किसानों के साथ केंद्र और हरियाणा सरकार का व्यवहार निंदनीय
उत्तराखंड में भाकपा (माले) के गढ़वाल सचिव इंद्रेश मैखुरी ने किसान विधेयकों के खिलाफ दिल्ली जा रहे किसानों पर हरियाणा और केंद्र सरकार के व्यवहार की कड़ी निंदा की। उन्होंने इसे दमनकारी नीति बताया और अलोकतांत्रिक करार दिया। एक बयान में उन्होंने कहा कि किसान विधेयकों के खिलाफ प्रदर्शन करने दिल्ली जा रहे किसानों पर जैसा दमन हरियाणा और केंद्र की सरकार ने ढहाया, वह निंदनीय है। पानी की बौछार, कंटीली तारबाड़ और यहाँ तक कि किसानों को रोकने के लिए सड़कें तक खोद डाली गयी। सत्ता के मद में चूर मोदी सरकार की यह बेहद आलोकतांत्रिक कार्यवाही है। जिसे कतई स्वीकार नहीं किया जा सकता। सरकार परस्त मीडिया ने जिस तरह आंदोलनकारी किसानों को बदनाम करने का अभियान चलाया, वह शर्मनाक है। सत्ताधारी पार्टी के समर्थन में किसी भी हद तक जाने के लिए इन मीडिया घरानों को भाजपा के आईटी सेल में ही अपना विलय कर लेना चाहिए।
उन्होंने कहा कि देश के बड़े कॉरपोरेट घरानों को फायदा पहुंचाने के लिए मोदी सरकार तीन कृषि कानून ले कर आई और आनन-फानन में उन्हें पारित भी करवा दिया। आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन का परिणाम तो साफ दिखाई दे रहा है। आलू, प्याज, दालों और खाद्य तेल की कीमतों में बढ़ोतरी मोदी सरकार के किए गए बदलाव का ही परिणाम है। बाकी दो कानून, किसानों को खेती से पूरी तरह बेदखल करके, उनकी जमीनें बड़े पूँजीपतियों के हवाले करने के कानून हैं। दमनकारी हथकंडे अपनाने के बजाय मोदी सरकार को किसान की मांग को मानते हुए इन कानूनों को रद्द करना चाहिए।
भापका माले के गढ़वाल सचिव ने कहा कि किसान आंदोलन ने जिस तरह शांतिपूर्वक और बहादुराना तरीके से सरकारी दमन-उत्पीड़न का सामना किया। उसे सलाम किया जाना चाहिए। देश के तमाम न्यायपसंद लोगों को किसानों के इस संघर्ष में उनके साथ मजबूती से खड़ा होना चाहिए। यह खेती को बचाने का संघर्ष तो है ही, देश की खाद्य सुरक्षा को भी बचाने की लड़ाई है। भाकपा (माले) किसान आंदोलन का समर्थन करती है। इन बहादुर किसानों ने अपने रास्ते में तमाम बाधाएं खड़ी करने वाली सत्ता को झुकने पर मजबूर करते हुए उनके दिल्ली प्रवेश का रास्ता साफ करने के लिए विवश किया।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।