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June 18, 2025

डबल एमए पास पूर्व छात्रसंघ उपाध्यक्ष महिला के भीख मांगने की जानकारी पर भाई पहुंचा हरिद्वार, स्वाभिमानी ने ठुकराया प्रस्ताव, पढ़िए खबर

कभी अल्मोड़ा में छात्रसंघ उपाध्यक्ष रही दो बार की एमए पास हंसी प्रहरी के जीवन में फिर नया मोड़ आ रहा है। दुश्वारियों में जीवन काट रही इस महिला की दुख भरी कहानी समाचार पत्रों और वेब न्यूज पोर्टल में प्रकाशित होने के बाद अब उसका जीवन बदलने का प्रस्ताव लेकर पहुंचने वालों का तांता सा लग चुका है। राज्यमंत्री रेखा आर्य भी उनसे मिली और नौकरी व अन्य सुविधाओं का प्रस्ताव दिया। वहीं अब हंसी प्रहरी के भाई आनंद राम अनुराग देर शाम दिल्ली से हरिद्वार पहुंचे। उन्होंने बहन से मुलाकात की और साथ चलने की जिद भी की। हंसी ने उनकी एक न सुनी और उनके इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया।
अल्मोड़ा में रह रहे परिजनों से जानकारी लेकर हंसी के भाई हरिद्वार पहुंचे। उनका कहना है कि उन्हें इस बात का अंदाजा नहीं था कि हंसी हरिद्वार में किस हालत में रह रही हैं।
कभी कुमाऊं यूनिवर्सिटी में थी हंसी के नाम की धूम
उत्तराखंड में कुमाऊं यूनिवर्सिटी का कैंपस कभी हंसी प्रहरी के नाम के नारों से गूंजता था। प्रतिभा और वाकपटुता इस कदर भरी थी कि वाइस प्रेसीडेंट का चुनाव लड़ी और जीत गई। कभी ऐसी विलक्षण प्रतिभा की धनी यह महिला अब दर-दर की ठोकरें खा रही है। फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने वाली डबल एमए पास महिला हरिद्वार में भीख मांगती है।
डबल एमए पास है हंसी
हंसी ने राजनीति और इंग्लिश जैसे विषयों में डबल एमए किया। तब कैंपस में बहसें हंसी के बिना अधूरी होती थीं। हर किसी को इस बात का यकीन था कि हंसी जीवन में कुछ बड़ा करेगी। समय का पहिया किस ओर घूमता है ये किसे पता। जो कभी विवि की पहचान हुआ करती थी वह आज भीख मांगने के लिए मजबूर है। हरिद्वार की सड़कों, रेलवे स्टेशन, बस अड्डों और गंगा के घाटों पर उसे भीख मांगते हुए देखने पर शायद ही कोई यकीन करे कि उसका अतीत कितना सुनहरा रहा होगा।
अल्मोड़ा की मूल निवासी है हंसी
उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के सोमेश्वर क्षेत्र के हवालबाग ब्लॉक के अंतर्गत गोविंन्दपुर के पास रणखिला गांव पड़ता है। इसी गांव की हंसी पांच भाई-बहनों में से सबसे बड़ी बेटी है। वह पूरे गांव में अपनी पढ़ाई को लेकर चर्चा में रहती थी। पिता छोटा-मोटा रोजगार करते थे। उन्होंने अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए दिन रात एक कर दिया था। गांव से छोटे से स्कूल से पास होकर हंसी कुमाऊं विश्वविद्यालय में एडमिशन लेने पहुंची तो परिजनों की उम्मीदें बढ़ गईं। हंसी पढ़ाई लिखाई के साथ ही दूसरी एक्टिविटीज में बढ़चढ़ कर भाग लेती थी। साल 1998-99 वह तब चर्चा में आई जब कुमाऊं विश्वविद्यालय में छात्र यूनियन की वाइस प्रेसिडेंट बनी।
चार साल की लाइब्रेरियन की नौकरी
हंसी ने करीब चार साल विश्वविद्यालय में नौकरी की। तमाम एजुकेशन से संबंधित प्रतियोगिताओं में भाग लेने के कारण उन्हें नौकरी मिली। वह सभी में प्रथम आया करती थी। इसके बाद उन्होंने 2008 तक कई प्राइवेट जॉब भी की।
अचानक बदली जिंदगी
2011 के बाद हंसी की जिंदगी अचानक से बदल गई। जब पत्रकार उनके पास पहुंचे तो उन्होंने साफ-साफ कुछ भी बताने से तो इन्कार कर दिया। क्योंकि वह नहीं चाहती कि उनकी वजह से दो भाई और बाकी परिवार के सदस्यों पर किसी तरह का भी फर्क पड़े। हंसी ने बताया कि वह इस वक्त जिस तरह की जिंदगी जी रही हैं, वह शादी के बाद हुए आपसी विवाद का नतीजा है।
दोबारा से जिंदगी की शुरुआत करने की हसरत
शादीशुदा जिंदगी में हुई उथल-पुथल के बाद हंसी कुछ समय तक अवसाद में रहीं। इसी बीच उनका धर्म की ओर झुकाव भी हो गया। परिवार से अलग होकर धर्मनगरी में बसने की सोची और हरिद्वार पहुंच गईं। तब से ही वो अपने परिवार से अलग हैं। वो बताती हैं कि इस दौरान उनकी शारीरिक स्थिति भी गड़बड़ रहने लगी और वह सक्षम नहीं रहीं कि कहीं नौकरी कर सकें। हालांकि अब उन्हें लगता है कि यदि उनका इलाज हो तो उनकी जिंदगी पटरी पर आ सकती है। वह दोबारा से अपनी जिंदगी की शुरुआत कर सकती हैं।
कई बार मुख्यमंत्री को लिख चुकी है पत्र
हंसी ने बताया कि वह 2012 के बाद से ही हरिद्वार में भिक्षा मांग कर अपना और अपने छह साल के बच्चे का पालन-पोषण कर रही हैं। बेटी नानी के साथ रहती है और बेटा उनके साथ ही फुटपाथ पर जीवन बिता रहा है।
फर्राटेदार बोलती है इंग्लिश
फर्राटेदार इंग्लिश बोलने वाली हंसी जब भी समय होता है तो अपने बेटे को फुटपाथ पर ही बैठकर अंग्रेजी, हिंदी, संस्कृत और तमाम भाषाएं सिखाती हैं। इच्छा यही है कि उनके बच्चे पढ़-लिखकर बेहतर जीवन जीएं। इतना ही नहीं, वह खुद कई बार मुख्यमंत्री को पत्र लिख चुकी हैं कि उनकी सहायता की जाए। कई बार सचिवालय विधानसभा में भी चक्कर काट चुकी हैं। इस बात के दस्तावेज भी हंसी के पास मौजूद हैं। वह कहती हैं कि अगर सरकार उनकी सहायता करती है तो आज भी वह बच्चों को अच्छी शिक्षा दे सकती हैं।
राज्यमंत्री भी मिली हंसी से
उत्तराखंड के हरिद्वार में राज्यमंत्री रेखा आर्य सड़क पर भीख मांगने वाली हंसी प्रहरी से मुलाकात के लिए हरिद्वार पहुंची। उन्होंने महिला का हालचाल जाना। बताया जा रहा है कि मंत्री रेखा आर्य हंसी प्रहरी के लिए हरिद्वार बाल विकास कार्यालय में नौकरी और स्थाई निवास का प्रस्ताव लेकर पहुंची।
बच्चों को सड़क पर ही पढ़ाती है हंसी
बता दें हंसी वो महिला है, जो अपने छात्र जीवन में न केवल कुशल वक्ता रही, बल्कि छात्र राजनीति में सक्रिय रहते हुए कुमाऊं विश्वविद्यालय के अल्मोड़ा परिसर में छात्रसंघ उपाध्यक्ष भी चुनी गई। पर इसे नियति का खेल ही कहेंगे कि अंग्रेजी और राजनीति शास्त्र में एमए डिग्रीधारी ये महिला आज हरिद्वार की सड़कों पर भीख मांग अपना और बच्चे का गुजारा करने को मजबूर हैं। पर हौसले अब भी मजबूत हैं। वो अपने बच्चे को पढ़ा भी रही हैं और अफसर बनाने के सपने बुन रही हैं।
ऐसे गया मीडिया का ध्यान
हरिद्वार में हंसी की ओर मीडिया का ध्यान रविवार को तब गया, जब वह सड़क किनारे अपने छह साल के बेटे को पढ़ा रही थी। उसकी फर्राटेदार अंग्रेजी हर राहगुजर को हतप्रभ कर देने वाली थी। हंसी बताती है कि ससुराल की कलह से परेशान होकर वर्ष 2008 में वह लखनऊ से हरिद्वार चली आई। यहां शारीरिक रूप से कमजोर होने के कारण वह नौकरी नहीं कर पाई और रेलवे स्टेशन, बस अड्डा आदि स्थानों पर भीख मांगने लगी। इस हाल में भी हंसी की हिम्मत डिगी नहीं है, वह बेटे को पढ़ा रही है और चाहती है कि वह प्रशासनिक अधिकारी बने।

सरकार से है बस ये मांग
यही नहीं, हंसी के पास उसके सभी शैक्षणिक प्रमाणपत्र भी सुरक्षित हैं। बताती है कि उसकी एक बेटी भी है, जो नानी के पास रहकर पढ़ाई कर रही है। पिछले साल वह हाईस्कूल में 97 फीसद अंकों के साथ उत्तीर्ण हुई है। उसकी चिंता सिर्फ इतनी है कि सिर छिपाने को सरकार उसे एक छत मुहैया करा दे, ताकि वह बेटे परीक्षित को पढ़ा सके। इसके लिए वह कई बार मुख्यमंत्री समेत तमाम जिम्मेदार अधिकारियों को पत्र भी लिख चुकी है। बताया कि परीक्षित सरस्वती शिशु मंदिर मायापुर में दूसरी कक्षा में पढ़ रहा है।
यहां क्लिक करेंः सड़क पर भीख मांगकर बच्चों को पढ़ाने वाली महिला से मिली मंत्री, किया नौकरी का वादा
यहां क्लिक करेंः डबल एमए और यूनिवर्सिटी की पूर्व उपाध्यक्ष, अब मांग रही भीख, पढ़िए इस महिला की दर्द भरी कहानी

Bhanu Bangwal

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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