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December 17, 2024

कोरोना ने बदली परंपराएंः ईद को नहीं मिले गले, अक्षय तृतीया को नहीं हुई आभूषण की खरीददारी

कोरोना के नियमों के चलते दोनों ही त्योहार प्रतिकात्मक हो गए।पाक माह रमजान के तीस रोजे के बाद शुक्रवार को ईद-उल-फितर सादगी के साथ मनाई गई।

ईद उल फितर और अक्षय तृतीया एक दिन। एक हिंदू धर्म का त्योहार तो दूसरा मुस्लिम धर्म का सबसे बड़ा त्योहार। एक तरफ मिठाई की सजी दुकानें तो दूसरी तरफ आभूषण की दुकानों में भीड़। एक तरफ मस्जिद और ईदगाह में नमाजियों की भीड़ तो दूसरी तरफ मंदिरों में बजती घंटियां। एक तरफ गले मिलकर एक दूसरे को ईद की बधाई तो दूसरी तरफ पवित्र नदियों में स्नान करने वालों की भीड़। ये सब लगातार दूसरे साल से गायब है। यानी कोरोनाकाल ने इन दोनों त्योहार को मनाने के तरीके ही बदल दिए।
ऐसे मनाई गई ईद
इस बार मंदिर जहां बंद हैं, दुकानों में कोरोना कर्फ्यू के चलते ताले हैं। सड़कों पर लोग कम हैं। कोरोना के नियमों के चलते दोनों ही त्योहार प्रतिकात्मक हो गए।पाक माह रमजान के तीस रोजे के बाद शुक्रवार को ईद-उल-फितर सादगी के साथ मनाई गई। एक साल तक इंतजार करने के बाद ईद की खुशियां इस बार कोरोना संक्रमण ने कम कर दी। उत्तराखंड में तो अधिकांश स्थानों पर महामारी के कारण ईदगाह व मस्जिद में सिर्फ पांच से सात लोगों ने नामज पढ़ी। गले मिलने की बजाय सोशल मीडिया में संदेश संदेश दिए गए।
मुस्लिम बाहुल्य इलाकों की दुकानें भी बंद हैं। ऐसे में चहल पहल गायब है। सीमित संख्या में लोगों ने ईद की नमाज पढ़ी। बाकी लोग ने घरों में नमाज अता कर देश की खुशहाली, कोरोना संक्रमण के खात्मे की दुआ मांगी। कोरोना गाइडलाइन का उल्लंघन न हो इसके लिए ईदगाह समेत विभिन्न मस्जिदों के बाहर पुलिस तैनात रही।
देहरादून में चकराता रोड स्थित ईदगाह में सुबह छह बजे शहर काजी मौलाना मोहम्मद अहमद कासमी ने ईद की नमाज पढ़ाई। इसके अलावा पलटन बाजार स्थित जामा मस्जिद, जामा मस्जिद धामावाला, मुस्लिम कॉलोनी, चोरवाला, चूना भट्टा, पटेलनगर समेत शहर के विभिन्न क्षेत्रों में मस्जिदों में शारीरिक दूरी बनाकर पांच पांच लोग ने नमाज अता कर रब से खुशहाली की दुआ मांगी।
शहर काजी मौलाना मोहम्मद अहमद कासमी ने सभी से अपील की है कि वैश्विक महामारी को देखते हुए प्रशासन की ओर से जारी गाइडलाइन का पालन करें। एक दूसरे से गले मिलने के बजाए दूर से ही ईद मुबारकबाद दें, दावत में भीड़ न करें, घरों में ही सीमित संख्या में परिवारजनों के साथ इस पर्व को मनाएं।


अक्षय तृतीया में खरीददारी का महत्व
अक्षय तृतीया का विशेष महत्व नष्ट न होने वाला कर्म, क्रिया, दान, धर्म, जप, तप, योग, सदविचार के रूप में जाना जाता है। अर्थात जो कभी नष्ट नहीं हो सकता है, ऐसी धातु को खरीदने का इस दिन प्रचलन है। यही अक्षय तृतीया के दिन परशुराम जयंती के रूप में मनाया जाता है। इस दिन विवाह का भी विशेष और श्रेष्ठ दिन माना जाता है। इस दिन को बिना देखे विचारे विवाह के लिए श्रेष्ठ पर्व के रूप में मनाया जाता है। अक्षय तृतीया के दिन लोग अक्षय (जो कभी समाप्त न हो) होने वाली धातु को खरीदते हैं। अर्थात सोने, चांदी की धातुओं को खरीदने का विशेष दिवस है।
यूं ही समाप्त हो गया खरीददारी का पर्व
एक ओर कोरोनाकाल में जहां सर्राफा की दुकाने बंद होने के कारण इस वर्ष यह अक्षय तृतीया बिना खरीददारी यूं ही समाप्त हो गई। वहीं, इस दिन बाजार में करोड़ों का व्यापार आयात और निर्यात होता है, जो लगातार दूसरे साल भी चौपट है। पूरे साल भर से लोग इस दिन का इंतजार करते हैं। सदकर्म, पुण्य, दान, जप, धन, दौलत वृद्धि कर्म के लिए इस दिन का इंतजार किया जाता है। इस बार कोरोनाकाल के चलते दुकानें बंद हैं। ऐसे में इस दिन खरीददारी का महत्व समाप्त हो रहा है।
बेरोजगार हो रहे हैं ज्वेलर्स
देहरादून में डीएल रोड स्थित अमन ज्वेलर्स के नाम से दुकान चलाने वाले अजय वर्मा ने बताया कि कोरोनाकाल में सोने चांदी का व्यापार करने वाले ज्वेलर्स पूरी तरह से टूट चुके हैं। पिछले साल भी अक्षय तृतीया के दिन दुकानों में ताले लगे रहे और इस साल भी यही स्थिति है। लगातार दुकानें बंद होने के कारण व्यापार चौपट हो गया है। उन्होंने बताया कि सोने व चांदी के आभूषण की डिमांड फोन से भी नहीं होती है। लोग अपनी आंखों से ही सामने डिजाइन देख पसंद करते हैं। उन्होंने बताया कि पहले इस दिन 70 से 80 ग्राहक खरीददारी के लिए पहुंचते थे। इस बार दुकान ही नहीं खुली।
देहरादून में धामावाला स्थित इंडियन ज्वेलर्स के नाम से दुकान चलाने वाले जितेंद्र पंवार के मुताबिक, पिछले साल से ही आभूषण का कारोबार चौपट है। शहर के आउटर इलाकों में भी काफी दुकान खुल गई हैं। ऐसे में बाजार तक पुराने ग्राहक की पहुंचते हैं। अक्षय तृतीया के दिन ठीकठाक ग्राहक आते थे। दो साल से कोरोना के चलते इन दिन बड़ा नुकसान झेलना पड़ा है।

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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