धरती से 32 करोड़ किमी की दूरी से लाए गए पिटारे के खुलने की तारीख तय, दुनियाभर के वैज्ञानिक उत्साहित, पढ़िए रोचक खबर
दुनिया भर के वैज्ञानिक ब्रह्मांड के रहस्यों को लेकर अध्ययन में जुटे हुए हैं। इसके लिए अमेरिकी अंतरिक्ष ऐजेंसी नासा के वैज्ञानिकों ने पृथ्वी के करीब के एस्टेरॉयड बेन्नू के नमूने धरती तक लाने में हाल ही में कामयाबी मिल चुकी है। वैज्ञानिकों को उनकी अपेक्षा से कहीं ज्यादा अच्छा नमूना मिला है। हाल ही में उल्कापिंड बेन्नू का सैंपल एक कैप्सूल के जरिये धरती पर पहुंचा। 26 सितंबर को वैज्ञानिकों ने जब नमूने वाला कनस्तर खोला तो उन्होंने भारी मात्रा में गहरे महीन दाने वाली सामग्री खोजी। कनस्तर की दीवारों पर धूलभरे कण थे। मूल नमूने का विश्लेषण करने से पहले यह धूल जैसे कण एस्टेरॉयड के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी दे सकता है। फिलहाल अभी बड़े सैंपल वाले कनस्तर को नहीं खोला गया है। इसके खोलने की तारीख तय कर दी गई है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
सात साल तक चला मिशन
सैंपल भरा कैप्सूल 24 सितंबर को अमेरिका के यूटा रेगिस्तान में लैंड हुआ। नासा ने उल्कापिंड बेन्नू के लिए ओसाइरिस रेक्स मिशन चलाया था। सात वर्षों तक चले इस मिशन के बाद सैंपल को धरती तक लाने में वैज्ञानिक कामयाब हुए। इस मिशन में नासा का अंतरिक्ष यान धरती से 32 करोड़ किमी की दूरी पर एस्टेरॉयड बेन्नू के करीब गया। मिशन के जरिए उल्कापिंड का पूरा मॉडल तैयार किया गया। इसकी तस्वीरें खींची गई। साथ ही उल्कापिंड का सैंपल भी भरा गया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
सैंपल से वैज्ञानिकों को उम्मीद
मिशन टीम ने ह्यूस्टन में नासा के जॉनसन स्पेस सेंटर में पहुंचने के अगले दिन इस कैप्सूल को खोला। इसे खोलने के लिए एक क्लीन रूम बनाया गया था। एस्टेरॉयड ब्रह्मांड के निर्माण से जुड़े अवशेष हैं। इससे यह पता लगाया जा सकता है कि जब ग्रह बने तो शुरुआती दिनों में किस तरह थे। हालांकि, धरती के करीब का उल्कापिंड हमारे लिए खतरा भी पैदा करता है। इस तरह के उल्कापिंड भविष्य में पृथ्वी से टकरा सकते हैं। ऐसे में हमारे लिए इनका रास्ता बदलने से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी सैंपल से मिल सकती है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
इस दिन देखा जाएगा नमूना
अक्टूबर 2020 में जब यह अंतरिक्ष यान बेन्नू की सतह पर गया तो पत्थर उछल गए थे। अभी उल्कापिंड का वास्तविक नमूना सामने नहीं आया है। 11 अक्टूबर के बाद इस नमूने को अलग किया जाएगा, जिसके बाद दुनिया यह जान सकेगी कि आखिर यह कैसा दिखता है। ओसाइरिस रेक्स मिशन के नमूना विश्लेषण टीम की सदस्य लिंडसे केलर ने एक बयान में कहा, ‘हमारे पास सभी माइक्रोएनालिटिकल तकनीकें हैं, जिन्हें हम वास्तव में इसे परमाणु के स्तर तक देख सकते हैं।’ टीम उल्कापिंड बेन्नू से मिले सामग्री की जांच के लिए इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप, एक्स-रे और इन्फ्रारेड उपकरणों का इस्तेमाल करेगी। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
एक कप मलबा मिलने का अनुमान
वैज्ञानिकों को बेन्नू नामक कार्बन-समृद्ध क्षुद्रग्रह से कम से कम एक कप मलबा मिलने का अनुमान है। हालांकि, जब तक कंटेनर को खोला नहीं जाता, उसमें मिलने वाली सामग्री के बारे में पुष्ट तरीके से कुछ भी नहीं कहा जा सकता है। क्षुद्रग्रह के नमूने वापस लाने वाला एकमात्र अन्य देश जापान दो क्षुद्रग्रह मिशन से केवल एक चम्मच मलबा ही एकत्र कर सका था। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
टुकड़ों को बांटकर दुनिया भर के वैज्ञानिकों को भेजेंगे
नासा के वैज्ञानिक जिस धूल और चट्टान के छोटे-छोटे टुकड़ों को देखने के लिए उत्सुक हैं, उन्हें बांटकर दुनिया भर के शोधकर्ताओं को भेजा जाएगा। OSIRIS-REx मिशन टीम के पास सबसे बड़ा हिस्सा पहुंचेगा। हायाबुसा-2 मिशन से नासा को भेजे गए क्षुद्रग्रह नमूनों के बदले में लगभग 4% नमूना कनाडाई अंतरिक्ष एजेंसी को और 0.5% जापानी अंतरिक्ष एजेंसी को जाएगा। कुछ सामग्री न्यू मैक्सिको में एक सुरक्षित फैसिलिटी में भी संग्रहीत की जाएगी। दुनिया भर के वैज्ञानिक भी नासा से इस छुद्रग्रह के छोटे हिस्से मांग सकेंगे। इसके कुछ भाग को भविष्य के लिए भी बचाकर रखा जाएगा। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
250 ग्राम धूल, मिट्टी और पत्थर का अनुमान
क्षुद्रग्रह बेन्नू के नमूने वाला जो कैप्सूल धरती पर उतरा है, इसमें सिर्फ 250 ग्राम धूल-मिट्टी और पत्थर के टुकड़े होगें। हालांकि इसे पर्याप्त माना जा रहा है। यह पहली बार नहीं है कि किसी क्षुद्रग्रह से सामग्री पृथ्वी पर वापस लाई गई है। जापान ने क्षुद्रग्रहों इटोकावा और रयुगु के लिए हायाबुसा मिशन के जरिए ऐसा किया है। उस वक्त जापान दोनों छुद्रग्रहों से 6 ग्राम से थोड़ा कम सामग्री प्राप्त करने में कामयाब रहा था। यह बहुत अधिक नहीं लग सकता है, लेकिन वास्तव में वैज्ञानिक जिस प्रकार के परीक्षण करना चाहते हैं, उसके लिए यह पर्याप्त हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
पृथ्वी और जीवन की उत्पत्ति को समझने में मिलेगी मदद
रविवार को पहुंचे क्षुद्रग्रह के नमूनों के अध्ययन से वैज्ञानिकों को 4.5 अरब साल पहले हमारे सौर मंडल की शुरुआत के संबंध में और बेहतर ढंग से यह समझने में मदद मिलेगी कि पृथ्वी और जीवन ने कैसे आकार लिया। ओसिरिस-रेक्स अंतरिक्ष यान ने 2016 में अपना मिशन शुरू किया था और इसने बेन्नू नामक क्षुद्रग्रह के नजदीक पहुंचकर 2020 में नमूने एकत्र किए थे। इन नमूनों को ह्यूस्टन स्थित नासा के जॉनसन अंतरिक्ष केंद्र में ले जाया गया है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
पृथ्वी के निर्माण का खुलेगा राज
लंदन में प्राकृतिक इतिहास संग्रहालय (एनएचएम) के एशले किंग ने कहा कि ये हमारे सौर मंडल में बनी सबसे पुरानी सामग्रियों में से कुछ हैं। क्षुद्रग्रहों के नमूने हमें बताते हैं कि पृथ्वी जैसा ग्रह बनाने के लिए वे सभी सामग्रियां क्या थीं और वे हमें यह भी बताते हैं कि नुस्खा क्या था। ये टुकड़े ये भी बता सकते हैं कि वे सामग्रियां एक साथ कैसे आईं और एक साथ मिश्रित होने लगीं और अंत में पृथ्वी पर रहने योग्य वातावरण बन गया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
छुद्रग्रह बेन्नू को ही क्यों चुना गया
वास्तव में बेन्नू को संभावित रूप से खतरनाक क्षुद्रग्रह के रूप में वर्गीकृत किया गया है। नासा का सुझाव है कि 2100 के दशक के मध्य के बाद, और कम से कम 2300 तक, इसके पृथ्वी से टकराने की 1,750 में से एक संभावना है। अनुसंधान का एक अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्र क्षुद्रग्रह की कार्बन से भरी सतह है, जिसका अध्ययन करके वैज्ञानिक यह पता लगाने के लिए उत्सुक हैं कि क्या ऐसी वस्तुएं जीवन के लिए महत्वपूर्ण सामग्री – जैसे कार्बनिक पदार्थ और पानी – पृथ्वी पर ला सकती थीं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
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