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April 17, 2025

ओपन हार्ट सर्जरी के बगैर एम्स चिकित्सकों ने रिप्लेसमेंट किए दिल के वॉल्व, पांच दिवंगत लोगों के परिजनों ने कराया नेत्रदान

58 वर्ष की अवस्था में रूमैटिक हार्ट डिसीज की समस्या से जूझ रहे एक रोगी के हृदय के वॉल्व खराब हो चुके थे। समय पर इलाज नहीं मिलने के कारण उसके फेफड़ों में पानी भर गया और गुर्दे खराब होने से पेशाब में भी रुकावट होने लगी। चलने-फिरने में असमर्थ हुआ तो जीवन बचाने के लिए कई अस्पतालों में दौड़ भी लगाई, लेकिन उपचार कहीं नहीं मिला। ऐसे में एम्स ऋषिकेश के कार्डियोलॉजी विभाग के चिकित्सकों ने बिना ओपन हार्ट सर्जरी के माध्यम से रोगी के हृदय (हार्ट) के वाल्व सफलतापूर्वक रिप्लेसमेंट कर उसे नया जीवन प्रदान करने में सफलता पाई है। रोगी अब स्वस्थ है और बिना किसी सहारे के चलने-फिरने लगा है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

उत्तर प्रदेश के जनपद पीलीभीत के रहने वाले विभुरंजन पाल पिछले 8-10 महीनों से दिल की बीमारी की गंभीर समस्या सहित शरीर के विभिन्न जटिल रोगों से ग्रसित थे। उनके हृदय के वॉल्व खराब हो चुके थे और इलाज के अभाव में एक वॉल्व सिकुड़कर छोटा हो चुका था। हालत यह थी कि हृदय की कार्य क्षमता घटकर महज 20 प्रतिशत ही रह गई थी। आस-पास के अस्पतालों ने उन्हें बताया कि उनकी बीमारी अब लाइलाज हो चुकी है और उनका ठीक होना असंभव है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

उन्हें बताया गया कि उन्हें अब जीवनभर दवाओं पर ही निर्भर रहना पड़ेगा। ऐसे में अंतिम उम्मीद लिए वह एम्स ऋषिकेश पहुंचे। यहां बीते माह 10 अगस्त को कार्डियोलॉजी विभाग की ओपीडी में मौजूद कार्डियोलाॅजिस्ट प्रोफेसर भानु दुग्गल को उन्होंने अपनी स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतें बताई और जीवन बचाने के लिए एम्स को अपनी आखिरी उम्मीद बताया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

इस बाबत जानकारी देते हुए एम्स के कार्डियोलॉजी विभागाध्यक्ष और वरिष्ठ सर्जन डॉ. भानु दुग्गल ने बताया कि मरीज की स्थिति ऐसी थी कि वह बहुत ही हाई रिस्क में था और उसकी बाईपास सर्जरी नहीं की जा सकती थी। ऐसे में मरीज की सभी आवश्यक जाचें कराने के बाद उन्हें बिना ओपन हार्ट सर्जरी के माध्यम से हार्ट में वॉल्व रिप्लेसमेंट कराने की सलाह दी गई। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

डॉ. भानु ने बताया कि रोगी के गुर्दे भी खराब हो चुके थे। साथ ही फेफड़ों में पानी भर जाने के कारण उसकी सांस लगातार फूल रही थी। दिल अपने आकार से ज्यादा फैला हुआ था और खराब हो चुका था। इन हालातों में मरीज की कभी भी कार्डियक डेथ होने का खतरा बना था। रोगी को कुछ दिन गहन चिकित्सा यूनिट में भर्ती कर हालत स्थिर करने की प्रक्रिया की गई और फिर रोगी तथा उसके परिजनों की सहमति पर हाई रिस्क लेते हुए वॉल्व रिप्लेसमेंट करने का प्लान तैयार किया गया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

उन्होंने बताया कि आईसीयू में एक सप्ताह तक दवाओं द्वारा रोगी की हालत स्थिर करने के बाद 20 अगस्त को उसके हार्ट के दो वॉल्व सफलतापूर्वक रिप्लेसमेंट कर दिए गए। बेहद ही जटिल तरीके से की गई इस प्रक्रिया में पहली बार भारत में निर्मित स्वदेशी वॉल्वों का उपयोग किया गया है। डॉ. भानु के अनुसार वॉल्व रिप्लेसमेंट के बाद पहले दिन ही रोगी का गुर्दा सही ढंग से कार्य करने लगा और जरूरत न होने की वजह से मरीज की ऑक्सीजन सपोर्ट भी हटा दी गई। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

उन्होंने बताया कि रोगी अगले रोज से ही बिना किसी सहारे के चलने लगा था। सर्जरी के लगभग 20 दिनों बाद अब वह बिना किसी सपोर्ट के सीढ़ियां चढ़ने लगा है। यहां तक कि रोगी के अन्य अंग भी बेहतर कार्य कर रहे हैं। स्वास्थ्य लाभ मिलने पर रोगी को बीते दिनों अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया। वॉल्व रिप्लेसमेंट करने वाली टीम में डॉ. भानु दुग्गल के अलावा डॉ. योगेश चंद, डा. विजय, डॉ. अनिरूद्ध आदि शमिल थे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

संस्थान की कार्यकारी निदेशक प्रोफेसर (डॉ.) मीनू सिंह ने इस संबंध में कार्डियोलॉजी विभाग के अनुभवी डॉक्टरों की टीम की प्रशंसा की और कहा कि हार्ट से संबंधित विभिन्न बीमारियों से बचाव के लिए समय रहते इलाज कराना बहुत उपयोगी होता है। उन्होंने कहा कि हृदय रोगियों के बेहतर इलाज के लिए एम्स में विश्वस्तरीय तकनीक आधारित कैथ लेब की सुविधा भी उपलब्ध है। हृदय रोग से ग्रसित रोगियों को एम्स की इस सुविधा का लाभ उठाना चाहिए। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

 

पांच दिवंगत लोगों का परिजनों ने कराया नेत्रदान
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के ऋषिकेश आई बैंक में बीते रविवार को पांच दिवंगत लोगों का उनके परिजनों ने मृत्यु उपरांत नेत्रदान कराया। नेत्रदान के प्रति जागरुक लोगों के इस प्रयास से 10 नेत्रहीन लोगों का जीवन रोशन हो सकेगा। एम्स की कार्यकारी निदेशक प्रोफेसर (डॉ.) मीनू सिंह ने नेत्रदान जैसे महादान के इस पुनीत संकल्प के लिए दिवंगतों के परिजनों की सराहना की। उन्होंने कहा कि इससे अन्य लोगों को भी नेत्रदान के संकल्प की प्रेरणा लेनी चाहिए। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

एम्स अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक एवं नेत्र रोग विभागाध्यक्ष प्रो. संजीव कुमार मित्तल ने बताया कि हल्द्वानी निवासी अनिल शर्मा (54वर्ष) का बीते शनिवार की रात को असामयिक निधन हो गया। उनके निधन के बाद भाई ओमप्रकाश शर्मा ने अपने दिवंगत भाई का नेत्रदान कराया। दूसरी ओर ऋषिकेश निवासी विजय अग्रवाल (63 वर्ष) के असामयिक निधन होने पर उनके भाई अनूप अग्रवाल व दिवंगत के पुत्र अंकित अग्रवाल जो कि एम्स के हीमेटोलॉजी विभाग में बतौर चिकित्सक कार्यरत हैं, उन्होंने अपने दिवंगत पिता का नेत्रदान कराया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

उधर, ऋषिकेश निवासी विकास (40 वर्ष) का बीते रविवार सुबह असामयिक निधन हो गया। नेत्रदान के प्रति जागरुक उनके भाई सुनील कुमार ने दिवंगत विकास के निधन पर उनका नेत्रदान कराया। साथ ही आवास विकास कॉलोनी, ऋषिकेश निवासी माधुरी गुप्ता (83वर्ष) का बीते रविवार को असामयिक निधन होने पर उनके पति महराज कृष्ण गुप्ता ने ऋषिकेश आई बैंक, एम्स से संपर्क साधकर अपनी दिवंगत पत्नी का नेत्रदान कराया। जबकि हरिद्वार निवासी शकुंतला देवी (70वर्ष) का असामयिक निधन पर उनके पुत्र नीरज ने ऋषिकेश आई बैंक से संपर्क साधकर नेत्रदान महादान जैसा पुण्य कार्य किया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

नेत्रदान टीम में रेजिडेंट डॉक्टर नंदू, आई बैंक प्रबंधक महिपाल चौहान, काउंसलर संदीप गुसाईं, बिंदिया भाटिया, आलोक राणा और पवन सिंह का योगदान रहा, साथ ही इनमें से दो स्वैच्छिक नेत्रदान में ऋषिकेश के सामाजिक कार्यकर्ता गोपाल नारंग का विशेष योगदान रहा। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

उक्त सभी पांच परिवारों से एम्स की नेत्र बैंक टीम ने संपर्क साधकर उन्हें नेत्रदान के लिए प्रेरित किया और टीम की प्रेरणा से परिजनों ने अपने दिवंगत प्रियजनों का नेत्रदान कराया। उन्होंने बताया कि पांच दिवंगत लोगों से आई बैंक को प्राप्त 10 कॉर्निया से 10 नेत्रहीन लोगों को नेत्र ज्योति मिल सकेगी, जिससे वह ईश्वर की बनाई हुई रंगबिरंगी दुनिया को अपनी आंखों से देख सकेंगे। गौरतलब है कि अब तक ऋषिकेश आई बैंक (एम्स) को स्थापना के बाद से अब तक 696 कॉर्निया प्राप्त हुए हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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