उत्तराखंड के कोरोना बुलेटिन के तमाम झोल और चीन की सीनाजोरी!
अमेरिका में शरण ले चुकी चीनी वायरस विशेषज्ञ डॉ. ली मेंग यान का दावा है कि कोरोना वायरस चीनी सेना की लैब में निर्मित विषाणु है। कोविड 19 की जीनोमिक संरचना 2003 में खोजी गई सार्स वायरस से 96 प्रतिशत मेल खाती है। वर्ल्ड हैल्थ आर्गनाइजेशन की लापरवाही व मिलीभगत से चीन में पनपी इस कोरोना बीमारी ने आज वैश्विक महामारी का रूप धर लिया है। मानव से संक्रमण का पता चलते ही दिसंबर माह में चीन को पूरे विश्व के लिए लाक किया जाता तो आज यह हालात बेकाबू ना होते और लाखों लोगों की जानमाल का नुक्सान रोका जा सकता था।
अब इस परिपेक्ष्य में उत्तराखंड की बात करते हैं। शुक्रवार की शाम उत्तराखंड में कोरोना के दर्ज मामले 57 हजार पार कर चुके हैं तथा 829 मौत हो चुकी हैं। देहरादून में कोरोना मामले 15827, मौत 449 हो गई हैं। मौत का प्रतिशत अस्थायी राजधानी देहरादून में 2.84 काफी ज्यादा है। इस के अतिरिक्त 106 कोरोना पीड़ित देहरादून को छोड़कर प्रदेश से बाहर चले गए। ऐसा स्वास्थ्य विभाग की ओर से जारी बुलेटिन में बताया गया है।
कोरोना पैनडामिक घोषित होते ही उत्तराखंड में पूरे जोश से इस बीमारी को हराने के लिए कड़े कदम उठाये गए थे। कोरोना का पहला मामला 15 मार्च को 29 सैंपल टेस्ट करने के बाद मिला लेकिन चीन और बाहर से आने लोगों को क्वारंटीन करने का सिलसिला शुरू कर दिया गया था। 31 मार्च को कोरोना के 7 मामले 512 सैंपल में आ चुके थे और लगभग 9 हजार से अधिक लोगों को क्वारंटीन किया गया।
अप्रैल 20 से स्थिति बिगड़नी शुरू हुई – इस माह 50 मामले दजऱ् हुए और कुल कोरोन मरीज 57 हो गए। कोरोना का संक्रमण देहरादून, हरिद्वार, नैनीताल, उधमसिंह नगर, अल्मोड़ा व पौड़ी जनपदों को अपनी चपेट में ले चुका था। लगभग सभी मामले प्रवासियों के या सरकारी कर्मियों के बाहर से आने पर दर्ज हो रहे थे।
कोराना बुलेटिन में होम क्वारंटीन व सरकारी फैसिलिटी क्वारंटीन का आंकड़ा बताया जाता था। प्राइवेट लैब के टेस्ट का आंकड़ा अलग से दर्शाकर जोड़ा जाता था, लेकिन गणना में सरकारी लैब के आंकड़े प्रमाणीकरण के कारण लिए जा रहे थे। जैसे 30 अप्रैल को कुल टेस्ट 6565 हुए, 57 पोजिटिव आये, पैंडिंग टेस्ट 156 व रिपीट टेस्ट पैंडिंग 252 थे। इस में प्राइवेट लैब में 327 टेस्ट हुए और कोई भी पोजिटिव नहीं आया। होम क्वारंटीन 15470 और सरकारी फैसिलिटी क्वारंटीन 2221 और कोई मौत दर्ज नहीं हुई।
30 मई तक 5 मौत के साथ सारे प्रदेश में कोरोना संक्रमण फैल चुका था और 727 पोजिटिव में 102 मरीज ठीक होकर घर आ गए। तब नैनीताल में 224 व देहरादून में 171 केस दर्ज थे। देहरादून से 3 कोरोना मरीज माइग्रेट आउट आफ स्टेट दर्ज किए गए, लेकिन बुलेटिन से होम या फैसिलिटी क्वारंटीन का डाटा देना अचानक बंद कर दिया गया। क्या सरकार क्वारंटीन को आवश्यक नहीं मान रही थी या या फिर व्यवस्था नहीं बना पा रही थी ?
पैंडिंग टेस्ट 5232 और रिपीट 955 से अंदाजा दे रहे थे कि डाटा अपूर्ण है और इन हजारों सैंपलों को निपटाये बिना प्रदेश में निश्चित तारीख पर कोरोना की असली तस्वीर जाहिर नहीं की सकती है। 30 जून को कोरोना मौत 41 और मामले 2881 जा पहुंचे थे। पैंडिंग सैपल नए 5709 व रिपीट सैंपल 2572 रियलटी को बताने में सक्षम नहीं थे। साफ हो गया कि टेस्ट की रफतार घटा बढ़ाकर आंकड़ों को भरमाया जा सकता है।
कोरोना को पहचानने और रोकने का एक मात्र हथियार टेस्ट ही तो है। 27 कोरोना पीडि़त प्रदेश छोड़कर जा चुके थे और इनको दूसरे प्रदेश आखिर कैसे लेने का राजी हो रहे हैं। यह भी एक रहस्य बना हुआ है। कोरोना पीड़ित किन गाड़ियों में, किन के साथ और किन की परमिशन से गए हैं ?
31 जुलाई को कोरोना मौत का आंकड़ा 80 और मामले 7183 हो गए। देहरादून 1659, हरिद्वार 1416, उधमसिंह नगर 1252 व नैनीताल 1104 मामले दजऱ् कर चुके थे। पैंडिंग टेस्ट नए 8044 व रिपीट 3379 हो गए। अब प्राइवेट लैब का पिछला डाटा जानना मुश्किल हो गया। जैसे इस दिन के नए सैंपल 3964, टेस्ट हुए 3395 – जिस में 118 पोजिटिव आ गए। कुल टेस्ट हेतु सैंपल 168113 में कितने सरकारी और कितने प्राइवेट के हैं, स्पष्ट नहीं हैं।
कोरोना टेस्ट में सरकार और प्राइवेट लोगों ने अपार धन खर्च किया है और इसका सही हिसाब किताब भ्रष्टाचार रोकने के लिए जरूरी है। 31 अगस्त तक तो कोरोना की सुनामी उत्तराखंड में दस्तक देने लगी – मौत 269 और मामले 19827। प्रदेश से बाहर गए मरीजों की संख्या 63, पैंडिंग नए टेस्ट 17943, सब कुछ हेल्थ सिस्टम की हकीकत बयान करने के लिए काफी हैं।
रिकवरी रेट 13608 और रिपीट टेस्ट 8691 में सामंजस्य न होना बता रहा है कि बिना टेस्ट के रिकवरी हो रही है। आईसीएमआर की गाइडलाइन में मरीजों को बुखार न होने पर और आक्सीजन ब्लड डैंसिटी 95 प्रतिशत होने पर घर पर आइशोलेसन के लिए डिस्चार्ज किया जा सकता है।
कोरोना की दवाई बिना कम गंभीर मरीजों को हास्पीटल में रखना उचित भी नहीं है लेकिन हास्पीटल में मरीजों का दम तोड़ना हमारे हास्पीटल की खामियों को भी रेखांकित कर रहा है। घर पर आइशोलेसन में रखना दिल्ली और केरल सरकार ने हास्पीटलों पर मरीजों के अनावश्यक बोझ को कम करने के लिए पहले पहल शुरू किया है।
01 अक्टूबर तक 625 मौत व 49248 मामले यानि एक माह में 356 मौत व 29 हजार से अधिक मामलों का आ जाना कोरोना का पीक की ओर जाना दिख रहा है। प्रदेश छोड़ने वाले कोरोना मरीजों का आंकड़ा 243 हो गया। पैंडिंग टेस्ट बेलगाम बने रहे और नए सैंपल 13650 और रिपीट 12798 का परिणाम लंबित रहा।
15 अक्टूबर को मौत का सिलसिला बढ़कर 814 हो गया यानि 15 दिनों में 189 मौत हो चुकी हैं। देहरादून में अब तक कुल मौत 436 और इसी माह में 134 मौत हुई हैं। कुल मामले 56493, रिकवरी 49631, एक्टिव 5682, मौत 814 तथा 366 प्रदेश छोड़ गए।
पिछले 15 दिनों के अनुसार 7245 नए मामले आये, 9795 ठीक हो गए, एक्टिव मामले 2862 घटे 189 मौत हुई और 123 कोरोना मरीज प्रदेश छोड़कर चले गए हैं। ठीक होने की रफतार एकदम चमत्कारिक है।
कोरोना बुलेटिन का यह विश्लेषण अपने आप सारी कहानी बयां कर रहा है। हर बुलेटिन में लिखा है कि आंकड़े मध्य रात्रि तक प्राप्त हुए हैं। जहां हजारों की संख्या में सैंपल टेस्ट के लिए पैंडिंग हैं वहां बुलेटिन के अपडेट होने या रात को डाटा मिलने की बात एकदम बेमानी है। क्योंकि एक बुलेटिन जारी होने के बाद दूसरे दिन की बुलेटिन में यह सभी आंकड़े समाहित करना जरूरी है।
कोरोना अभी निरंतर बना हुआ है और बुलेटिन कोई मैच की रिपोर्टिंग नहीं है कि तय समय सीमा में आंकड़े लिखे जाने हैं। कई बार बुलेटिन में जारी आंकड़ों का अगले दिनों में हेरफेर किया जाता है कि आईसीएमआर और डिस्ट्रिक से डाटा मिसमैच होने पर सुधार किया गया है। यह भी घोषणा रोज की जा रही है कि सैंपल रिजेक्टेड हैं या परिणाम रोके गए हैं। बुलेटिन के ऐसे डाटा क्या कभी ठीक नहीं होने हैं ?
रिपीट सैंपल का परिणाम यदि नहीं आने हैं तो इन्हें बुलेटिन में क्यों लिखा जा रहा है। ऐसे ही प्रदेश छोड़ कर जाने वाले कोरोना पीडि़तों का डाटा दजऱ् करने की भी कोई जरूरत नहीं है। क्योंकि प्रदेश से बाहर जाने पर उन्हें रिकवर मानना ही उचित है। हैरत की बात यह है कि पड़ोस के राज्य हिमाचल की कोरोना बुलेटिन में ऐसे झोल नजर नहीं आ रहे हैं।
लेखक का परिचय
भूपत सिंह बिष्ट, स्वतंत्र पत्रकार।
देहरादून, उत्तराखंड।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।