शिक्षा को दी कोरोना ने टक्कर फिर भी शिक्षा आबाद रही
वैश्विक स्तर पर प्रभावी दो महाशक्तियां जिन्होंने अपना वर्चस्व संपूर्ण विश्व में कायम रखा है, और दोनों महा शक्तियां अपना अपना वर्चस्व स्थापित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। एक शक्ति अपने प्रभाव से विश्व को देदीप्यमान बनाना चाहती हैं। तथा दूसरी
महाशक्ति अपने प्रभाव से संसार को विनाशत्मक स्वरूप में बदलने का लक्ष्य निर्धारित कर रही है। यही दोनों महाशक्तियों में विरोधाभास है।
शिक्षा जैसी महाशक्ति विश्व के कोने-कोने में अपना प्रभाव छोड़ कर के लोगों में जागृति और अच्छी जीवन यापन की शैली को कायम रखने में अथक प्रयास कर रही है। तथा दूसरी और कोरोना जैसी विश्वव्यापी विनाशक महाशक्ति शैक्षिक जगत का उजाड़ करके शून्य सांसारिक स्वरूप में बदलने का भरसक प्रयास कर रही है।
विश्व की भयानक परिस्थितियों में शिक्षा के शिक्षण केंद्रों को महामारी में अपने वशीभूत करके अपने केंद्रों में बदल दिया। विश्व की सभी महामारियों ने अपना समर्थन इस महामारी को दे दिया। जिसका स्वरूप मुंह पर पर्दा , व्यक्ति से व्यक्ति की दो गज दूरी तथा बिन छुए हाथों के साथ। इसी स्वरूप को देख कर दो महा शक्तियों मे आपसी विरोध एवं घमासान संघर्ष की स्थिति पैदा हो गई। दोनों की स्थिति ऐसी हो गई जैसे प्रथम एवं द्वितीय महायुद्ध में विश्व के विभिन्न देशों की स्थिति थी। ठीक वैसे ही आज भी विश्व के देशों ने इस महामारी के संक्रमण के द्वारा संपूर्ण विश्व को पंगु बना दिया है। जिस को सहारा देने वाली एकमात्र सहायिका शिक्षा थी।
आज उसको भी कैद करके कानों से बहरी, बिना जीभ की गूंगी, आंखो से अंधी, पैरों से अपंग एवं हाथों से असहाय महिला के समान बना दिया है। एक समय वह था जब शिक्षा मानव में नवीन शक्ति का संचार करती है, जिससे अज्ञानी मानव शिक्षा जगत के विशाल सरोवर में गोते लगाते हुए ज्ञान की लौ में तपे हुए सोने के समान निखर जाता है। परंतु हर अच्छाई के साथ बदलती परिस्थितियों में एक नवीन विनाशक शक्ति का आविर्भाव हुआ है जिसने शिक्षा के विशाल पुंज को टक्कर देख कर मानव को उससे असहाय करके पंगु बना दिया।
बेचारा मानव मार्गदर्शनी शिक्षा से वंचित हो गया है साथ ही अपनो से मुंह छिपा कर 2 गज की दूरी रखना ही जीवन जीने का वसूल मानने लगा है ऐसी स्थिति में शिक्षा की स्थिति बहुत ही दयनीय हो गई। जहां कभी शिक्षा में डिग्रियां नौकरियां और अच्छे पदों पर पहुंचने वाले लोगों की संख्या की गिनती की जाती थी ,आज उनका स्थान विनाशक महामारी से ग्रसित लोगों की संख्या ने ले लिया है।
परंतु अंतिम निराकरण एवं समाधान रूप में दोनों महा शक्तियों की टक्कर के बाद होने वाले परिणाम को देखकर हम यह कह सकते हैं कि शिक्षा ही वह साधन है। जिससे दुनिया में व्याप्त विनाशक शक्ति को परास्त किया जा सकता है। इन्हीं के द्वारा आज शिक्षा के आबाद रहने के साथ-साथ मानव भी आबाद है वरना इस मुश्किल में है कि मानव अपना वजूद खो सकता था, शिक्षा के अभाव में।
पंगु हुई इस बुरे दौर में शिक्षा के संरक्षण कर्ता शिक्षकों ने अप्रत्यक्ष साधन ( ऑनलाइन टीचिंग,; स्माइल, दूरवानी , देववानी ) के माध्यम से एवं प्रत्यक्ष रूप शिक्षा के उपयोगकर्ता शिक्षक , डॉक्टर मय स्टाप द्वारा वजूद कायम रखा। अतः मानव रूपी वृक्ष की जड़ों में कोरोना रूपी दीमक ने अस्तित्व खतरे में डाल दिया था, परंतु शिक्षा रूपी संजीवनी (पानी) ने वजूद खोने नहीं दिया ।
इसी कारण शिक्षा जगत के संपूर्ण तंत्र से यह करना सार्थक है कि विश्वव्यापी जाल में फंसे विद्यार्थी रूपी पक्षियों को घर पर क़ैद न करके अपने राह पर मय साधन धीरे-धीरे आगे बढ़ने में मार्गदर्शन करें। तब ही शिक्षा आबाद रहेगी और महामारी बर्बाद रहेगी ।
लेखक का परिचय
गीता राम मीणा
प्राध्यापक हिंदी
स्वामी विवेकानंद राजकीय मॉडल स्कूल लाखेरी के पाटन जिला बूंदी, राजस्थान।
दूरभाष नं.- 9462701943
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।