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December 23, 2024

राजद्रोह कानून पर लगी रोक रहेगी जारी, सीएए कानून पर छह दिसंबर को सुनवाई, ज्ञानवापी मामले में हिंदू पक्ष पहुंचा सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने राजद्रोह कानून पर लगी रोक फिलहाल जारी रखी है। सोमवार को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र के सुनवाई टालने के आग्रह को माना। केंद्र ने अदालत में तर्क दिया कि संसद के शीतकालीन सत्र में इस मामले पर कुछ फैसला लिया जा सकता है। ऐसे में तब तक केंद्र को शीर्ष अदालत के राजद्रोह कानून पर रोक लगाने के आदेश का पालन करना होगा। इसके साथ ही जिन याचिकाओं में पहले नोटिस जारी नहीं हुआ, उनमें भी नोटिस जारी किया गया है। केंद्र 6 हफ्ते में इनका जवाब देगी। सुप्रीम कोर्ट अगले साल जनवरी के दूसरे हफ्ते में इस मामले पर दोबारा सुनवाई करेगा। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 124 A यानी राजद्रोह के खिलाफ याचिकाओं पर सीजेआइ (CJI) यूयू ललित, जस्टिस एस रवींद्र भट और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की बेंच सुनवाई कर रही है। सुप्रीम कोर्ट ने मई में राजद्रोह कानून पर रोक लगा दी थी। कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों को राजद्रोह कानून की आईपीसी की धारा 124ए के तहत कोई मामला दर्ज नहीं करने का आदेश दिया था। कोर्ट ने सरकार को आईपीसी की धारा 124ए के प्रावधानों पर समीक्षा की अनुमति भी दी है। हालांकि, अदालत ने कहा कि राजद्रोह कानून की समीक्षा होने तक सरकारें धारा 124A में कोई केस दर्ज न करे और न ही इसमें कोई जांच करें। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि कि अगर राजद्रोह के मामले दर्ज किए जाते हैं, तो वे पक्ष अदालत का दरवाजा खटखटाने के लिए स्वतंत्र हैं। अदालतों को ऐसे मामलों का तेजी से निपटारा करना होगा। सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत में केंद्र सरकार की ओर से पक्ष रखा। तुषार मेहता ने कहा कि गंभीर अपराधों को दर्ज होने से नहीं रोका जा सकता है। प्रभाव को रोकना सही दृष्टिकोण नहीं हो सकता है। इसलिए, जांच के लिए एक जिम्मेदार अधिकारी होना चाहिए और उसकी संतुष्टि न्यायिक समीक्षा के अधीन है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

उन्होंने आगे कहा कि राजद्रोह के मामले दर्ज करने के लिए एसपी रैंक के अधिकारी को जिम्मेदार बनाया जा सकता है। इनमें कोई मनी लांड्रिंग से जुड़ा हो सकता है या फिर आतंकी से। लंबित मामले अदालत के सामने हैं। हमें अदालतों पर भरोसा करने की जरूरत है। केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि संविधान पीठ द्वारा बरकरार रखे गए राजद्रोह के प्रावधानों पर रोक लगाने के लिए कोई आदेश पारित करना सही तरीका नहीं हो सकता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

बता दें कि राजद्रोह से संबंधित दंडात्मक कानून के दुरुपयोग से चिंतित शीर्ष अदालत ने पिछले साल जुलाई में केंद्र सरकार से पूछा था कि वह उस प्रविधान को निरस्त क्यों नहीं कर रही, जिसे स्वतंत्रता आंदोलन को दबाने और महात्मा गांधी जैसे लोगों को चुप कराने के लिए अंग्रेजों द्वारा इस्तेमाल किया गया। तब याचिकाओं पर नोटिस जारी करते हुए अदालत ने प्रावधान के कथित दुरुपयोग का उल्लेख किया था। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यह एक औपनिवेशिक कानून है। यह स्वतंत्रता आंदोलन को दबाने के लिए था। इसी कानून का इस्तेमाल अंग्रेजों ने महात्मा गांधी, तिलक आदि को चुप कराने के लिए किया था। क्या आजादी के 75 साल बाद भी यह जरूरी है? इस पर केंद्र की ओर से AG आर वेकंटरमनी ने पक्ष रखा था। उन्होंने कहा था कि सरकार बदलाव पर विचार कर रही है। आईपीसी में संशोधन, सीआरपीसी मुद्दा जल्द ही संसद के समक्ष होगा। शीतकालीन सत्र में इस मुद्दे पर कुछ हो सकता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

नागरिकता संशोधन कानून की याचिकाओं पर छह दिसंबर को सुनवाई
नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में अगली सुनवाई 6 दिसंबर को होगी। कोर्ट ने आज सोमवार 31 अक्टूबर को दो वकीलों को सभी याचिकाओं में उठाए गए मुख्य मसलों का संग्रह तैयार करने का ज़िम्मा दिया। मामले में 232 याचिकाएं हैं। इनमें से 53 असम और त्रिपुरा से जुड़ी हैं। कोर्ट साफ कर चुका है कि उन्हें बाकी मामलों से अलग से सुना जाएगा। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

देश के मुख्य न्यायाधीश यूयू ललित, न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट और बेला एम त्रिवेदी की खंडपीठ ने मामले को 6 दिसंबर को एक उपयुक्त पीठ के समक्ष आगे की सुनवाई के लिए पोस्ट कर दिया है। रविवार को केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से सीएए को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज करने की अपील की थी। इससे पहले बीते 12 सितंबर को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को सैकड़ों याचिकाओं की छंटनी करने और जवाब दाखिल करने के लिए चार हफ्ते का समय दिया था। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

संशोधन की हुई थी कड़ी आलोचना
साल 2019 में संशोधित सीएए कानून पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से हिंदू, सिख, बौद्ध, ईसाई, जैन और पारसी समुदाय के गैर-मुस्लिम प्रवासियों को भारतीय नागरिकता देने का प्रयास करता है, जो साल 2014 तक देश में आए हैं। मुस्लिमों के बहिष्कार को लेकर विपक्षी दलों, नेताओं और अन्य संस्थाओं द्वारा कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ा है। इस मुद्दे पर मुख्य याचिका इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग ने दायर की थी। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

गृह मंत्रालय ने दायर किया 150 पेज का हलफनामा
दूसरी ओर, अदालत में केंद्रीय गृह मंत्रालय के दायर 150 पेज के हलफनामे में कहा कि संसद भारतीय संविधान के अनुच्छेद 245(1) में प्रदत्त अधिकारों के तहत संपूर्ण भारत या उसके किसी हिस्से के लिए कानून बनाने में सक्षम है। गृह मंत्रालय के संयुक्त सचिव सुमंत सिंह के दायर हलफनामे में याचिकाओं को खारिज करने की अपील की गई है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

ज्ञानवापी मामले में हिंदू पक्ष पहुंचा सुप्रीम कोर्ट
ज्ञानवापी मामले में हिंदू पक्ष सुप्रीम कोर्ट पहुंचा. मामले की जल्द सुनवाई की मांग की। सुप्रीम कोर्ट जल्द सुनवाई को तैयार हो गया है। 12 नवंबर से पहले ही सुनवाई होगी। दरअसल, ज्ञानवापी मस्जिद में कथित शिविलिंग क्षेत्र को संरक्षित रखने के सुप्रीम कोर्ट का आदेश 12 नवंबर को खत्म हो रहा है। इसीलिए हिंदू पक्ष सुप्रीम कोर्ट पहुंचा है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

इससे पहले, 21 अक्टूबर को ज्ञानवापी मामले में वाराणसी कोर्ट ने रूल 1/10 के तहत पक्षकार बनने के लिए दायर याचिका में बची तीन याचिका निरस्त कर दी थी। इस मामले में 82ग के तहत दायर एप्लीकेशन में सुनवाई की अगली डेट 2 नवंबर लगा दी गई है। इस एप्लीकेशन में कमीशन सर्वे के दौरान जो बेसमेंट में दीवार है और जहां सर्वे नहीं हो पाया था, वहां दीवार हटाकर सर्वे कराने के साथ मिली अवशेषों की भी जांच की बात है। इससे पहले की सुनवाई में वाराणसी कोर्ट ने ज्ञानवापी परिसर में मिले ‘कथित शिवलिंग’ की उम्र का पता लगाने के लिए कार्बन डेटिंग से इनकार कर दिया था। कोर्ट ने इससे छेड़छाड़ करने से मना कर दिया. हिंदू पक्ष अब इसके लिए सुप्रीम कोर्ट जाएगा।

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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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