नौकरी पर बहाली को अर्जियों के लगे ढेर, न्याय में हो रही देर, पढ़िए युवा की जुबानी
लॉकडाउन के दौरान जहां देश भर में लाखों युवा बेरोजगार हुए, वहीं उत्तराखंड भी इससे अछूता नहीं रहा है। जिन युवकों की काम न होने की वजह से नौकरी गई, उनमें ऐसे भी युवक हैं जो सरकारी प्रतिष्ठानों में संविदा पर काम कर रहे थे। ऐसे भी लोग हैं, जो कई सालों से नौकरी में बहाली की लड़ाई लड़ रहे हैं। ऐसी ही कहानी उत्तरकाशी के रमेश प्रसाद उनियाल की है। जो नेहरू पर्वातारोहण संस्थान में संविदा पर कार्यरत थे। अब वह नौकरी की बहाली के लिए हर मंच पर लड़ाई लड़ रहे हैं। पढ़िए उनकी कहानी उनकी ही जुबानी।
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संविदा से नियमित करने की उठाई मांग
मैने नेहरू पर्वतारोहण संस्थान से दिनांक 25 मई 2014 को एलडीसी (लिपिक) के रिक्त पद के सापेक्ष संविदा पर नियुक्ति प्रदान की गई थी। जिसे मेरे के द्वारा बखूबी निभाया गया। दिनांक 7 जुलाई 2018 को प्रार्थी को नियमित करने के संबंध में शासन को पत्रांक संख्या नियम कर्मचारी ऑब्लिक 2018 36 दिनांक 7 जुलाई 2018 को अवगत करवाया गया। उसके पश्चात संस्थान द्वारा पत्रांक संख्या नीम कर्मचारी 2019 1068 दिनांक 4 मई को अवगत कराया गया कि नियमित नियुक्ति प्रदान की गई है और शासन से अनुमति चाही गई।
नियमित नियुक्ति की सैलरी मांगी तो….
मैने संस्थान से आग्रह किया कि प्रार्थी को नियमित की सैलरी प्रदान करें। इस पर संस्थान ने उस वक्त जब मैं छुट्टी पर था, यह आदेश पारित किया कि हमें आपकी आवश्यकता नहीं और प्रार्थी को नौकरी से बिना कारण बताए हटा दिया गया।
आवाज उठाने पर मिली सजा
क्योंकि मैने संस्थान के द्वारा किए गए अन्याय किए जाने के विरुद्ध अधिकारियों के खिलाफ संस्थान को पत्र के माध्यम से अवगत कराया था। मेरे बाद संस्थान द्वारा जिन संविदा कर्मचारियों को नियमित नियुक्ति प्रदान की गई वह न्याय विरुद्ध है। मैं इनसे पूर्व से संस्थान में कार्यरत हूं। एलडीसी के रिक्त पद के सापेक्ष कार्यरत हूं। जिन लोगों को आप नियमित नियुक्ति प्रदान कर रहे हैं, उनकी संस्थान में किसी भी प्रकार की कोई पोस्ट नहीं है। प्रार्थी को नियमित नियुक्ति प्रदान की जाए या फिर प्रार्थी को न्यायालय जाने की अनुमति दी जाए। ताकि प्रार्थी अपने अधिकारों के लिए न्यायालय में जा सके।
न्यायालय की ली शरण
इसके बावजूद संस्थान द्वारा प्रार्थी को किसी प्रकार की अनुमति प्रदान नहीं की गई। इसके बाद रेगुलराइजेशन के लिए प्रार्थी उच्चतम न्यायालय नैनीताल की शरण में गया। उच्चतम न्यायालय के द्वारा यह दिशानिर्देश दिए गए कि आप इनकी अथॉरिटी को लिखें और प्रार्थी के द्वारा ऐसा ही किया गया तो इससे खफा होकर संस्थान ने प्रार्थी को संस्थान से नौकरी से हटाने का आदेश दे दिया।
पूर्वजों की जमीन दी थी संस्थान को
प्रार्थी के पूर्वजों की जमीन संस्थान को कौड़ियों के भाव दी गई है जिस पर प्रार्थी का संपूर्ण अधिकार है कि वह संस्थान में नौकरी पाने का अधिकारी है। बावजूद इसके कई पत्रों के माध्यम से संस्थान को अवगत करवाया गया शासन के आदेश व विधायकों के आदि कई प्रकार के आदेश संस्थान को दिए गए। प्रार्थी की शिकायत पर किसी प्रकार की कोई कार्रवाई नहीं हो रही है।
सीएम पोर्टल में भी की शिकायत
प्रार्थी के द्वारा माननीय मुख्यमंत्री पोर्टल पर शिकायत दर्ज करवाई गई, लेकिन शिकायत को L1 L2 L3 जिसका कंप्लेंट नंबर 999 27 है के द्वारा बंद कर दिया गया। कहा गया कि केंद्र सरकार का मामला है। इसके बाद प्रार्थी के द्वारा पीएम महोदय के पोर्टल पर शिकायत दर्ज करवाई गई जिसका नंबर pmopg/e/ 2020 /085 1062 है, जो दिनांक 18 /9/ 2020 को दर्ज करवाई गई। उसे भी यह कह कर बंद कर दिया गया कि अब पोर्टर कोर्स बंद कर दिए गए हैं।
अर्जियों के लग गए ढेर
रमेश प्रसाद उनियाल के मुताबिक उनकी अर्जियों के ढेर लग गए। जहां से जवाब आता है, वो गोलमोल होता है। वहीं, उनकी आर्थिक स्थिति भी लगातार खराब होती जा रही है। उन्होंने प्रदेश और केंद्र सरकार से मांग की है कि उनकी शिकायत पर गौर किया जाए। यहां तो कुछ अर्जियां उदाहरण के तौर पर दी गई हैं। शायद कोई भी दिन ऐसा नहीं है कि रमेश किसी नेता, अधिकारी, जन प्रतिनिधि से गुहार न लगाते होें।
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रमेश प्रसाद ग्राम उनियाल
कोठियाल गांव कट्ठीवाड़ा गढ़ी
तहसील भटवाड़ी जिला उत्तरकाशी
उत्तराखंड
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।