फूलों से सजा बदरीनाथ मंदिर, जानिए कपाट बंद करने के दौरान होने वाली पूजा व प्रक्रिया
करोड़ों हिंदुओं की आस्था का केंद्र विश्व प्रसिद्ध बदरीनाथ धाम मंदिर के कपाट कर विधि विधान के साथ गुरुवार को बंद कर दिए जाएंगे। इसके साथ ही चारधाम यात्रा का समापन हो जाएगा। आगामी छह माह तक शीतकालीन पूजा योगध्यान बदरी मंदिर पांडुकेश्वर एवं श्री नृसिंह मंदिर जोशीमठ में होगी। कपाट बंद होने से पहले धाम में विशेष पूजाओं का आयोजन किया जा रहा है। साथ ही मंदिर को फूलों से सजाया गया है। आज शाम तक बदरीनाथ धाम में दस हजार से अधिक श्रद्धालु पहुंच गए थे। कपाट बंद होने के दौरान अभी और भीड़ जुटने की संभावना है।
इस बार कोरोनाकाल और लॉकडाउन ने भी चारधाम यात्रा को प्रभावित किया। जहां पहले एक दिन में हजारों श्रद्धालु पहुंचते थे, इस साल पूरे यात्रा सीजन में बदरीनाथ धाम में 1 लाख 38 हजार तीर्थयात्री पहुंचे। वहीं, चारोधाम में कुल तीर्थयात्रियों की संख्या 3.15 लाख रही।
आज विशेष पूजन में महालक्ष्मीजी का पूजन किया गया। महालक्ष्मीजी का मंदिर बदरीविशाल मंदिर परिसर में है। रात को भगवान बदरीविशाल के सारे गहने उतार लिए गए।
ये हैं कार्यक्रम
अगले दिन 19 नवंबर की सुबह पांच बजे से भगवान का महा अभिषेक होगा। इसके बाद उनका फूलों से श्रृंगार किया जाएगा। दोपहर दो बजे से महाआरती शुरू होगी। साथ ही श्रृंगार के रूप में लगाए गए फूलों को उतारकर उन्हें प्रसाद के रूप में बांटा जाएगा। इसके बाद भगवान बदरीविशाल को कुंआरी कन्याओं के हाथों से तैयार किए गए कंबल (घृतकंबल) को वस्त्र के रूप में पहनाया जाएगा। साथ ही मंदिर परिसर से माता लक्ष्मीजी की मूर्ति को बदरीनाथ मंदिर में प्रवेश कराया जाएगा। साथ ही भगवान बदरी विशाल के साथ उन्हें विराजमान किया जाएगा।
कुबेरजी और उद्धव जी की डोली करेंगी प्रस्थान
फिर बदरीविशाल के साथ स्थापित कुबेरजी और उद्धजी की डोली को मंदिर से बाहर लाया जाएगा। साथ ही मंदिर के कपाट को शीतकाल के लिए अपराह्न करीब 3.35 मिनट पर बंद कर दिए जाएंगे। उद्धवजी की डोली रात को रावल निवास और कुबेरजी की डोली बामणी गांव स्थित नंदा देवी मंदिर में विश्राम करेंगी।
20 नवंबर
सुबह करीब साढ़े नौ बजे उद्धवजी और श्री कुबेरजी की डोली के साथ ही शंकराचार्यजी की गद्दी बदरीनाथ धाम के प्रस्थान करेंगी। पांडुकेश्वर स्थित योगध्यान बदरी मंदिर में कुबेरजी और उद्धवजी को प्रतिष्ठापित किया जाएगा। वहीं शंकराचार्य जी की गद्दी भी रात्रि विश्राम यहीं करेगी।
21 नवंबर
सुबह 10 बजे श्री योग ध्यान बदरी मंदिर पांडुकेश्वर से आदि गुरू शंकराचार्य जी की गद्दी श्री नृसिंह मंदिर जोशीमठ के लिए रवाना होगी। इसे नृसिंह मंदिर पहुंचने पर प्रतिष्ठापित कर दिया जाएगा। इसी मंदिर में रावल भी शीतकाल तक रहेंगे।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।