पीजी कॉलेज उत्तरकाशी और डीडब्ल्यूटी कॉलेज देहरादून में मनाया गया जैव विविधता दिवस
अंतरराष्ट्रीय जैव विविधता दिवस के मौके पर उत्तराखंड में विभिन्न शिक्षण संस्थानों में गोष्ठियों का आयोजन किया गया। उत्तरकाशी के रामचंद्र राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय में वनस्पति विज्ञान विभाग की ओर से गोष्ठी आयोजित की गई। महाविद्यालय की प्राचार्य प्रोफेसर सविता गैरोला के निर्देशानुसार आयोजित इस कार्यक्रम में जैव विविधता पर एक प्रस्तुतीकरण दिया गया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
इस मौके पर विभाग के विभाग प्रभारी डॉ महेंद्र पाल सिंह परमार ने इस वर्ष की थीम From Agreement to Action: Build Back Biodiversity पर व्याख्यान दिया। बताया कि वर्तमान में कीटों की 7,51000 व पौधे 248000 प्राणी 285000 कवक 26000, जीवाणु जीवाणु 4800 एवं विषाणु 1100 का अध्ययन हो चुका है। अभी भी असंख्य कई जीव जंतु की पहचान होनी बाकी है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

एक्शन बेस्ड बायोडायवर्सिटी कंजर्वेशन पर जोर
उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्र (यूसर्क) देहरादून की ओर से अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस के अवसर पर कार्यक्रम का आयोजन डीडब्ल्यूटी (DWT) कॉलेज देहरादून एवं बोटेनिकल सर्वे ऑफ इंडिया (BSIभारत सरकार) के संयुक्त तत्वाधान में डीडब्ल्यूटी कॉलेज के सभागार में किया गया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
कार्यक्रम की मुख्य अतिथि यूसर्क की निदेशक प्रो (डॉ) अनीता रावत ने अपने संबोधन में कहा कि आज समय आ गया है कि हम सभी को एक्शन बेस्ड बायोडायवर्सिटी कंजर्वेशन की आवश्कता है। उन्होंने कहा कि सतत विकास की अवधारणा को फलीभूत करने के लिए एक्शन ओरिएंटेड होना पड़ेगा और मनुष्य को प्रकृति के साथ समन्वय बनाना होगा। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
यूसर्क की वैज्ञानिक डॉ मंजू सुंदरियाल ने कार्यक्रम की विस्तृत रूपरेखा प्रस्तुत करते हुए जैव विविधता दिवस के बारे में बताया। कार्यक्रम में मुख्य व्याख्यान देते हुए बोटनिकल सर्वे ऑफ इंडिया के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं संयुक्त निदेशक डॉ हरीश सिंह ने सतत भविष्य के लिए जैव विविधता का महत्व विषय पर व्याख्यान दिया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
उन्होंने अपने व्याख्यान में जैव विविधता के महत्व, जैव विविधता के प्रकार, भारत में जैव विविधता, लोक वनस्पति विज्ञान (Ethnobotany), इकनॉमिक बॉटनी एवं Ethnobotany में अंतर, पर्वतीय भागों के स्थानीय औषधीय पौधे, उनके उपयोग एवं उसके लोक विज्ञान, पौधों के तना, जड़, पत्ती आदि के बारे में विस्तार से बताया। इन पौधों के भारत के प्राचीन मेडिकल सिस्टम में होने वाले प्रयोग आदि पर विस्तार से बताया। भारत के औषधीय पौधों की सम्पदा, हिमालय क्षेत्र के अंतर्गत विभिन्न औषधीय महत्व के पौधों एवं जंगली खाने योग्य पौधों (वाइल्ड एडिबल फ्रूट्स) पर विस्तार से बताया जिनमें सर्पगंधा,कालमेघ, अरंडी, ब्राह्मी, रोहणी, हरड, आंवला, काफल, हिसालू, जीजीफस, आदि पर प्रकाश डाला। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कॉलेज की प्राचार्या डॉ सुहासिनी श्रीवास्तव ने स्वागत उद्बोधन में उपस्थित अतिथियों, विशेषज्ञों, वैज्ञानिकों का अभिनंदन किया एवं कार्यक्रम के आयोजन के लिए यूसर्क की निदेशक, बीएसआई को आभार के साथ साथ विद्यार्थियों के लिए इस प्रकार की वैज्ञानिक कार्यक्रमों को बहुत उपयोगी बताया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
कार्यक्रम में सभी शिक्षकों एवं वैज्ञानिकों ने औषधीय महत्व के पौधों पिपली, अगेथीस, तेजपत्ता, शतावरी, सफेद मूसली, नीबू आदि के 15 पौधों का रोपण डी डबल्यू टी संस्थान के परिसर में किया गया। पॉलीथिन के स्थान पर जूट का प्रयोग करने का संकल्प लिया गया। सभी को जूट के छोटे छोटे बैग दिए गए जिनका प्रयोग पॉलीथिन के स्थान पर पौधों की पौध तैयार करने में किया जाएगा। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
कार्यक्रम में उपस्थित डीडबल्यूटी कॉलेज के विद्यार्थियों, शिक्षकों, वैज्ञानिकों सहित 110 उपस्थित प्रतिभागियों द्वारा जैव विविधता के संरक्षण हेतु कार्य करने की प्रतिज्ञा ली गई। कार्यक्रम का धन्यवाद ज्ञापन डीडब्ल्यूटी कॉलेज की प्राध्यापक डॉ अर्चना सिंह द्वारा किया गया। कार्यक्रम में यूसर्क की वैज्ञानिक डॉ मंजू सुंदरियाल, डॉ भवतोष शर्मा, डॉ राजेंद्र सिंह राणा, बीएसआई के वैज्ञानिक डॉ पुनीत कुमार, डॉ बृजेश कुमार, डॉ मोनिका मिश्रा, डॉ भावना जोशी, डॉ समीर पाटिल, डी डबल्यू टी की प्राध्यापक डॉ सुहासिनी श्रीवास्तव, डॉ अर्चना सिंह, डॉ विनीता चौधरी, डॉ ऋतु डंगवाल, डॉ शोभा, डा चेतना थापा मुख्य रूप से उपस्थित थे।
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।