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February 7, 2025

रेत में दफना दिए कोरोना संक्रमित मृतकों के शव, मंडरा रहे हैं कुत्ते, जानवरों ने खुदाई कर निकाल दिए बाहर

कोरोना की दूसरी लहर जब इतनी भयावाह हो रही है, तो तीसरी लहर की कल्पना न करें। यदि व्यवस्थाओं में सुधार नहीं हुआ तो उसका सामना करना मुश्किल हो जाएगा।


कोरोना की दूसरी लहर जब इतनी भयावाह हो रही है, तो तीसरी लहर की कल्पना न करें। यदि व्यवस्थाओं में सुधार नहीं हुआ तो उसका सामना करना मुश्किल हो जाएगा। महामारी को रोकने के लिए राज्यों के पास टीके समाप्ति पर हैं। केंद्र सरकार हाथ खड़े कर रही है। लॉकडाउन में लोग बेरोजगार हो रहे हैं। गरीब के पास अंतिम संस्कार करने के लिए पैसा तक नहीं है। सरकार अंतिम संस्कार की व्यवस्था से बचती फिर रही है। कागजों और भाषणों के जरिये लोगों के जख्मों में मरहम लगाए जा रहे हैं। स्थिति भयावाह होती जा रही है। लाखों के अंबार लगने लगे हैं। कभी यमुना में लाशें बहती दिख रही हैं, तो कभी पतित पावनी गंगा लाशों को ढोहती नजर आ रही है। जब गंगा का सब्र भी टूट रहा तो लाशों को किनारे छोड़ रही है। ऐसे उदाहरण तो भारत में हर दिन देखने को मिल रहा है। फिर सब ताली और थाली बजाकर कहो कि भारत में सबकुछ ठीकठाक है।
छोड़ने लगे हैं लाशें
बात यहां भी समाप्त नहीं होती। अब तो लोग कोरोना संक्रमितों की लाशें जहां तहां छोड़ने लगे हैं। उत्तर प्रदेश को कभी विश्व स्वास्थ्य संगठन तो कभी कोई पत्रिका बेहतर कार्य का सार्टीफिकेट दे रही है, लेकिन जमीन पर ये क्या हो रहा है। इसका जवाब किसके पास है। अब उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले को ही देख लो। यहां ग्रामीण इलाकों में ग्रामीण इलाकों में कोरोना संक्रमण तेजी से फैल रहा है, जिसका असर अब गंगा किनारे के घाटों पर देखने को मिलने लगा है। गंगा के किनारे बड़ी संख्या में शवों का अंतिम संस्कार किया जा रहा है। पैसे न होने के कारण लोग शवों का जलाने के बजाय दफनाकर अंतिम संस्कार कर रहे हैं।
अपनी ही किस्मत को कोसने के सिवाय कुछ नहीं
यही नहीं, जो जानकारी मिल रही है, उस पर रोंगटे खड़े हो रहे हैं और यदि किसी के भीतर जरा भी इंसानियत बची है तो वो रोने के सिवाय क्या कर सकता है। या फिर अपनी किस्मत को कोसेगा। ऐसा 21वीं सदी के भारत में हो रहा है। शायद इसी अच्छे दिन का हम सब इंतजार कर रहे थे। शायद यही सरकार होती है, जो स्थिति हाथ से निकलते ही हाथ खड़े कर दे। लोग मर रहे हैं। अस्पताल में मरने वालों के आंकड़े सरकार के पास हैं, लेकिन घर में होने वाली मौत का तो कहीं रिकॉर्ड तक नहीं।
जनता को जनता के हवाले, हर तरफ लूट
कोरोना की शुरूआत में नए संक्रमितों को अस्पतालों में जगह मिली। क्वारंटीन सेंटरों में ले जाया जाने लगा। संक्रमित बढ़ते गए और सरकारें हाथ खड़े करती गई। अस्पतालों में जगह नहीं बची तो कहा गया कि घर पर ही रहकर होम आइसोलेट कर लें। पहले संक्रमितों की अस्पताल में मौत होने पर सरकार की अंतिम संस्कार कर रही थी। अब इसे भी जनता के हवाले छोड़ दिया गया। कई बार मृतकों के अपने शवों प हाथ लगाने से ही मना कर रहे हैं। जो हाथ लगा रहे हैं उनके पास पैसा ही नहीं बचा है। श्मशान घाट से लेकर, निजी अस्पताल, दुकानों, एंबुलेंस, ऑक्सीजन हर जगह लूट ही लूट है।
रेत में दफना रहे हैं शव
गंगा के किनारे के घाटों का आलम ये है कि अब शव दफन करने की जगह घाटों पर जगह नहीं बची है। स्थानीय लोगों ने बताया कि पिछले एक माह में तीन सौ से ज्यादा शव यहां अंतिम संस्कार के लिए आए हैं। आये हुए शवों में से अधिकतर को गड्ढा खोदकर दफन कर दिया जाता है। इस कारण घाट के किनारे अब शव दफनाने के लिए जगह नहीं बची है.।कुछ ऐसा ही हाल उन्नाव के दो घाटों बक्सर और रौतापुर में देखने को मिला है। अब तो हालत ये है कि कई शव मिट्टी से बाहर दिखने लगे हैं और इस वजह से आवारा जानवर और कुत्ते वहां मंडराने लगे हैं।
बड़ा संख्या में हो रही मौत, रेत में भी नहीं बची जगह
उन्नाव के ग्रामीण इलाकों में एक के बाद एक संदिग्ध परिस्थितियों में बड़ी संख्या में ग्रामीणों की मौत हो रही है। मरने वालों में से ज्यादातर को खांसी, बुखार और सांस लेने में दिक्कत हुई और बाद में मौत हो गई। इस तरह से मरने वालों की संख्या ग्रामीण इलाक़ो में ही हज़ारों में होगी। उन्नाव के रौतापुर घाट पर ही एक माह में करीब 300 शवों का दफनाकर अंतिम संस्कार किया गया। आलम ये हैं कि अब यहां, शव दफनाने की जगह गंगा की रेती में नहीं बची है। अब सिर्फ एक ऐसी पट्टी बची है जिस पर शवों को जलाकर अंतिम संस्कार किया जाता है। इसके अलावा आसपास के खेतों में भी कुछ लोग देरसबेर शवों को दफना जाते हैं। आपको बता दें कि इस घाट पर रौतापुर, मिर्जापुर, लँगड़ापुर, भटपुरवा, राजेपुर, कनिकामऊ, फत्तेपुर समेत दो दर्जन से ज्यादा गांवों के लोग अंतिम संस्कार के लिए आते हैं।
एक दिन में दफना रहे हैं 30 शव
घाट के आसपास जानवर चरा रहे युवकों ने बताया कि अब यहां एक दिन में 30 शव तक आ जाते हैं, जबकि पहले एक दिन में सिर्फ एक दो शव ही आते थे। इतनी बड़ी संख्या में शव दफन करने से आसपास के गांवों में संक्रमण का खतरा भी बना हुआ है। उन्नाव के बक्सर घाट पर भी बड़ी संख्या में शवों को दफना कर अंतिम संस्कार किया गया है. जिस जगह पर दफनाकर अंतिम संस्कार किया गया है वो पट्टी अब पूरी तरह से गंगा की धारा से घिर चुकी है। आसपास के इलाके के कुत्ते भी उसी क्षेत्र में मंडराते नजर आ रहे हैं। कई शव तो अब खुल भी चुके हैं, जो आगे चलकर संक्रमण का खतरा बन सकते थे। वहीं, जिला प्रशासन ने कहा कि शव दफनाने पर कार्रवाई होगी।
गंगा में भी बहकर आ रहे हैं शव
बिहार के बक्सर जिले में इंसानियत को शर्मशार करने वाली तस्वीर हाल ही में सामने आई है। चौसा के महदेवा घाट पर लाशों का अम्बार लग गया है। लाशों के अम्बार ने गंगा में स्थित घाट को ढक दिया। हालांकि, जैसे ही इस घटना का वीडियो सामने आया जिला प्रशासन के कान खड़े हो गए। जिला प्रशासन ने पल्ला झाड़ते हुए कहा कि ये उत्तर प्रदेश की लाशें हैं, जो यहां बहकर आ गई है।
चौसा में पहले दिन करीब 40 से 45 लाशें गंगा में बहकर घाट पर पहुची। जो अलग अलग जगहों से बहकर महदेवा घाट पर आ कर लग गई हैं। उन्होंने बताया कि ये लाशें हमारी नहीं हैं। हम लोगों ने एक चौकीदार लगा रखा है। बाद में प्रशासन ने अंतिम संस्कार की व्यवस्था की, लेकिन अभी भी यहां शव बहकर आ रहे हैं। तब से अभी भी यहां लाशों के बहकर आने का सिलसिला जारी है।
यमुना में भी बहकर आए थे शव
कोरोना संक्रमण के बीच हमीरपुर से चौंकाने वाली खबर आई थी। यहां यमुना नदी में शव बहकर आने के मामले सामने आ रहे हैं। हाल ही में जिला मुख्यालय की शहर कोतवाली क्षेत्र से निकली यमुना नदी में आधा दर्जन शव तैरते देखे गए। आशंका जताई गई कि ये शव दूर-दराज के इलाकों से बहकर आ रहे हैं। इस बीच नदी के पानी मे भी संक्रमण फैलने की आशंका प्रबल हो गई है।

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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