कर्नल अजय कोठियाल का राजनीति में आने का एलान, देखो कहां बनती है बातः पंकज कुशवाल
उत्तराखंड में कर्नल अजय कोठियाल (सेवानिवृत) लोगों के लिए अनजान चेहरा नहीं है। केदारनाथ आपदा के बाद किए गए राहत और बचाव कार्यों में उनके योगदान को आज भी याद किया जाता है। अब उन्होंने खुद कल रात को फेसबुक पर पोस्ट लिखकर ऐलान कर दिया है कि वह अपने सारे काम धंधे निपटाकर उत्तराखंड राज्य की राजनीति में घुसने का पूरा मन बना चुके हैं। हालांकि, राजनीति में आने की उनकी ईच्छा नई नहीं है।
उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में स्थित नेहरू पर्वतारोहण संस्थान में प्रधानाचार्य रहने के दौरान ही कर्नल अजय कोठियाल ने अपनी राजनीतिक महत्वकांक्षा जाहिर कर दी थी। केदारनाथ त्रासदी के बाद केदारनाथ धाम में खोज बचाव कार्य, निर्माण कार्यों में शामिल होने के बाद वह लगातार राजनीतिक रूप से सक्रिय रहने की कोशिश करते रहे। उनसे खफा होकर केदारनाथ में उनके सहयोगी रहे एक व्यक्ति ने आरोप भी लगाया था कि रात की दावत में अक्सर कर्नल अजय कोठियाल अपने समर्थकों को मंत्री पद बांटते रहते थे और खुद को मुख्यमंत्री मानते थे।
उम्मीद थी कि वह 2017 में सक्रिय राजनीति में आएंगे, लेकिन वह नहीं आए। 2019 में लोक सभा चुनाव के दौरान उन्होंने गढ़वाल संसदीय सीट के कई गांवों में जनसंपर्क किया। आरएसएस के कई शीर्ष लोगों से मुलाकात की। लोगों से लगातार मिलते जुलते रहे तो लगने लगा था कि 2019 में वह भाजपा के गढ़वाल संसदीय सीट से उम्मीदवार हो सकते हैं। ऐन मौके पर टिकट तीरथ सिंह रावत को मिला और कर्नल कोठियाल का राजनीति में आने का फैसला नेपथ्य में चला गया।
इस बीच वह बेहद कम सक्रिय रहे। हालांकि, उन्होंने अपनी फेसबुक से बताया कि वह सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण म्यांमार भारत की सड़क पर काम कर रहे हैं। लिहाजा वह बेहद कम सक्रिय रहे। पर फिर से फेसबुक के जरिये उन्होंने बता दिया है कि 2022 के विधान सभा चुनाव जो संभव है कि 2021 अक्टूबर में ही हो जाए के लिए तैयार हैं।
हालांकि, चर्चा ये भी है कि वह आम आदमी पार्टी की ओर से मुख्यमंत्री का चेहरा होंगे। जैसे कि आप आदमी पार्टी भी कई बार कह चुकी है कि एक पूर्व सेन्य अधिकारी और चर्चित चेहरा पार्टी में शामिल होगा। कर्नल अजय कोठियाल की राजनीति का ऊँट किस करवट बैठेगा और उनकी बात कहां होती है, यह तो समय ही बताएगा। भाजपा से टिकट के लिए उन्होंने काफी इंतजार किया, लेकिन 2017 में 2019 में उन्हें निराशा ही हाथ लगी। ऐसे में संभव है कि वह भाजपा का विकल्प देखकर ही आगे बढ़ने का मन बना चुके हो।
कर्नल अजय कोठियाल की ओर से गठित यूथ फाउंडेशन के जरिये राज्य के उन युवाओं को सेना में शामिल होने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इन प्रशिक्षण शिविरों में शामिल होने के लिए युवाओं को सैन्य भर्ती के जैसी कठिन प्रक्रिया से गुजरने की परीक्षा देनी पड़ती है। ऐसे में सवाल तो उठता ही है कि जब प्रशिक्षित युवाओं को ही लेना है, तो उन्हें प्रशिक्षण क्यों कर मिलना चाहिए। पहले भी तो युवा सीधे ही सेना की भर्ती में शामिल हुए और देश के लिए सेवाएं दी। बहरहाल, युवाओं के बीच लोकप्रिय चेहरे तो हैं ही कर्नल अजय कोठियाल।
हालांकि, अब तक उनकी छवि सबकी मदद करने वाला, युवाओं के प्रेरणास्रोत की बनी रही है। राजनीति में आने के बाद विरोधी भी कई आरोप उछालेंगे। इनमें उनके वे काम भी हो सकते हैं, जिन्हें लेकर वह लोकप्रिय हुए। कर्नल अजय कोठियाल अपने विरोधियों पर आक्रामक रहने के लिए भी विख्यात हैं। अपने बारे में सोशल मीडिया पर किसी भी तरह की टिका टिप्पणी को वह बेहद गंभीरता से लेते हुए अपनी टीम को उस पोस्ट लिखने वाले के पीछे लगा देते हैं। इसकी पुष्टि उनके खिलाफ लिखने वाले और उनकी टीम के लोग भी कर चुके हैं।
राजनीति में नए चेहरों का स्वागत होना चाहिए। कर्नल अजय कोठियाल राज्य के लोगों के लिए एक बेहतर विकल्प भी बन सकते हैं। ऐसे में उनके राजनीती में आने से सर्दियों में होने वाले विधान सभा चुनाव में गर्माहट होनी लाजमी है।
कर्नल कोठियाल का परिचय
कर्नल अजय कोठियाल सेवानिवृत वर्तमान में देहरादून में रहते हैं। इससे पहले वह नेहरू पर्वतारोहण संस्थान के प्रधानाचार्य रहे हैं और उसके बाद राजनीति में आने की चाहत में सेना से सेवानिवृति ले ली। आपदा के बाद केदारनाथ धाम में अरबों के निर्माण कार्य भी कई बार सवालों के घेरे में रहे। हालांकि, तत्कालिक कांग्रेस सरकार ने इनके काम पर कोई सवाल न उठाने का अनौपचारिक रूप से नियम बना दिया था। लिहाजा केदारनाथ कार्यों पर उठने वाले सवाल यूं ही दफन होते रहे। सेवानिवृति के बाद केदारनाथ धाम में निर्माण कार्यों से प्रेरित होकर उन्होंने एक निर्माण कंपनी बनाई है। जिसके तहत ही भारत म्यांमार सीमा पर सड़क का निर्माण किया था।
लेखक का परिचय
नाम-पंकज कुशवाल
मूल रूप से उत्तरकाशी निवासी हैं। रेडियो, समाचार पत्रों में काम करने का अनुभव के साथ ही वह बाल अधिकारों, बाल सुरक्षा के मुद्दों पर कार्य कर रहे हैं। विभिन्न सामाजिक संगठनों के साथ कार्य करने के साथ ही वह सुदूर क्षेत्रों में मुख्यधारा की मीडिया से छूटे इलाकों में वैकल्पिक मीडिया का युवाओं को प्रशिक्षण व वैकल्पिक मीडिया टूल्स विकसित करने का प्रयास करते हैं। वर्तमान में पत्रकारिता से पेट न पलने के कारण पर्यटन व्यवसाय से जुड़कर रोजी रोटी का इंतजाम कर रहे हैं। वह किसी विचारधारा का बोझ अपने कमजोर कंधों पर नहीं ढोते।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।