75 वीं शहादत दिवस पर नागेंद्र सकलानी, मोलू भरदारी को माकपा ने किया नमन, किया गया बलिदान को याद

मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने आज नागेंद्र सकलानी एवं मोलू भरदारी की 75 वीं शहादत दिवस के मौके पर पार्टी के राज्य कार्यालय सभागार में एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया। इस दौरान दोनों शहीदों चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित की गई। इसके बाद गोष्ठी में इन बलिदानियों के संघर्ष की यादों को ताजा किया गया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
इस अवसर पर वक्ताओं ने कहा है कि नागेंद्र सकलानी एवं मोलू भरदारी की शहादत ने 1200 वर्षों के टिहरी राजशाही के दमनचक्र का इतिहास पलट करके रख दिया। साथ ही टिहरी की जनता को राजशाही की गुलामी से मुक्त किया। वक्ताओं ने कहा है कि नागेंद्र सकलानी ने देहरादून में शिक्षा ग्रहण कर साम्यवादी विचार का रास्ता अपनाया तथा टिहरी रियासत के गांव – गांव जाकर लोगों को राजशाही दमन के खिलाफ शिक्षित कर उन्हें आन्दोलित किया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
वक्ताओं ने कहा है कि 1930 में रवाईं में हकहकूकों के लिए लड़ रहे किसानों का नरसंहार, 1944 में श्रीदेव सुमन की शहादत उसके बाद देश की स्वतंत्रता के एक कुछ माह बाद ही 1948 में राजशाही के खिलाफ 10 जनवरी को नागेद्र सकलानी आदि आन्दोलन के नेताओं ने कीर्तिनगर को मुक्त करने के फैसले के तहत कचहरी पर तिरंगा झण्डा फहराया। 11 जनवरी 1948 को जब आन्दोलनकारी राजधानी टिहरी कूच की तयारी कर रहे थे तब रियासत की नरेन्द्र नगर से भेजी गयी फौज ने कीर्तिनगर पर पुन: कब्ज़ा करने का प्रयास किया। आन्दोलकारियों के दबाव के चलते राजा के अधिकारी भाग खड़े हुए। जाते- जाते सकलानी ने एसडीओ को गिरा दिया। तैश में आकर उसने गोली चलायी जो मौके पर नागेंद्र व मोलू भरदारी पर लगी। दोनों वहीं शहीद हो गये। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
इस प्रकार 11 जनवरी 1948 को कीर्तिनगर आजाद हुआ। शहादत की सूचना चन्द्र सिंह गढ़वाली को मिली तो वे 12 जनवरी 1948 को कीर्तिनगर पहुंचे तथा उन्होंने शहीदों के शवों के साथ टिहरी कूच का ऐलान किया। वक्ताओं ने कहा कि आन्दोलकारी जहाँ – जहाँ से गुजरे वहीं जनता का सैलाब उमड़ा तथा शहीदों को जगह – जगह श्रद्धान्जलि देने के साथ ही क्षेत्र में राजशाही शासन से मुक्ति की घोषणा करते हुए जनता का हजूम शहीदों के शवों के साथ 14 जनवरी 1948 को टिहरी पह़ुंचा। जहाँ 1200 साल पुरानी राज व्यवस्था के खात्मे का ऐलान किया गया। 15 जनवरी 1948 को टिहरी में अन्ततः दादा दौलतराम के नेतृत्व में अन्तरिम सरकार का गठन हुआ। इस प्रकार टिहरी राजशाही का सदा सदा के लिए अन्त हो गया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
वक्ताओं ने कहा है कि जुल्म, उत्पीड़न, हकहकूकों की लड़ाई की शुरुआत 1930 में रंवाई के शहीदों ने की थी। 1944 में श्रीदेव सुमन ने शहादत दी। उसी लड़ाई को आगे बढ़ाते हुऐ 1948 में नागेंद्र सकलानी एवं मोलू भरदारी ने अपने शहादत देकर आगे बढ़ाया। उनकी शहादत के बाद चन्द्रसिंह गढ़़वाली के नेतृत्व में टिहरी कूच कर राजशाही को सदा सदा के लिए उखाड़ फेंका गया। वक्ताओं ने कहा है कि इस प्रकार नागेंद्र की शहादत राजशाही के अन्त का कारण बनी। टिहरी की जनता उनके योगदान को सदैव याद रखेगी। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
इस अवसर पर सीपीएम के राज्य सचिव राजेंद्र सिंह नेगी, राज्य सचिव मण्डल के सदस्य सुरेंद्र सिंह सजवाण, जिला सचिव राजेंद्र पुरोहित, महानगर सचिव अनन्त आकाश, पार्टी नेता एवं पूर्व जिलापंचायत अध्यक्ष शिवपप्रसाद देवली, पूर्व प्राचार्य विजय शंकर शुक्ला, विजय भट्ट, लेखराज, नितिन मलेठा, भगवन्त पयाल, इन्द्रेश नौटियाल, रविन्द्र नौडियाल, बिन्द्रा मिश्रा, यू एन बलूनी, एन एस पंवार, विनोद कुमार, मामचंद, मधु, सबी सामवेद, सुरेशी नेगी, शबनम, ममगा मौर्य, सुनीता, गौरादेवी, शान्ता देवी उनियाल, कांन्ति थापा आदि प्रमुख उपस्थित थे। गोष्ठी की अध्यक्षता इन्दु नौडियाल ने की।

Bhanu Prakash
लोकसाक्ष्य पोर्टल पाठकों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें लेख, रचनाएं आमंत्रित हैं। शर्त है कि आपकी भेजी सामग्री पहले किसी सोशल मीडिया में न लगी हो। आप विज्ञापन व अन्य आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं।
भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।