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December 16, 2024

हिंदू नव वर्ष के साथ ही चैत्र नवरात्र आज से शुरू, इस दिन ऐसे करें क्लश स्थापना और मां शैलपुत्री की पूजा

इस साल चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि आज 22 मार्च 2023 को है। चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से हिंदू नव वर्ष की शुरुआत होती है। बुधवार से हिंदू नववर्ष यानि विक्रम संवत 2080 की शुरुआत हो गई। हिन्दू नववर्ष के खास मौके पर सभी लोग अपने करीबियों को नववर्ष की बधाई देते हैं। इसके साथ ही आज 22 मार्च से चैत्र नवरात्रि शुरू हो चुकी है। चैत्र माह की इस नवरात्रि की विशेष धार्मिक मान्यता होती है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

मां शैलपुत्री की होती है पूजा
इस दिन मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है और साथ ही घटस्थापना का भी यही दिन है। मां शैलपुत्री हिमालय की पुत्री कहलाती हैं। मां को शास्त्रों में सभी की मनोकामना पूरी करने वाला बताया जाता है। यहां हम बताएंगे कि किस तरह शुरू करें करें। साथ ही घटस्थापना की विधि भी बताएंगे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

कलश स्थापना और पूजा का शुभ मुहूर्त
चैत्र नवरात्रि के पहले दिन ही कलश स्थापना की जाती है। आज 22 मार्च सुबह 6 बजकर 23 मिनट से 7 बजकर 32 मिनट पर घटस्थापना की जा सकती हैय़ कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त इस चलते 1 घंटा 9 मिनट तक रहेगा। नवरात्रि की पूजा के लिए कई खास मुहूर्त बन रहे हैं। आज ब्रह्मा मुहूर्त सुबह 4 बजकर 49 मिनट से 5 बजकर 36 मिनट तक है। विजय मुहूर्त दोपहर ढाई बजे से 3 बजकर 19 मिनट तक है। इसके पश्चात गोधुलि मुहूर्त शाम 6 बजकर 32 मिनट से 6 बजकर 56 मिनट तक रहेगा और आखिर में अमृत काल सुबह 11 बजे से शुरू होकर दोपहर 12 बजकर 35 मिनट तक रहेगा। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

मां शैलपुत्री की पूजा
नवरात्रि का पहला दिन मां शैलपुत्री को समर्पित है। इस दिन मान्यतानुसार मां शैलपुत्री की भक्ति में लीन होकर पूजा संपन्न की जाती है। माना जाता है कि मां शैलपुत्री का प्रिय रंग सफेद है। इस चलते आज भक्त माता रानी को प्रसन्न करने के लिए सफेद रंग के वस्त्र धारण कर सकते हैं। इसके अलावा, माता को सफेद रंग की मिठाई अथवा भोग लगाया जा सकता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

ऐसे की जाती है पूजा
पूजा के लिए सुबह-सवेरे उठकर निवृत्त हुआ जाता है। इसके पश्चात स्नान किया जाता है और स्वच्छ वस्त्र धारण करते हैं।
जो भक्त आज व्रत रख रहे हैं, वे व्रत का संकल्प लेते हैं।
माता रानी का मंदिर साफ किया जाता है चौकी सजाई जाती है।
इसके पश्चात कलश स्थापना होती है. कलश में नारियल रखा जाता है।
माता के समक्ष धूप, दीया, अक्षत, रोली, कुमकुम और श्रृंगार की वस्तुएं समर्पित की जाती हैं।
मां शैलपुत्री की पूजा में लाल रंग भी सम्मिलित किया जा सकता है।
आखिर में आरती गाकर पूजा संपन्न की जाती है और माता को भोग लगाया जाता है। भोग में मीठी और सफेद रंग की वस्तुएं चढ़ाई जाती हैं।
नोटः यहां दी गई जानकारी सामान्य धार्मिक मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। लोकसाक्ष्य इसकी पुष्टि नहीं करता है।

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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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