504 घरों पर बुलडोजर अभियान, नगर आयुक्त से मिला संयुक्त प्रतिनिधिमंडल, की गई ये मांग
उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में बुलडोजर अभियान से प्रभावित लोगों की समस्याओं को लेकर और नियमविरुद्ध कार्रवाई के विरोध में आज शनिवार 20 जुलाई को विभिन्न दलों और सामाजिक संगठनों के संयुक्त प्रतिनिधिमंडल ने नगर निगम देहरादून के आयुक्त से मुलाकात कर उन्हें ज्ञापन सौंपा। प्रतिनिधिमंडल ने प्रभावितों को समुचिति मुआवाजा देने, हाईकोर्ट में बस्ती के लोगों का पक्ष मजबूती से रखने, बुलडोजर अभियान को बंद करने, किसी भी गरीब का घर उजाड़ने से पहले पुनर्वास की व्यवस्था की मांग की। साथ ही एलिवेटेड रोड की योजना निरस्त करने की मांग की गई। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
ये है प्रकरण
गौरतलब है कि देहरादून में रिस्पना नदी किनारे रिवर फ्रंट योजना की तैयारी है। इसके तहत अवैध भवन चिह्नित किए गए हैं। ये भवन नगर निगम की जमीन के साथ ही मसूरी देहरादून विकास प्राधिकरण की जमीन पर हैं। देहरादून में रिस्पना नदी के किनारे वर्ष 2016 के बाद 27 मलिन बस्तियों में बने 504 मकानों को नगर निगम, एमडीडीए और मसूरी नगर पालिका ने नोटिस जारी किए थे। इसके बाद नगर निगम ने सोमवार 27 मई 2024 से मकानों को तोड़ने की कार्रवाई शुरू की थी। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
504 नोटिस में से मसूरी देहरादून विकास प्राधिकरण ने 403, देहरादून नगर निगम ने 89 और मसूरी नगर पालिका ने 14 नोटिस भेजे थे। इस अभियान के खिलाफ विभिन्न विपक्षी राजनीतिक दलों के साथ ही सामाजिक संगठनों की ओर से धरने और प्रदर्शन आयोजित किए जा रहे हैं। वहीं, प्रशासन का बुलडोजर अब तक करीब पांच दर्जन मकानों पर चल चुका है। एक बस्ती में बुलडोजर को घर के समीप आता देखकर एक महिला की दहशत में मौत हो गई थी। तब से बुलडोजर अभियान रोका हुआ है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
नगर आयुक्त से की गई ये मांग
शनिवार को मलिन बस्तियों के सवाल पर नगर आयुक्त से मिले प्रतिनिधिमंडल में सीपीएम, आरयूपी, सीटू, चेतना आन्दोलन, भीम आर्मी के प्रतिनिधि शामिल थे। उनका कहना था कि राजनैतिक एवं सामाजिक संगठन गत दो महीनों से रिस्पना नदी किनारे बसे मज़दूर बस्तियों के सन्दर्भ में संबंधित विभागों में माध्यमों से सम्पर्क करते रहे हैं। एनजीटी के आदेशों के तहत कई परिवार बेघर हो चुके हैं। मांग की गई कि 24 जुलाई को हाईकोर्ट में इस संबंध में याचिका पर सुनवाई के दौरान गरीब लोगों का मजबूती से पक्ष रखा जाए। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
ज्ञापन में कहा गया कि बिना व्यक्तिगत सुनवाई का मौका देकर किसी को बेदखल करना संविधान और कानून के भावनाओं के विरुद्ध है। बावजूद कुछ घरों को तोड़ा गया है, जो कि राज्य सरकार के 2018 का कानून के अंतर्गत आते थे। इसमें राज्य सरकार का कानून उन्हें अक्टूबर 2024 तक अन्य बस्तियों की भांति सुरक्षा देता है। बावजूद बिजली तथा पानी के बिल को आधार मानकर ध्वस्तीकरण की कार्रवाई की गई। जो संविधान की भावनाओं के विपरीत है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
कहा गया कि चंद परिवारों को बेघर करके नदी और पर्यावरण को कोई लाभ नहीं मिलने वाला है। आश्रय के सवाल पर सरकार नीतिगत फैसला ले चुकी है। इस पर 2016 के अधिनियम के अमल करने की प्रक्रिया चल रही है। साथ ही कहा गया कि बिल्डरों, होटलों और सरकारी विभागों की ओर से किए गए अतिक्रमण से पर्यावरण और उनकी ओर से हो रहा प्रदूषण नदी को ज़्यादा नुकसान पंहुचा रहा है। लोगों को बेघर करने से पहले इन पर कार्रवाई करने की जरूरत है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
ज्ञापन में कहा गया कि किसी भी परिवार को बेघर करने से खासतौर पर महिलाओं, बच्चों और बुज़ुर्गों पर बहुत प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। बिना पुनर्वास किसी को बेघर करना उच्चतम न्यायालय के फैसलों का भी के भी विरुद्ध है। इसी अभियान के दौरान एक 25 साल की महिला की जान चली गयी और अनेक बच्चे बेघर हो गए हैं। जनता की सुरक्षा सरकार की सबसे ज्यादा ज़िम्मेदारी है। किसी भी आदेश पर पालन करते समय मानवीय पहलुओं का भी ध्यान रखना चाहिए। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
कहा गया कि 2018 में बस्तियों की सुरक्षा के लिये बने कानून के साथ ही सर्वोच्च न्यायालय के इस सन्दर्भ में दिये गये दिशा निर्देश का भी पालन होना चाहिए। सर्वोच्च न्यायालय के स्पष्ट निर्देश हैं कि किसी की भी बेदखली कानून के अनुरूप हो। बेदखली से पहले मुआवजे एवं पुनर्वास की गारन्टी सुनिश्चित की जानी चाहिए। एनजीटी को इस सन्दर्भ में भी प्रतिवेदन भेजा है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
ज्ञापन देने वाले प्रतिनिधिमंडल में आरयूपी के अध्यक्ष नवनीत गुंसाई, सीआईटीयू के प्रदेश महामंत्री लेखराज, सीपीएम देहरादून के सचिव अनन्त आकाश, चेतना आन्दोलन के राजेन्द्र शाह, भीम आर्मी के अध्यक्ष आजम खान आदि शामिल थे।
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।