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June 26, 2025

छावला केसः दिल्ली में कैंडल मार्च, पूर्व सीएम हरीश रावत हुए शामिल, सीएम धामी ने पीड़ित पिता से की बात, नहीं छिपा रहे पहचान, सुप्रीम कोर्ट के ये थे आदेश 

दिल्ली के छावला में युवती से रेप व मर्डर केस के तीनों आरोपियों को सुप्रीम कोर्ट से रिहा करने के आदेश के बाद से ही उत्तराखंड में हो रहे आंदोलन की गूंज दिल्ली तक पहुंच गई। पीड़ित परिवारों को न्याय दिलाने और हत्यारों को सजा देने की मांग को लेकर दिल्ली में विभिन्न संगठनों और राज्य आंदोलनकारियों ने कैंडल मार्च निकाला। इस कैंडल मार्च में उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत भी शामिल हुए। वहीं, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने आज पीड़ित युवती के पिता से फोन पर बात की। वहीं, पीड़िता की पहचान छिपाने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश का ना तो राजनीतिक दल ही पालन कर रहे हैं ना ही मीडिया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

गौरतलब है कि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने साल 2012 के छावला रेप-मर्डर केस में तीनों दोषियों की मौत की सजा का फैसला पलट दिया था। साथ ही इनकी रिहाई का आदेश दिया है। इस केस को दूसरा निर्भया केस कहा जाता है। दिल्ली की द्वारका अदालत ने इस मामले में तीन आरोपियों को दोष सिद्ध करते हुए फांसी की सजा सुनाई थी। इस फैसले फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया है। पीड़ित युवती उत्तराखंड मूल की थी। यहां हम उसका नाम सार्वजनिक ना करते हुए काल्पनिक नाम अनामिका का प्रयोग कर रहे हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
दिल्ली में निकाला गया कैंडल मार्च
दुष्कर्म और हत्या का शिकार हुई उत्तराखंड की बेटी अनामिका के हत्यारों को सजा दिलाने के लिए सरकार और दिल्ली पुलिस से सुप्रीम कोर्ट की बड़ी बेंच में दमदार अपील करने की मांग को लेकर उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के नेतृत्व में आज शाम दिल्ली में गढ़वाल भवन से वीर चंद्र सिंह गढ़वाली चौक तक उत्तराखंड की प्रवासी संस्थाओं ने कैंडल मार्च निकाला। इसमें गंगोत्री पर्वतीय कांग्रेस गढ़वाल हितेषी सभा और कई राज्य निर्माण आंदोलनकारी संगठनों के नेता शामिल हुए। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

हरीश रावत का संबोधन
इस मौके पर तमाम लोगों को संबोधित करते हुए उत्तराखंड के पूर्व सीएम हरीश रावत ने इस घटना को जघन्य अपराध बताया और कहा कि वह सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का सम्मान करते हैं, परंतु यह तो पता लगाना ही होगा आखिरी बेटी की हत्या किसने की। किसने उसकी आबरू पर डाका डाला। किस वजह से यह दुखद हत्याकांड हुआ। उन्होंने इस मामले में भगवान से प्रार्थना की और न्यायाधीशों की प्रार्थना कि वह जनता के दिल में बैठे दुख को देखें और जो अन्याय पूर्ण घटना हुई है, उस कांड में लिप्त लोगों को सजा कैसा मिले, इसको सुनिश्चित करें। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

उत्तराखंड कांग्रेस के उपाध्यक्ष धीरेंद्र प्रताप ने बताया कि पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत इस मामले में देश के कई दिग्गज अधिवक्ताओं से बात कर रहे हैं। उन्हें उम्मीद है उत्तराखंड सरकार भी इस मामले को गंभीरता से लेते हुए इसमें यथासंभव योगदान करेगी। इस मौके पर अनेक महिलाएं भी इस फैसले को लेकर भावुक नजर आईं। साथ ही उनमें गुस्सा भी देखा गया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

ये लोग थे शामिल
कैंडल मार्च में कांग्रेस के संयुक्त सचिव हरिपाल रावत, उत्तराखंड कांग्रेस उपाध्यक्ष धीरेंद्र प्रताप, गंगोत्री संस्था के अध्यक्ष गंभीर सिंह नेगी, पर्वतीय सेल के अध्यक्ष गोपाल रावत, गढ़वाल हितेषी सभा के अध्यक्ष अजय बिष्ट, राज्य आंदोलनकारी अनिल पंत, प्रेमा धोनी, हीरो बिष्ट, लक्ष्मी ध्यानी, अनुषा देवरानी, शशी नेगी, किरण लखेड़ा, राधेश्याम ध्यानी, किशोर रावत, उत्तराखंड जर्नलिस्ट फोरम के अध्यक्ष सुनील नेगी आदि शामिल थे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

उत्तराखंड के सीएम धामी ने पीड़िता के पिता से की बात
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने अनामिका (काल्पनिक नाम) के पिता से बात कर बिटिया को न्याय दिलाने के लिए राज्य सरकार से हर सम्भव सहयोग की बात कही। दूरभाष पर वार्ता के दौरान उन्होंने पीड़ित पिता का हाल चाल जाना। मुख्यमंत्री ने कहा कि ऐसे समय में हम सब लोग आपके साथ हैं। इस संबंध में उच्चतम न्यायालय में इस प्रकरण को देख रही वकील चारू खन्ना तथा केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू से भी उन्होंने बात की है। मुख्यमंत्री ने कहा कि अनामिका उत्तराखंड की बेटी है। उसको न्याय दिलाने के लिये हम हर संभव प्रयास करेंगे। इस मामले में उत्तराखण्ड सरकार भी आपके साथ है। मुख्यमंत्री ने कहा कि कि जब भी वे दिल्ली आयेंगे तो उनसे मुलाकात भी करेंगे। मुख्यमंत्री ने पीड़िता के पिता को आश्वस्त किया कि उन्हें न्याय दिलाने में जो भी मदद होगी, वह की जायेगी। इस पर पीड़िता के पिता ने मुख्यमंत्री का आभार जताया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

दुष्कर्म के मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश का उड़ा रहे माखौल
चाहे मीडिया हो या फिर राजनीतिक दल। सभी ने पीड़िता के नाम उजागर कर दिया। यही नहीं छावला केस के मामले में लोग रेप और हत्या की शिकार हुई युवती की फोटो के साथ मार्च निकाल रहे हैं। वहीं, सरकार की ओर से भी इस संबंध में जारी प्रेस नोट में नाम उजागर करने की गलती की जा रही है। इस मामले में राजनीति तो ठीक है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के निर्देश का भी ध्यान रखा जाना चाहिए।

चार साल पहले सुप्रीम कोर्ट ने दिए थे आदेश
चार साल पहले सुप्रीम कोर्ट ने दुष्कर्म पीड़िताओं के साथ समाज में होने वाले भेदभाव पर अपनी चिंता व्यक्त की थी। सुप्रीम कोर्ट ने पीड़िताओं की पहचान उजागर किए जाने को लेकर निराशा जाहिर करते हुए मंगलवार को अहम आदेश जारी किया था। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस मदन बी लोकुर व जस्टिस दीपक गुप्ता की पीठ ने एक याचिका पर फैसला सुनाते हुए जीवित या मृत किसी भी दुष्कर्म पीड़िता व यौन शोषण की शिकार की पहचान उजागर करने पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया था। इस आदेश के तहत मीडिया, पुलिस या अन्य किसी के द्वारा दुष्कर्म पीड़िता की पहचान उजागर नहीं की जा सकेगी। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

सुप्रीम कोर्ट ने इस संदर्भ में अहम दिशा-निर्देश जारी किए हैं। साथ ही देश के हर राज्य के प्रत्येक जिले में दुष्कर्म पीड़ित महिलाओं के पुनर्वास के लिए वन स्टॉप सेंटर बनाने का निर्देश जारी किया था। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले की प्रति देश की सभी हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरलों को और सभी जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड अध्यक्षों को भिजवाने के लिए आदेश जारी किया है, ताकि उनके आदेशों पर अमल किया जा सके। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

दुष्कर्म पीड़िता का नाम जांच एजेंसी भी नहीं करेगी सार्वजनिक
चार साल पहले शीर्ष कोर्ट की बेंच ने फैसले में कहा था कि अगर किसी बच्ची से दुष्कर्म हुआ है और एफआईआर पाक्सो एक्ट में दर्ज हुई है तो ऐसी किसी भी एफआईआर को जांच एजेंसी द्वारा पब्लिक डोमेन में न लाया जाए। महिलाओं से दुष्कर्म संबंधी मामलों की भी एफआईआर को पुलिस सार्वजनिक नहीं करेगी। ऐसी किसी भी एफआईआर या तथ्यों को अदालत के समक्ष पेश करना हो तो पुलिस या तो पीड़िता की पहचान छिपाएगी या फिर सीलबंद लिफाफे में अदालत के समक्ष पेश करेगी। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

परिजन सहमति दें तो भी पहचान उजागर नहीं की जानी चाहिए
तब जस्टिस दीपक गुप्ता ने फैसला सुनाते हुए कहा कि किसी दुष्कर्म पीड़िता की पहचान उजागर करके उसके सम्मान का हनन इस आधार पर नहीं किया जा सकता कि वह मर चुकी है और इससे उसे कोई फर्क नहीं पड़ेगा। पीड़िता भले ही मर चुकी हो, कोमा में जा चुकी हो या जीवित हो, किसी भी सूरत में उसकी पहचान उजागर नहीं होनी चाहिए। अगर उनके परिजन नाम उजागर करने की सहमति भी दे तो भी उनकी पहचान उजागर नहीं की जा सकती। केवल जज ही तय कर सकते हैं हैं कि दुष्कर्म पीड़ित का नाम उजागर हो या न हो।

Bhanu Prakash

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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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