यहां भगवान शंकर ने बूढ़े ब्राह्मण के रूप में पांडवों को दिए दर्शन, नाम पड़ा बूढ़ा केदार
उत्तराखंड को देवभूमि के नाम से जाना जाता है। बदरी, केदार, गंगोत्री और यमुनोत्री चार धामों के यहां स्थित होने से यह देश भर के करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र भी हैं। राज्य में ऐतिहासिक, पौराणिक मंदिरों की श्रेणी में एक है बूढ़ा केदार मंदिर। श्री बूढ़ा केदार मंदिर टिहरी गढ़वाल जिले के भिलंगना विकास खंड में स्थित है। वास्तव में उत्तराखंड में पंच केदार मंदिरों के दर्शन का विशेष महत्त्व है। इन पांच केदार मंदिरों से इतर एक बूढ़ा केदार मंदिर भी हैं।
पांडवों को दिया था वृद्ध रूप में दर्शन
वृद्ध केदारेश्वर की चर्चा स्कन्द पुराण के केदारखंड में सोमेश्वर महादेव के रुप में मिलती है। भगवान बूढ़ा केदार के बारे में मान्यता है कि गोत्र हत्या के पाप से मुक्ति पाने हेतु पांडव इसी मार्ग से स्वर्गारोहण हेतु हिमालय की ओर गए। यहीं पर भगवान शंकर ने बूढ़े ब्राहमण के रुप में बालगंगा-धर्मगंगा के संगम पर पांडवों को दर्शन दिया था। दर्शन देने के बाद शिव शिला रुप में अन्तर्धान हो गए।
वृद्ध ब्राहमण के रुप में दर्शन देने के कारण ही सदाशिव भोलेनाथ वृद्ध केदारेश्वर या बूढ़ा केदारनाथ कहलाए। मान्यता के मुताबिक यही वह स्थान है, जहां कुरुक्षेत्र के युद्ध के बाद पांडवों को गोत्र हत्या के पाप से मुक्ति मिली थी। बूढ़ा केदार के बारे में कहते हैं कि बाबा केदार यहां कुछ समय तक रुके थे। एक बंगाली रचनाकार ने बूढ़ा केदार को ‘सागरमाथा’ नाम देकर भी अलंकृत किया है।
बूढ़ा केदार का अदभुत शिवलिंगम
बूढ़ाकेदार मंदिर में विशालकाय शिवलिंग है। यहां बूढ़ा केदारनाथ मंदिर के गर्भगृह में विशाकाय लिंगाकार फैलाव वाले पाषाण पर भगवान शंकर की मूर्ति और लिंग विराजमान है। कहा जाता है इतना बड़ा शिवलिंग शायद देश के किसी भी मंदिर में नहीं दिखाई देता। इस विशाल शिवलिंग पर पांचो पांडवों सहित द्रौपदी और श्रीगणेश जी के चित्र उकेरे हुए हैं। मंदिर में ही बगल में भू शक्ति, आकाश शक्ति और पाताल शक्ति के रूप में विशाल त्रिशूल विराजमान है।
नाथ संप्रदाय के होते हैं पुजारी
एक और खास बात बाकि हिंदू मंदिरों की तरह बूढ़ा केदार के मंदिर में पुजारी ब्राह्मण नहीं होते, बल्कि वे नाथ संप्रदाय के और जाति के राजपूत होते हैं। यह परंपरा कई सदियों से चली आर रही है। उसमें नाथ जाति के सिर्फ वही लोग ही मंदिर में पूजा कर सकते हैं, जिनके कान छिदे हुए हों। जब भी किसी रावल ( मंदिर के पुजारी) की मृत्यु होती है, तो उन्हें मन्दिर के प्रांगण में ही समाधि दी जाती है।
मार्गशीष माह में लगता है मेला
बूढ़ा केदार में हर साल मार्गशीष माह में मेला आयोजित होता है। कई बार स्थानीय लोग इस मंदिर क्षेत्र को विकसित करने की मांग कर चुके हैं। हर साल बूढ़ा केदार मंदिर में हजारों श्रद्धालु पहुंचते हैं। दर्शन करने आज भी सैकड़ों पैदल तीर्थ यात्री हर साल आते हैं। बूढ़ा केदार में रहते हुए ट्रैकिंग और पक्षियों को नजारा करने का लुत्फ भी उठाया जा सकता है। मंदिर के आसपास कई तरह के रंग बिरंगे पक्षी देखे जा सकते हैं।
पांचवां धाम घोषित करने की मांग
स्थानीय लोग बूढ़ा केदार को उत्तराखंड का पांचवां धाम मानते हैं। उत्तराखंड सरकार ने गंगोत्री, यमुनोत्री, बद्रीनाथ और केदारनाथ को चार धाम घोषित कर रखा है। पर स्थानीय नागरिक इसे आधिकारिक तौर पर पांचवां धाम घोषित करने की मांग कर रहे हैं। साथ ही यहां पहुंचने के लिए संपर्क मार्ग को बेहतर करने की मांग कर रहे हैं।
बाल गंगा और धर्म गंगा का संगम
बूढ़ा केदार में बाल गंगा व धर्म गंगा नदियों की संगमस्थली भी है। यह मंदिर बालखिल्या पर्वत और वारणावत पर्वत की परिधि में स्थित सिद्धकूट, धर्मकूट, यक्षकूट और अप्सरा गिरी पर्वत श्रेणियों के मध्य सुरम्य बाल गंगा और धर्म गंगा के संगम पर स्थित है। प्राचीन समय में यह स्थल पांच नदियों बाल गंगा, धर्म गंगा, शिव गंगा, मेनका गंगा व मट्टान गंगा के संगम पर था। पर अब तीन नदियां दिखाई नहीं देतीं।
बाल गंगा और धर्म गंगा के संगम में स्नान करना पुण्यदायी माना गया है। संगम में आरती भी होती है। आगे बढ़कर यही नदी भिलंगना का रूप धारण कर लेती है। यह क्षेत्र हमारे देश का सीमांत क्षेत्र है। इस क्षेत्र को कभी टिहरी रियासत की दूसरी राजधानी के नाम से जाना जाता था। आज भी यह घाटी खेतीबाड़ी की लिहाज से काफी उर्वर है।
कैसे पहुंचे
उत्तराखंड में नई टिहरी शहर से बूढ़ा केदार की दूरी 60 किलोमीटर है। पहले ऋषिकेश पहुंचे फिर नई टिहरी और यहां से बस से यहां पहुंचा जा सकता है। हालांकि टिहरी से बूढ़ा केदार पहुंचने के लिए बहुत अच्छी सड़क नहीं है। घनसाली से नई टिहरी से यहां के लिए जीप भी मिल जाती है। समुद्रतल से 5100 फीट या 1500 मीटर की ऊंचाई पर स्थित बूढ़ा केदार में सालों भर हल्की सर्दी रहती है इसलिए गर्म कपड़े लेकर जरूर आएं।
कहां ठहरें
बूढ़ा केदार में ठहरने के लिए लोक जीवन विकास भारती के आश्रम व लॉज उचित स्थान है।
लेखक का परिचय
शीशपाल राणा
बूढ़ाकेदार टिहरी गढ़वाल उत्तराखंड।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।