अशोक आनन की कविता- ग़रीब वे रहे नहीं
कभी शहर, कभी गांव में रहे।
मुफ़लिस फ़िर भी तनाव में रहे।
छोड़कर वे उलाहनों की छत
कभी धूप, कभी छांव में रहे।
फूल जिन्हें देव-शीश न मिला
चढ़ शहीदों पर, पांव में रहे।
धर्म मरहम का रहे निभाते
हरकर पीर जो घाव में रहे। (कविता जारी, अगले पैरे में देखिए)
आंकड़ों में ग़रीब रहे नहीं
वर्षों से जो अभाव में रहे।
भीतें जो खींच रहे दिलों में
ताउम्र जो सद्भाव में रहे।
तटों ने भी किनारा कर लिया
सफ़ीने जो भी बहाव में रहे।
कवि का परिचय
अशोक आनन
जूना बाज़ार, मक्सी जिला शाजापुर मध्य प्रदेश।
Email : ashokananmaksi@gmail.com
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।