स्कूल पर मनमानी वसूली का आरोप, अभिभावक ने शिक्षा विभाग से लगाई गुहार, स्कूलों की भी अपनी समस्या
कोरोनाकाल में निजी स्कूलों पर मनमानी के आरोप भी लग रहे हैं। वहीं, ये भी सच है कि यदि स्कूल फीस नहीं लेंगे तो वहां के टीचर और स्टाफ का वेतन रुक जाएगा और कई घरों में चूल्हा जलना भी बंद हो सकता है। ये भी व्यवहारिक दृष्टिकोण है। हाईकोर्ट तक स्कूलों की ओर से मनमानी फीस का मामला जा चुका है। कोर्ट के निर्देश पर स्कूल आनलाइन क्लास की स्थिति मात्र ट्यूशन फीस देने के हकदार हैं। वहीं, कुछ लोग ऐसे भी हैं कि जो कोरोना का बहाना बनाकर फीस देना ही नहीं चाह रहे हैं। दूसरी तरफ स्कूल भी दूध के धुले नहीं हैं। कई स्कूल तो नियमों का पालन कर रहे हैं और कई स्कूलों ने मनमानी फीस वसूलने का धंधा जारी रखा है।
यूं तो स्कूलों में जब गर्मी और सर्दियों के अवकाश होते हैं, तब भी उस अवधि की फीस वसूली जाती है। चाहे वो सरकारी स्कूल हों या फिर निजी स्कूल। सरकारी स्कूलों में तो इस अवधि की फीस लोग दे देते हैं। वहीं, निजी स्कूलों की फीस हर किसी को चुभती है। क्योंकि फीस की रकम मोटी होती है। वहीं, ये भी सच है कि स्कूल खोलने के लिए जमीन खरीदने से लेकर भवन, फर्नीचर आदि आधारभूत ढांचा खड़ा करने में लाखों करोड़ों रुपये लगते हैं। अधिकांश लोग ऋण लेकर ही स्कूल खोलते हैं। इसकी ब्याज की राशि भी हजारों और लाखों में जाती है।
कोरोनाकाल में अभिभावक फीस के विरोध में खड़े हो रहे हैं, लेकिन स्कूलों के लिए जो ऋण लिया गया, उसकी माफी की आवाज किसी ने नहीं उठाई। क्योंकि सब अपना भला चाहते हैं। बाकी दुनियां जाए एक तरफ। अब सरकार ने कहा कि कोरोनाकाल में स्कूल बंद रहेंगे। आनलाइन पढ़ाई होगी। स्कूलों ने आनलाइन पढ़ाई शुरू कराई, लेकिन नर्सरी से लेकर पांचवी तक के स्कूल अधिकांश छोटे बच्चों के लिए इस तरह की शिक्षा व्यवस्था नहीं कर पाए। इससे स्कूलों में ताले लगे। स्कूल संचालकों पर कर्ज बढ़ता गया। तलवार स्टाफ पर चली और उन्होंने कर्मचारियों, शिक्षकों को निकाल दिया। इनकी आवाज किसी ने उठाई, या सरकार से इनके लिए मदद मांगी, ऐसा शायद नहीं नहीं हुआ हो। सिर्फ एक ही मांग उठती है कि स्कूलों से फीस वसूली बंद की जाए।
सरकार ने कहा कि यदि आनलाइन पढ़ाई की जा रही है तो स्कूल सिर्फ ट्यूशन फीस वसूलेंगे। अधिकांश स्कूलों ने ऐसा ही किया, लेकिन शिक्षक और कर्मचारियों के वेतन में कटौती कर दी। स्टाफ को कम कर दिया। कई लोग बेरोजगार हुए। जहां पति और पत्नी दोनों स्कूल में थे, उनकी नौकरी छूटी तो रोटी खाने के लाले पड़ गए। वहीं, जो स्कूल इस दौर में चलते रहे, वहां भी पचास 80 फीसद ही वेतन दिया जा रहा है। इन सब पहलुओं को भी उन लोगों को देखना होगा, जो फीस तो दे सकते हैं, लेकिन कोरोना का बहाना बनाते हैं।
अभिभावकों के उत्पीड़न का आरोप
देहरादून में स्वास्तिक प्लाजा बंजारावाला निवासी सिद्धदेपेश सिह राणा पिछले कुछ दिनों से शिक्षा विभाग, शासन और प्रशासन को लगातार पत्र लिखकर एक स्कूल पर मनमानी का आरोप लगा रहे हैं। मुख्य शिक्षाधिकारी बेसिक को दिए गए पत्र में उन्होंने निजि शिक्षण संस्था मैक्स इन्टरनेशन स्कूल बंजारावाला की शिकायत की है। आरोप लगाया कि स्कूल प्रबंधन की ओर से विगत सत्र 2020-21 का वार्षिक शुल्क जमा कराने के लिए दबाव बनाया जा रहा है। न देने की स्थिति में बच्चों का परिणाम रोकने की धमकी दी जा रही है। उन्होंने कहा कि कोरोनाकाल में लोग बेरोजगार हो गए हैं। वे भारी शुल्क की रकम देने में सक्षम नहीं हैं। ट्यूशन फीस तो दे रहे हैं, लेकिन वार्षिक शुल्क देने की स्थिति में नहीं हैं। उन्होंने को यहां तक मांग की है कि अप्रैल और मई माह में शिक्षण नहीं हुआ, ऐसे में शिक्षण शुल्क भी नहीं लिया जाना चाहिए। अब देखना ये है कि क्या सरकारी स्कूलों में इस अवधि का शुल्क लिया जा रहा है। या सरकार इस संबंध में भी कोई निर्णय लेती है। क्योंकि चाहे सर्दियों की छुट्टियां हों या फिर गर्मियों की। इस अवधि में सरकारी स्कूलों में भी फीस वसूली जाती है। इसके साथ ही उन्होंने स्कूल प्रबंधन पर शुल्क वृद्धि का भी आरोप लगाया। इस संबंध में उन्होंने कार्रवाई की मांग की है।





