सभ्यताओं के संरक्षण के लिए सांस्कृतिक विरासतों का संरक्षण जरूरीः डॉ तरुण विजय
दून विश्वविद्यालय में आजादी के 75 में अमृत महोत्सव के अंतर्गत पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जयंती समारोह का आयोजन किया गया। इसकी थीम "उत्तराखंड की सांस्कृतिक विरासत" रखी गई।
उन्होंने कहा कि किसी भी सभ्यता के संरक्षण के लिए सांस्कृतिक विरासतों का संरक्षण जरूरी है। भारत के प्रधानमंत्री माननीय नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सांस्कृतिक विरासतों के संरक्षण का कार्य प्राथमिकता के साथ किया जा रहा है। इसी क्रम में प्रधानमंत्री की हाल ही में की गई अमेरिका की यात्रा के दौरान उन्हें भारत से संबंधित सांस्कृतिक विरासत से संबंधित कलाकृतियों एवं वस्तुओं को सौंपा गया।
डॉ तरुण विजय ने अपने वक्तव्य में कहा कि उत्तराखंड के बहुत से क्षेत्र सांस्कृतिक विरासत के तौर पर अग्रणी है। जैसे कि चकराता, गढ़ी कैंट, बद्रीनाथ, केदारनाथ, आदिबद्री, कटारमल, द्वाराहाट और जागेश्वर हैं। इन स्मारकों का रखरखाव अत्यंत जरूरी है। क्योंकि यह आने वाली पीढ़ी के लिए प्रेरणा स्रोत होते हैं, इसके संरक्षण के लिए लोगों के बीच भी जन जागरण किया जाना भी आवश्यक है।
दून विश्वविद्यालय की कुलपति प्रोफेसर सुरेखा डंगवाल ने कहा कि भारतीय संस्कृति ही हमारी वास्तविक विरासत है। भारत सदैव से ही अपनी महान परंपराओं के लिए प्रसिद्ध रहा है। इन परंपराओं को सही ढंग से वैश्विक पटल पर लाना हमारा उद्देश्य होना चाहिए। सांस्कृतिक स्मारकों का संरक्षण, आने वाली पीढ़ी के लिए प्रेरणा का काम करता है। भारतीय संस्कृति की पुनर्स्थापना से भारत एक बार पुनः विश्व गुरु बनेगा और न केवल हमारा समाज बल्कि संपूर्ण विश्व, हमारे पूर्वजों के द्वारा किए गए कार्यों पर गौरवान्वित महसूस करेंगे। संस्कृति के संरक्षण के लिए, दून विश्वविद्यालय विभिन्न शोध और शिक्षण गतिविधियों का सदैव से ही संचालन करता रहा है साथ ही इसमें और अधिक तेजी लाई जाएगी।
इस कार्यक्रम का संचालन डीएसडब्ल्यू प्रो एस सी पुरोहित ने किया। कुलसचिव डॉ एम एस मंदरवाल ने इस कार्यक्रम में धन्यवाद ज्ञापित किया। कार्यक्रम में प्रो आर पी ममगई, प्रो हर्ष डोभाल, डॉ. सुनीत नैथानी, डॉ सविता कर्नाटक, डॉ अरुण कुमार, नरेंद्र लाल, डॉ राजेश भट्ट एवं साकेत उनियाल उपस्थित थे।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।