जेपी नड्डा के दौरे का आफ्टर इफेक्ट, टिकट के दावेदारों किया साइडलाइन, भाजपा में दी ये जिम्मेदारी, पढ़िए नाम
नड्डा का दौरा
जेपी नड्डा 20 व 21 अगस्त को दून दौरे पर आए थे। इस दौरान उन्होंने पूर्व सैनिकों से साथ बैठक की। साथ ही कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों के साथ भी उन्होंने आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर चर्चा की थी। उन्होंने सांसदों, मंत्रियों, विधायकों के साथ भी बैठक की थी। साथ ही उन्होंने कार्यकर्ताओं को ऊर्जा देने के लिए उन्होंने संगठन को कुछ टाइट किया। पूरे शक्ति केंद्रों का गठन नहीं होने पर उन्होंने नाराजगी भी जताई। साथ ही कार्यकर्ताओं में हर तरह से जोश भरने की कोशिश की।
नड्डा के दौरे का आफ्टर इफेक्ट
नड्डा आए और चले गए। इसका असर ये पड़ा कि उनके जाने के तीन दिन बाद 24 अगस्त को भाजपा संगठन सक्रिय हुआ और आनन फानन प्रदेश की 70 विधानसभाओं के प्रभारी नियुक्त कर दिए गए। बताया गया कि आगामी विधानसभा चुनाव की दृष्टि से सांगठनिक कार्यों को और अधिक गति देने के लिए भाजपा प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक व प्रदेश महामंत्री संगठन अजेय के निर्देश पर प्रदेश भाजपा ने सभी 70 विधानसभाओं में विधानसभा प्रभारियों की नियुक्ति की है। इन लोगों में वे भी शामिल हैं, जो टिकट के लिए प्रयासरत थे। ऐसे में उन्हें विश्वास में लिए बगैर नई जिम्मेदारी दे दी गई। ना ही उनसे कोई बातचीत की गई।
पहली बार विधानसभा प्रभारी
अभी तक भाजपा में विधानसभा प्रभारी बनाने की परंपरा नहीं रही है। पहले चुनाव संयोजक बनाए जाते थे। चुनाव संयोजक भी चुनाव से एक माह पहले बनाए जाते रहे हैं। अमूमन जब निर्वाचन आयोग की ओर से चुनाव की तिथि की घोषणा होती है और आचार संहिता लग जाती है तो उसी दौरान चुनाव संयोजक बनाने की परंपरा रही है। इस बार प्रदेश अध्यक्ष ने विधानसभा प्रभारी बनाकर उन्हें विधानसभाओं को मजबूत करने की जिम्मेदारी दी है।
असमंजस में टिकटार्थी
अब भाजपा में जो लोग पहले से चुनाव लड़ने के लिए किसी विधानसभा में अपने लिए जमीन तैयार कर रहे थे, ऐसे लोगों में अब असमंजस की स्थिति पैदा हो गई है। अब उनके साथ दिक्कत ये है कि वे अपने लिए काम करें या फिर दूसरी विधानसभा के लिए। क्योंकि माना जा रहा है कि इस बार करीब 24 सीटिंग विधायकों को दोबारा टिकट मिलना मुश्किल है। ऐसे में टिकट की लाइन में खड़े लोग पहले से ही अपनी राजनीतिक जमीन तैयार करने में जुटे थे। अब ऐसे प्रदेश भर में करीब एक दर्जन लोग हैं, जिन्हें विधानसभा प्रभारियों की जिम्मेदारी दे दी गई है। अब ऐसे लोगों में असमंजस की स्थिति पैदा हो गई है।
पहला उदाहरण
उदाहरण के तौर पर देखा जाए तो देहरादून में कैंट विधानसभा से भाजपा विधायक हरबंस कपूर आठ बार विधायक बने हैं। यूपी के जमाने में देहरादून शहर, फिर राज्य बनने के बाद देहरादून खास से विधायक रहे कपूर ने पिछला और चुनाव में नई बनी देहरादून कैंट सीट से लड़ा और जीता भी। अब वे भी करीब 75 के पार हो चुके हैं। ऐसे में उनका आगामी चुनाव लड़ना मुश्किल है। हालांकि वह अपने बेटे को टिकट की पैरवी कर सकते हैं। वहीं, इस सीट से भाजपा के नेता विनय गोयल टिकटार्थियों में एक थे। अब उन्हें रायपुर विधानसभा का प्रभारी बना दिया है। ऐसे में वह रायपुर क्षेत्र को मजबूत करेंगे या फिर अपने लिए जमीन तैयार करेंगे। या यूं कहा जाए कि उन्हें इस बार भी होने वाले विधानसभा चुनाव में टिकट मिलना संभव नहीं है।
दूसरा उदाहरण
राजपुर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ चुके रविंद्र कटारिया भी दावेदारों में माने जाते रहे हैं। हालांकि पिछली बार उनके स्थान पर खजानदास को टिकट दिया गया और वह इस सीट से चुनाव जीत गए। रविंद्र कटारिया भी इस सीट के टिकट पाने के लिए पूरी ताकत से जुटे थे, लेकिन अब उन्हें मसूरी विधानसभा का प्रभारी बना दिया गया है। इस तरह प्रदेश भर में करीब एक दर्जन से ज्यादा टिकटार्थियों (टिकट के दावेदारों) को साइडलाइन कर दिया गया है।
प्रदेश के अन्य स्थानों के उदाहरण
हरिद्वार जिले में मधु सिंह को झबरेड़ा विधानसभा प्रभारी बनाया गया है। वह मंगलौर विधानसभा से टिकट मांग रही थीं। गढ़वाल मंडल विकास निगम के पूर्व उपाध्यक्ष कृष्ण कुमार सिंघल ऋषिकेश विधानसभा से टिकट मांग रहे थे। उन्हें अब कैंट विधानसभा का प्रभारी बना दिया गया। शेर सिंह गड़िया अल्मोड़ा जिले में बागेश्वर विधानसभा की कपकोट से टिकट मांग रहे थे, उन्हें अल्मोड़ा विधानसभा का प्रभारी बना दिया गया। ब्रज भूषण गैरोला उत्तरकाशी से टिकट की दावेदारी कर रहे थे, उन्हें डोईवाला विधानसभा का प्रभारी बना दिया गया। उधमसिंह नगर जिले में काशीपुर सीट समझौते के कारण अकाली दल के लिए छोड़ी हुई थी। अब समझौता टूट गया। इस सीट से राम मल्होत्रा टिकट की दावेदारी कर रहे थे, अब उन्हें जसपुर विधानसभा का प्रभारी बना दिया गया। वहीं, रविंद्र बजाज जसपुर विधानसभा सीट से टिकट की दावेदारी कर रहे थे, उन्हें काशीपुर विधानसभा का प्रभारी बना दिया गया।
इस तरह किया जाता है साइडलाइन
पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा के उमेश अग्रवाल (दिवंगत) ने जब टिकट मांगा तो उन्हें महानगर अध्यक्ष का दायित्व दे दिया गया। तब उन्हें कहा गया कि आपको बड़ी जिम्मेदारी दी जा रही है। आपको महानगर अध्यक्ष पद दिया गया है, अब आप के पास चुनाव लड़ाने की जिम्मेदारी है। जैसे ही चुनाव निपटे और भाजपा की जीत हुई, उसके बाद उमेश अग्रवाल को महानगर अध्यक्ष पद से हटाकर विनय गोयल को महानगर अध्यक्ष बना दिया गया।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।