकी पूजा करें। वैसे तो ऐसा मुमकिन ही नहीं है कि किसी भी इंसान का कोई गुरु न हो। फिर भी मान लीजिए कि किसी कारणवश आपके जीवन में कोई गुरु नहीं हैं तो आप गुरु पूर्णिमा के दिन क्या कर सकते हैं?
भगवान शिव को ही माना गया है गुरु
सबसे पहले तो ये जान लीजिए कि हर गुरु के पीछे गुरु सत्ता के रूप में भगवान शिव को ही माना गया है। ऐसे में अगर आपका कोई गुरु नहीं हों तो इस दिन भगवान शिव को ही गुरु मानकरगुरु पूर्णिमा का पर्व मनाना चाहिए। आप भगवान विष्णु को भी गुरु मान सकते हैं। इस दिन की पूजा में भगवान विष्णु, जिन्हेंगुरु का दर्जा दिया गया है या भगवान शिव की ऐसी प्रतिमा लें, जिसमें वे कमल के फूल पर बैठे हुए हों। उन्हें फूल, मिठाई, और दक्षिणा चढ़ाएं। उनसे प्रार्थना करें कि वो आपको अपने शिष्य के रूप में स्वीकार कर कृतार्थ करें।
जीवन में उचित मार्गदर्शन में गुरु का हाथ
गुरु हमारे जीवन में उचित मार्गदर्शन करते हैं और हमें सही राह पर ले जाते हैं। हमारे जीवन में शिक्षा का प्रकाश लाने वाले हमारे गुरुओं के पास हमारे जीवन की असंख्य परेशानियों का हल होता है। हिन्दू धर्म में ईश्वर को सबसे ऊंचा दर्जा दिया गया है। लेकिन भगवान से भी ऊंचा दर्जा गुरु का माना जाता है। कहते हैं अगर भगवान किसी इंसान को श्राप दे दें तो गुरु हमें भगवान के श्राप से भी बचा सकते हैं। यदि हमारे गुरु ने हमें कोई श्राप दे दिया तो उससे हमें भगवान भी नहीं बचा सकते। इसी के चलते कबीर जी के एक दोहे में कहा गया है- गुरु गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पांय। बलिहारीगुरु अपने गोविन्द दियो बताय।।
महर्षि व्यास का अवतरण
उत्तराखंड ज्योतिष रत्न आचार्य डॉक्टर चंडी प्रसाद घिल्डियाल बताते हैं कि आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा कोगुरु पूर्णिमा या व्यास पूजा भी कहा जाता है और आषाढ़ पूर्णिमा के ही दिन महर्षि व्यास का अवतरण भी हुआ था। महर्षि व्यास पाराशर ऋषि के पुत्र तथा महर्षि वशिष्ठ के पौत्र थे। महर्षि व्यास के अवतरण के इस दिन का महत्व इसलिए भी अधिक माना गया है क्योंकि महर्षि व्यास को गुरुओं का गुर, अर्थात गुरुओं से भी श्रेष्ठ का दर्जा दिया गया है। यही वजह है कि आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को सभी शिष्य विशेष रूप से अपने-अपने गुरु की पूजा करते हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
प्राचीन काल से ही मनाया जा रहा पर्व
प्राचीन काल से ही इस दिन शिष्य पूरी श्रद्धा से अपने गुरु की पूजा का आयोजन करते हैं। इस दिन तमाम स्कूल, कॉलेजों में विशेष आयोजन किए जाते हैं। इस दिन अपने गुरु के साथ-साथ माता-पिता, भाई-बहन और अन्य बड़ों का आशीर्वाद अवश्य लेना चाहिए।
वर्षा ऋतु में ही क्यों मनाते हैं गुरु पूर्णिमा?
भारत में यूं तो सभी ऋतुओं का अपना अलग-अलग महत्व बताया गया है, लेकिनगुरु पूर्णिमा को वर्षा ऋतु में ही मनाया जाता है। इसकी भी अपनी एक खास वजह है। दरअसल इस समय न ही ज्यादा गर्मी होती है और न ही ज्यादा सर्दी होती है। ऐसे में ये समय अध्ययन और अध्यापन के लिए सबसे अनुकूल और सर्वश्रेष्ठ माना गया है।
ज्योतिष में गुरु पूर्णिमा का महत्त्व
आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा की तिथिगुरु पूर्णिमा अथवा व्यास पूर्णिमा के नाम से जानी जाती है।गुरु के प्रति पूर्ण सम्मान, श्रद्धा-भक्ति और अटूट विश्वास रखने से जुड़ा यहां पर वह न्यान अर्जन की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। मान्यता है किगुरु अपने शिष्यों के आचार-विचारों को निर्मल बनाकर उनका उचित मार्गदर्शन करते हैं तथा इस नश्वर संसार के मायाजाल अहंकार, भ्रांती, अज्ञानता, दंभ, भय आदि दुर्गुणों से शिष्य को बचाने का प्रयास करते हैं।
गुरु पूर्णिमा की ज्योतिष मान्यता
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस तिथि को चंद्र ग्रह,गुरु बृहस्पति की राशि धनु और शुक्र के नक्षत्र पूर्वाषाढ़ा में होते हैं। क्योंकि चंद्रमा मन का कारक है। इसलिए मनुष्य का संबंध दोनों गुरुजनों से स्थापित होने से वह न्याय की ओर भी लक्षित होते हैं। वहीं दूसरी और आषाढ़ मास में आकाश घने बादलों से आच्छादित रहते हैं। अज्ञानता के प्रतीक इस बादलों के बीच से जब पूर्णिमा का चंद्रमा प्रकट होता है तो माना जाता है कि अदनान आता रूपी अंधकार दूर होने लगता है। इसलिए इस दिन पुराणों में रचीयता वेदव्यास और वेदों के व्याख्याता सुखदेव के पूजन की परंपरा है। अतः पूर्णिमा गुरु है, जबकि आषाढ़ शिष्य है।
आचार्य का परिचय
नाम-आचार्य डॉक्टर चंडी प्रसाद घिल्डियाल
पब्लिक सर्विस कमीशन उत्तराखंड से चयनित प्रवक्ता संस्कृत।
निवास स्थान- धर्मपुर चौक के पास अजबपुर रोड पर मोथरोवाला टेंपो स्टैंड 56 / 1 धर्मपुर देहरादून, उत्तराखंड।
मोबाइल नंबर-9411153845
उपलब्धियां
वर्ष 2015 में शिक्षा विभाग में प्रथम गवर्नर अवार्ड से सम्मानित वर्ष 2016 में। सटीक भविष्यवाणी पर उत्तराखंड के तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत सरकार ने दी उत्तराखंड ज्योतिष रत्न की मानद उपाधि। त्रिवेंद्र सरकार ने दिया ज्योतिष विभूषण सम्मान। वर्ष 2013 में केदारनाथ आपदा की सबसे पहले भविष्यवाणी की थी। इसलिए 2015 से 2018 तक लगातार एक्सीलेंस अवार्ड प्राप्त हुआ। ज्योतिष में इस वर्ष 5 सितंबर 2020 को प्रथम वर्चुअल टीचर्स राष्ट्रीय अवार्ड प्राप्त किया। वर्ष 2019 में अमर उजाला की ओर से आयोजित ज्योतिष महासम्मेलन में ग्राफिक एरा में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने दिया ज्योतिष वैज्ञानिक सम्मान। ज्योतिष रत्न डॉ चंडी प्रसाद घिल्डियाल की अधिकांश भविष्यवाणियां सटीक साबित हो रही हैं।

Website | + posts

लोकसाक्ष्य पोर्टल पाठकों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें लेख, रचनाएं आमंत्रित हैं। शर्त है कि आपकी भेजी सामग्री पहले किसी सोशल मीडिया में न लगी हो। आप विज्ञापन व अन्य आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं।
वाट्सएप नंबर-9412055165
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You cannot copy content of this page