केंद्रीय मंत्री का विवादित बयान, विदेश जाने वाले 90 फीसद मेडिकल छात्र एनईईटी में होते हैं फेल, इसके उलट ये भी है सच
यूक्रेन-रशिया युद्ध पर बोलते हुए केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी ने एक विवादित बयान दे दिया। केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने कहा कि विदेश में पढ़ने वाले 90 फीस मेडिकल स्टूडेंट नीट एग्जाम पास नहीं कर पाते हैं।

जोशी ने कहा कि यह सही समय नहीं है, जब उन कारणों पर बात की जाए कि देश के लोग क्यों देश जाकर पढ़ाई करने जाते हैं। जो लोग विदेश में पढ़ाई कर मेडिकल डिग्री हासिल करते हैं, उन्हें फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट्स एक्जामिनेशन को पास करना पड़ता है। तभी वो भारत में इलाज करने के योग्य घोषित किए जाते हैं। संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने कहा कि विदेश जाने वाले 90 फीसद मेडिकल स्टूडेंट्स वो होते हैं जो नीट क्लियर नहीं कर पाते हैं। हालांकि, उन्होंने कहा कि इस पर बहस करने का सही वक्त अभी नहीं है। हालांकि जोशी ने ये नहीं बताया कि भारत में मेडिकल पढ़ाई की फीस विदेश से कई गुना ज्यादा क्यों है। साथ ही इसका जवाब भी उन्होंने नहीं दिया कि नीट क्लियर करने वाले सात आठ लाख छात्र होते हैं, इनमें 90 हजार को ही मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश मिलता है। ऐसे में इन छात्रों के समक्ष विदेश जाने की बजाय दूसरा विकल्प क्या है।
मेडिकल की पढ़ाई के लिए बाहर जाने वाले 60 फीसद भारतीय स्टूडेंट्स चीन, रूस और यूक्रेन पहुंचते हैं। इनमें भी अक्सर करीब 20 फीसद अकेले चीन जाते हैं। इन देशों में एमबीबीएस के पूरे कोर्स की फीस करीब 35 लाख रुपये पड़ती है, जिसमें छह साल की पढ़ाई, वहां रहने, कोचिंग करने और भारत लौटने पर स्क्रीनिंग टेस्ट क्लियर करने का खर्च, सबकुछ शामिल होता है। इसकी तुलना में भारत के प्राइवेट कॉलेजों में एमबीबीएस कोर्स की केवल ट्यूशन फीस ही 45 से 55 लाख रुपये या इससे भी ज्यादा पड़ जाती है। हालांकि, एक तथ्य यह भी है कि विदेश के मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश पाना भी भारत के मुकाबले आसान है, जहां सीमित सीटों के लिए काफी ज्यादा प्रतिस्पर्धा होती है। वहीं, भारत में निजी कॉलेज तो एडमिशन के नाम पर लाखों का डोनेशन भी मांगते हैं। बताया तो ये भी जा रहा है कि यूक्रेन में तो बीस लाख रुपये में ही मेडिकल की पढ़ाई हो जाती है। वहीं, भारत में निजी कॉलेजों में एक करोड़ तक छात्रों से वसूल कर लिए जाते हैं। इस लूट खसोट पर केंद्रीय मंत्री का ध्यान नहीं गया, या फिर सब कुछ जानकर वह चुप हैं। क्योंकि भारत में कई निजी मेडिकल कॉलेजों का संचालन कई नेताओं द्वारा भी किया जा रहा है।
पिछले हफ्ते से जब से यूक्रेन पर रूस का हमला हुआ है, उसके बाद से लगातार भारतीय छात्रों के वीडियो सामने आ रहे हैं, जिसमें वो जान बचाने और सुरक्षित स्वदेश वापसी की गुहार सरकार से लगा रहे हैं। छात्रों का कहना है कि उन्हें पोलैंड, रोमानिया के लिए ट्रेनों में सवार नहीं होने दिया जा रहा है। इन देशों में सीमा पर भी लाखों की संख्या में लोग जमा हैं और भारतीय छात्रों को वहां खुले में बर्फबारी के बीच रातें गुजारनी पड़ रही हैं।
उन्होंने आरोप लगाया कि कई बार यूक्रेनी सुरक्षाकर्मियों ने उनके साथ हाथापाई की और उन्हें ट्रेन से उठाकर बाहर फेंक दिया। बॉर्डर तक पहुंचने के लिए भी छात्रों को मीलों पैदल चलना पड़ता है, वो भी शून्य के नीचे हाड़ कंपा देने वाले तापमान में। उनके पास खाने-पीने का भी कोई इंतजाम नहीं होता है। मंगलवार को यूक्रेनी शहर खारकीव में रूस के एक इमारत पर हुए हमले में एक भारतीय नागरिक नवीन शेखरप्पा की मौत हो गई, जबकि एक अन्य घायल हो गया। सरकार की योजना है कि अगले तीन दिनों में 26 उड़ानें यूक्रेन के पड़ोसी देशों से संचालित की जाएंगी ताकि ज्यादा से ज्यादा छात्रों को जल्दी से जल्दी देश लाया जा सके।
हर वर्ष करीब 25 हजार मेडिकल स्टूडेंट्स जाते हैं विदेश
अनुमान है कि 20 से 25 हजार मेडिकल स्टूडेंट्स हर वर्ष विदेश जाते हैं। भारत में मेडिकल की पढ़ाई के लिए NEET एंट्रेंस एग्जाम पास करना होता है। यहां हर वर्ष सात से आठ लाख स्टूडेंट्स NEET क्वॉलिफाइ करते हैं। वहीं, देशभर में मेडिकल की सिर्फ 90 हजार से कुछ ही ज्यादा सीटें हैं। इनमें आधे से कुछ ज्यादा सीटें सरकारी मेडिकल कॉलेजों में हैं जहां से पढ़ाई सस्ती है, लेकिन वहां एडमिशन तभी मिल सकता है जब नीट में बेहतरीन स्कोर मिले। प्राइवेट कॉलेजों की सरकारी कोटा वाली सीटों में एडमिशन के लिए भी नीट में हाई स्कोर हासिल करना होता है। अगर स्कोर कम है तो प्राइवेट कॉलेजों में सरकारी कोटा सीटों पर एडमिशन नहीं हो पाता है और मैनेजमेंट कोटे से एडमिशन की फीस बहुत ज्यादा हो जाती है।