रुद्रप्रयाग जिले के पैलिंग गांव में चौथी बार आयोजित किया गया अखंड रामायण पाठ, माधव सिंह नेगी से समझिए रामचरितमानस की विशेषता
गाँव का युवा वर्ग अपने बड़े बुजुर्गों के कुशल सानिध्य में छोटे-बड़े सारे सामाजिक कार्यों को सफलतापूर्वक सम्पन्न कराते हैं। खेल के क्षेत्र में देखा जाय तो परकण्डी क्षेत्रांतर्गत पहले क्रिकेट टूर्नामेण्ट का आयोजन भी इसी गाँव में हुआ।पिछ्ले वर्ष दीपावली के सुअवसर पर 11 दिवसीय ऑनलाइन रामलीला का आयोजन करने में भी हम सफल हो पाए। पाण्डव नृत्य हो या नन्दा लोकजात या अन्य कार्यक्रम सभी का आयोजन बखूबी से किया जाता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
श्री रामचरित मानस के प्रति मेरे विचार
थोड़ी जैसी कि श्री रामचरितमानस के प्रति मेरी समझ बनी व रामायण से सम्बन्धित तथ्यों को पढ़ने व समझने का सौभाग्य मिला, उसके आधार पर प्रभु कृपा से अपनी बात कहने जा रहा हूं। रामायण केवल एक धर्म ग्रन्थ मात्र नहीं है, बल्कि यह मनुष्य को जीवन जीने की सीख के साथ जीवन जीने की कला सिखाने वाला ग्रन्थ भी है। रामायण में जहाँ भगवान राम को पुरुषोत्तम कहा गया है तो वहीं माँ सीता की पवित्रता दर्शायी गई है। लक्ष्मण और भरत दोनों ही का अपने भाई के प्रति अथाह प्रेम दिखाया गया है। रामायण के हर एक चरित्र से कुछ न कुछ शिक्षा अवश्य प्राप्त होती है। यदि व्यक्ति रामायण को पूजने के साथ उससे मिलने वाली सीख को अपने जीवन में अनुसरण करे तो वह एक सफल जीवन व्यतीत कर सकता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
भारतीय संस्कृति में विशेष स्थान
रामचरितमानस भारतीय संस्कृति में एक विशेष स्थान रखता है। गोस्वामी तुलसीदास जी कृत श्रीरामचरितमानस को उत्तर भारत में ‘रामायण’ के रूप पढ़ा जाता है। श्री रामचरितमानस के पाठ को बिना विश्राम लिए, अत्यन्त सरल, लयवद्ध, शुद्धऔर स्पष्ट रूप से, प्रेम व भक्ति भाव से सीधा-सीधा गाया जाता है। यह अखण्ड पाठ ही रामायण/अखण्ड रामायण के नाम से प्रचलित है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
वाल्मीकि रामायण के बारे में
कुछ विद्वान सम्पूर्ण रामायण आदि कवि महर्षि वाल्मीकि द्वारा राम के जन्म और जीवन लीला से पहले का लिखा संस्कृत का अनुपम महाकाव्य मानते हैं। कुछ श्रीराम के राज्यभिषेक के कई वर्षों बाद का लिखा मानते हैं। इस महाकाव्य में 24000 छंद और 500 सर्ग हैं। इन्हें सात भागों में विभाजित किया गया है। महर्षि वाल्मीकि ने श्रीराम जी के चरित्र को आधार बनाकर विभिन्न भावनाओं और शिक्षा को अत्यन्त सरल तरीके से समझाया है। वहीं, तुलसीकृत रामायण उनके जीवन काल में आँखों देखा वर्णन है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
मानस और रामायण में अंतर
यदि हम श्री रामचरितमानस और सम्पूर्ण रामायण में अन्तर की बात करें तो दोनों ग्रन्थों में अन्तर मुख्य पात्र के चरित्र चित्रण का है। रामायण के राम एक सरल साधारण मानव हैं जो हर मानवीय भावना से प्रेरित हैं। वहीं, तुलसी के राम एक दैवीय शक्ति से युक्त अतिमानव हैं, जो स्वयं एक महाशक्ति का रूप हैं। तुलसी के राम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं और वाल्मीकि के राम मानवीय भावनाओं के सन्तुलित रूप हैं। दोनों ग्रन्थों में सबसे बड़ा अन्तर यह है कि वाल्मीकि जी ने रामायण की रचना उनके जन्म से पूर्व ही, भावी ऐतिहासिक घटना आधारित मानकर की और तुलसीदास ने राम के जीवन चरित्र को वाल्मीकि रामायण को ही आधार मानकर अपने आदर्श चरित्र ‘राम’ को गढ़ा। यदि हम कुछ और अंतर पर ध्यान केंद्रित करें तो दोनों ग्रन्थों के काल का अंतर है, भाषा और भाषा शैली की भिन्नता इत्यादि हैं।
हरि अनंत हरि कथा अनंता। कहहिं सुनहिं बहुबिधि सब संता॥
रामचंद्र के चरित सुहाए। कलप कोटि लगि जाहिं न गाए (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
अखंड रामायण पाठ का विशेषता
पारिवारिक सुख-शान्ति और समृद्धि की प्राप्ति, समस्त मनोकमानाओं की पूर्ति, शीघ्र विवाह एवं सन्तान सुख की प्राप्ति, जीवन से जुड़े दु:खों को दूर करने और रोगों से मुक्ति के लिए किया जाता है। मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्री राम के गुणों का बखान करने वाली श्री रामचरितमानस का पाठ अनन्त काल से होता चला आ रहा है। जीवन की मंगल कामना के लिए किया जाने वाला यह पाठ अत्यन्त ही शुभ फलदायक है। कहा जाता है कि जो मनुष्य भक्तिपूर्वक श्री रामचरितमानस मानस का पाठ करता है हनुमान जी उसकी सभी बाधाओं को दूर कर देते हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
मान्यता है कि जहाँ पर भी रामायण का पाठ हो रहा होता है वहां पर हनुमानजी अदृश्य रूप में उपस्थित हो जाते हैं। माना कि एक ही समय में कई जगह रामायण पाठ हो रहा है तो क्या हनुमानजी सभी जगह एक साथ उपस्थित होंगे? वास्तव में, रामकथा तो राम के पहले से ही जारी है। सर्वप्रथम श्रीराम की कथा भगवान श्री शंकर ने माता पार्वतीजी को सुनाई थी। उस कथा को एक कौवे ने भी सुन लिया। उसी कौवे का पुनर्जन्म कागभुशुण्डि के रूप में हुआ। काकभुशुण्डि को पूर्व जन्म में भगवान शंकर के मुख से सुनी वह रामकथा पूरी की पूरी याद थी। उन्होंने यह कथा अपने शिष्यों को सुनाई। गरुड़ भगवान को शंका हुई तो उनको भी काकभुशुण्डि ने यह कथा सुनाई। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
फिर यह कथा विभीषण ने सुनाई और फिर हनुमानजी ने यह कथा एक पाषाण पर लिखी। बाद में वाल्मीकिजी ने यह कथा लिखी। फिर यह कथा कई ऋषि-मुनियों और आचार्यों ने लिखी। इस तरह इस कथा का प्रचार-प्रसार हर क्षेत्र और हर भाषा में होता रहा। परम्परा से ही यह प्रचलित है कि जहाँ भी भक्त भाव से राम कथा का आयोजन होता है हनुमानजी वहां अदृश्य रूप से उपस्थित हो जाते हैं। उनके लिए समय और स्थान किसी भी प्रकार से बाधा नहीं बनता। वह एक ही समय में कई स्थानों की रामकथा सुनने में सक्षम हैं, क्योंकि वे एक समय पर कई स्थानों तक विद्यमान रहते हैं।
लेखक का परिचय
माधव सिंह नेगी
प्रधानाध्यापक, राजकीय प्राथमिक विद्यालय जैली, ब्लॉक जखोली, रुद्रप्रयाग, उत्तराखंड।
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।