कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने किया सवाल-ऐसा क्या है जो पीएम को नफरती बोल के खिलाफ खड़े होने से रोकता है
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी हेट स्पीच के मामले में मुखर नजर आई। उन्होंने शनिवार को इसे लेकर पीएम मोदी पर भी तंज कसा और उनके सवाल भी किए।
सोनिया गांधी ने यह टिप्पणी देश के कई स्थानों पर रामनवमी के अवसर सांप्रदायिक झड़प, हिजाब और अजान से संबंधित विवाद की पृष्ठभूमि में की है। सोनिया गांधी ने दावा किया कि भारत को स्थायी उन्माद की स्थिति में रखने के लिए इस विभाजनकारी योजना का हिस्सा और भी घातक है। सत्तासीन लोगों की विचारधारा के विरोध में सभी असहमतियों और राय को बेरहमी से कुचलने की कोशिश की जाती है। राजनीतिक विरोधियों को निशाना बनाया जाता है।
उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी पर निशाना साधते हुए कहा कि भारत की विविधताओं को स्वीकार करने के बारे में प्रधानमंत्री जी की ओर से बातें तो बहुत हो रही हैं, लेकिन कड़वी हकीकत यह है कि जिस विविधता ने सदियों से हमारे समाज को परिभाषित किया है, उसका इस्तेमाल उनके राज में हमें बांटने के लिए किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि सामाजिक उदारवाद का बिगड़ता माहौल और कट्टरता, नफरत और विभाजन का प्रसार आर्थिक विकास की नींव को हिला देता है।
कांग्रेस अध्यक्ष ने सवाल किया कि ऐसा क्या है जो प्रधानमंत्री को स्पष्ट और सार्वजनिक रूप से हेट स्पीच के खिलाफ खड़े होने से रोकता है। चाहे यह हेट स्पीच कहीं से भी आए। सोनिया गांधी ने आरोप लगाया कि डर, धोखा और डराना-धमकाना इस तथाकथित मैक्सिमम गवर्नेंस, मिनिमम गवर्नमेंट की रणनीति के स्तंभ बन गए हैं। उन्होंने कहा कि यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि कर्नाटक में जो किया जा रहा है, कॉरपोरेट जगत से जुड़े कुछ साहसी लोग उसके खिलाफ बोल रहे हैं। इन साहसी आवाजों के खिलाफ सोशल मीडिया में एक अनुमानित प्रतिक्रिया हुई है, लेकिन चिंताएं बहुत व्यापक हैं। बहुत वास्तविक भी हैं।
सोनिया गांधी ने कहा कि संविधान सभा द्वारा 1949 में संविधान को अंगीकृत किए जाने के उपलक्ष्य में मोदी सरकार ने 26 नवंबर को संविधान दिवस के रूप में मनाने की प्रथा शुरू की है। यह हर संस्था को व्यवस्थित रूप से शक्तिहीन करते हुए संविधान का पालन करने जैसा है। यह सरासर पाखंड है। उन्होंने दावा किया कि देश का एक उज्ज्वल भविष्य बनाने और युवा प्रतिभाओं का बेहतर इस्तेमाल करने में हमारे संसाधनों का उपयोग करने के बजाय, एक काल्पनिक अतीत के नाम पर वर्तमान को नया रूप देने के प्रयासों में समय और मूल्यवान संपत्ति दोनों का उपयोग किया जा रहा है।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।