अशोक आनन की कविता -ज़िंदगी
ज़िंदगी
जीत – हार हो गई।
बेल – बूटे
कभी कढ़े नहीं।
किनारी
गोटे भी जड़े नहीं।
ज़िंदगी
तार – तार हो गई।
गिरकर
ये साबुत बची नहीं।
कंटक
कंकड़ – सी गुची नहीं। (कविता जारी, अगले पैरे में देखिए)
ज़िंदगी
रार – मार हो गई।
फूलों – सी
ये मुस्कुराईं न।
बहारों – सी
वन में छाई न।
ज़िंदगी
ख़ार – ख़ार हो गई।
धूप – सा
रूप कभी निखरा न।
अंतस भी
तम से कभी उबरा न।
ज़िंदगी
अंधकार हो गई।
कवि का परिचय
अशोक आनन
जूना बाज़ार, मक्सी जिला शाजापुर मध्य प्रदेश।
Email : ashokananmaksi@gmail.com
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।